आनंद भवन संग्रहालय में सोया पड़ा था एक सेंगोल । काल उसे चुका था पूरी तरह भुला । नेहरू ने माउण्टबेटन से उसे स्वीकार तो कर लिया था, परंतु उसके बाद पोंगल प्रदेश से आया यह सेंगोल गुमनामी के अंधेरे में खो गया । संग्रहालय में इसे पंडित जी की छड़ी या बेंत बताकर दिखाया…
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लोहिया बनाम नेहरू में फसे रामधारी सिंह दिनकर
महाकवि रामधारी सिंह दिनकर काँग्रेस सदस्य के रूप में 1952 से 1964 तक राज्यसभा के सांसद रहे । प्रखर समाजवादी राम मनोहर लोहिया ने 1963 में लोकसभा उपचुनाव जीत कर प्रथम बार संसद में प्रवेश किया । दोनों विभूतियों में पहले से सामान्य परिचय था जिसने धीरे-धीरे मित्रता और परस्पर सम्मान का स्वरूप धारण कर…
आनंद मोहन सिंह के मानवाधिकारों की खातिर…..
आनंद मोहन की ससुराल से रिहाई को व्यक्तिगत पराजय के रूप में लेने की आवश्यकता नहीं है । उसका छूटना और उसके छूटने पर राजनैतिक सर्वसम्मति बनना हमें सामाजिक संरचना और लोकतन्त्र के स्वास्थ्य के बारे में बहुत कुछ बता रहे हैं, जिस पर चिंतन-मनन होना चाहिए । यह नहीं कि रिहाई से तुनककर तंत्र…
What makes the Pathan sneeze?
Deepika Padukone plays Shanya D’Costa, a Christian girl, in Pathan. That is to perhaps to justify her roaming around in bikinis, desperately thrusting and gyrating her body in crassest possible manner, faking coital convulsions, being grabbed and thrown around by the Pathan as if she is ‘unaccompanied baggage’ or ‘street trash’. This is typical Bollywood…
जाति का जंजाल – ज पर आ की मात्रा, त पर चढ़ी छोटी इ (चौपाल)
शाम के चाय अड्डे पर दोस्तों के संग जाति पर संवाद किया । फिर कहीं प्रीतिभोज पर जाना पड़ा तो वहाँ भी जाति का ही भोग लगाया । पिछड़े व्यंजन में लगा था मिर्च का छौंका । अगड़ा वाला घृत और शक्करमयी – उसे फिर भी थाली में आने का अनिवार्य आमंत्रण चाहिए । शयन…
उलझा पाकिस्तान – बाजवा रुके या जाए ? इमरान को भला कौन क्या समझाये?
इमरान खान को गोली लगी कि गोलियां, ठीक से कहा नहीं जा सकता । चली थीं चार, पहले बताया गया लगीं हैं दो – दोनों पाँव में एक-एक, फिर किसी ने बतलाया तीन, और अब सरकारी हवाले से एक ही गोली लगने की बात मानी जा रही है । अब हक़ीक़ी आज़ादी लॉन्ग मार्च के…
BLOCK
Getting stuck is a ‘state of mind’. Words do not desert a writer, ideas and guts do. Stream of consciousness never dries up. The nib might get broken or blunted. Paper might begin soaking up ink. The bottle can leak, ink can become colourless. What gets flashed in the mind might not take shape on…
Paraali, Paroles and a Fallen Footbridge – The Vishwa Guru has a lot on its Plate
Why this hullabaloo over the Oreva Company official’s description of the Mourvi tragedy as an ‘act of God’? When the local municipality handed over the repair, management and control of the footbridge to this company on a Rs. 300 stamp, lock, stock and barrel, did they not anoint the officials of the company as veritable…
The Akwasi Addo Alfred Kwarteng level of Economic Mismanagement
Liz Truss, who might not outlast a lettuce, has let Akwasi Addo Alfred Kwarteng take the fall after the two of them had made Britain the laughing stocks across the world with their mini-Budget. Although the name carries the aura and grace befitting the high office of the Chancellor of the Exchequer and the Second…
हाय, मैं आहत हो गया ! (कविता)
हाय, मैं आहत हो गया, क्यूँ ली तुमने जम्हाई, क्यूँ मुस्काए मुझको देखकर, क्यूँ पलकें ही झपकाईं, क्यूँ झटका देकर ग्रीवा को, माथे से लटें सरकाईं, हाय, मैं आहत हो गया, तुमको लाज भला नहीं आई ! इतना कम था क्या, जो फिर ले बैठे अंगड़ाई, ऊंचे हाथ खेञ्च कर पीछे, पृष्ठ बढ़ा अल्हड़ता से…
कोई बड़ी बात नहीं है
चार बच्चों का बाप होकर बढ़ती जनसंख्या का रोना रोना कोई बड़ी बात नहीं है । केवल अपने आप को भरमाना भर है कि बच्चे भले आपके हों, पर आप उनके बाप नहीं भी हो सकते हैं । खासकर तब जबकि आप संसद परिसर में उपस्थित हों । चाहिए थोड़ा-सी कल्पना शक्ति, और बेहिचक दोगलापन…
समाचार पत्रों में अंतर्निहित हास्य
समाचार पत्रों को पलटिये, वे सामान्य जीवन और आम आदमी को सदैव ट्रोल करते मिलेंगे । वे सही मायनों में हास्य का पुलिंदा हैं । वैसे राजनीति और अपराध, जो अखबारों के दो प्रमुख स्तम्भ हैं, उनसे जुड़ी खबरों में हास्य, व्यंग्य, कटाक्ष, लांछन, उलाहने, तमाशा और निर्लज्जता अंतर्निहित हैं । इस कारण अधिकांश शीर्षकों…