
“किसी ने पूछा कि जी आप कह रहे हो कि दिल्ली में जनरेटर की दुकानें बंद हो गईं, तो क्या वो दुकानदार बेरोजगार हो गए ? क्या वो झक मार रहे हैं ? मैंने बताया नहीं जनाब वो आजकल सपने खरीद रहे हैं, और झूठ बेच रहे हैं । बढ़िया धंधा है ! अपने-अपने शहरों में आप भी ट्राय करो । आपसे नहीं हो तो हमें फ़्रेंचाइस दे दो, हम भेज देंगे अपने दो-चार टोपिधारियों को माहौल बनाने ।
ये लोग कहते हैं मैं झूठ बोलता हूँ , मैं कहता हूँ मैं सच नहीं बोल सकता । झूठ वो है जिसे आप लपेट नहीं पाओगे, सच वो है जो उड़ता नहीं है । तो आपसे पूछता हूँ दिल्लीवालों – पतंग उड़ाऊँ कि नहीं उड़ाऊँ ? फिर ये सब लोग मिलकर कहेंगे कि देखो जी कहाँ तो पतंग उड़ाने आया था, और कहाँ राजनीति का गंदा खेल खेल रहा है ।
पर मुझे तो लगता है मैं युधिष्ठिर हूँ । झूठ मैं बोलूँगा नहीं, और सच से मेरी दाल नहीं गलेगी । इसलिए ये ‘नरो वा कुंजरों’ का खेल खेलना पड़ता है । बचपन में ऊंच-नीच तो सबने खेली होगी? अङ्ग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ने वाले अमीरों के बच्चे land-water-sea-ocean खेलते होंगे । अब तो हमारे सरकारी स्कूलों के बच्चे भी वही खेलते हैं । आप बताओ क्या दुकानें बंद नहीं होतीं रात में ? पानवालों की हों, चाहे जनरेटर वालों की ! बस इन लोगों के झूठों की दुकानों चौबीस घंटे खुली रहती हैं । कल ही आ जाएंगे इनके फ़ेक्ट-चेक वाले । आपकी सेवा करने आया हूँ, उसके लिए मुझे अगर ज़हर भी पीना पड़ेगा तो मैं पीऊँगा, झूठ बोलना तो बहुत छोटी चीज़ है । सच-झूठ की नुक्ताचीनी को मैं इन मौसेरे भाइयों पर छोडता हूँ, दोस्तों । इनके पास कोई काम नहीं बचा इन दोनो राज्यों में – अपने किसी को जिताकर ही नहीं भेजा । सब घर बैठे हैं, मक्खियाँ मार रहे हैं । फ़ेक्ट चेकर बन गए हैं । फेक न्यूज़ फैलाते रहते हैं, मोबाइल पर बटन ही तो दबाना है ।
अब मैंने कह दिया कि मुझे लगता है मैं युधिष्ठिर हूँ तो ये कहेंगे कि जी जुआरी है । इस देश में गरीब आदमी की राजनीति करने निकले थे, जुआँ ही तो खेला था । पर हमें जनता पर भरोसा था । पांडवों के साथ एक कृष्ण जी थे , हमारे साथ आप लोग हो, इस देश के करोड़ों राम और कृष्ण । और आपने दिया हमें इंद्रप्रस्थ ! वहाँ हम अपनी काबिलियत दिखा रहे हैं । धीरे-धीरे करके हम अपनी ताकत बढ़ाएँगे । एक दिन कुरुक्षेत्र का युद्ध भी होगा । फिलहाल तो हमने दो राज्यों में भ्रष्टाचार खतम कर दिया है । ऑक्सफोर्ड, केंब्रिज, तक्षिशिला, डीपीएस, डॉन बोस्को, आकाश, फिटजी, केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय सब खोल चुके हैं हम इंद्रप्रस्थ में । पूरी दुनिया की नज़र हम पर है । हर जगह के लोग हमारे मॉडलों को अपने यहाँ लागू करना चाहते हैं ।
मेरा एक सिद्धान्त है देशवालों – करना है, तो करना है । लोगों ने कहा कि जी सरकारी आवासों पर, खासकर पुलिस लाइन में, कुत्ते कब्जा करके बैठे हैं । तब मुझे समझ आया कि मेरे कुछ भी कहने पर ये सारे के सारे दुम क्यूँ हिलाने लगते हैं । अंगुली से इशारा भर कर दो तो झुंड बनाकर दौड़ते हुए जाते हैं, गुर्राकर किसी को भी पकड़ कर ले आते हैं । रँगीले सियार सुने थे, फिल्में देखने का शौक है रंगीला भी देखी है, मगर रँगीले श्वान भी होते हैं नहीं जानता था । फ़ेक्ट-चेक करने वाले, जिन्हें मैं फोकट-चेकर भी कहता हूँ, इस पर कहेंगे कि आप झूठ बोलते हो, श्वान रंगीला को जानते ही हो । उनको मैं बस इतना कहूँगा कि हम तो जी बस पतंग उड़ाने आए हैं, ओछी राजनीति करने नहीं । रंगीले शवान, श्वान हैं भले रंगीले हैं, खाकी में पुते हुए । जबकि श्वान रंगीला किसी पुलिस आवास पर कब्जा करके नहीं बैठा है, बस बढ़िया कुकुरनुमा आवाज़ और व्यक्तित्व का मालिक है, पर है तो इंसान । खैर मैंने कहा हटाओ इन कुत्तों को, ये कब्जा कैसे करके बैठे हैं । आदेश निकल गया है । अब या तो इन कुत्तों के कागज़ बनवाकर, पर्मिशन लेकर इनको वहीं रखो । या फिर इन घुसपैठिए कुत्तों को हम बस्तियों में बसाएँगे जहां इनके राशन कार्ड और आधार बनवाए जाएंगे, इन्हें पहचान दी जाएगी, इन्हें सिविक वोलंटियर बनवा कर तनख्वाएं बाँट दी जाएंगी और फिर अंत में वोटर लिस्ट में नाम डलवा दिया जाएगा ।
ऐसा करके हम मानवाधिकार की पतंग उड़ायेंगे, अपना मानव धर्म निभाएंगे, आखिर राजनीति करने थोड़े ही आए हैं, बस पतंग उड़ाने आए हैं ।”

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