सृजन बेला (कविता)

यह सृजन की बेला है,

तारे सब ओझल हो चुके,

इंदु अब भी अकेला है ।3।

समय नहीं समिधाएँ चुनने का,

यह मुहूर्त हवन करने का है,

यह पल है मन की सुनने का ।6।

यह घड़ी है उन्मुक्त उड़ने की,

कल्पना को पर देने की,

अपना कुछ मौलिक रचने की ।9।

अभी अँधियारा है गगन में,

फिर चहचहाहट चालू होगी ,

जब पौ फटेगी कुछ क्षण में ।12।

वृक्षों की स्याह परछाइयाँ

अब होने लगी हरित हैं,

अंधेरे की अभ्यस्त आँखें

प्रकाश की बाट जो रही हैं ।16।

कुत्ते अब शांत हैं ,रात्रि भर देकर पहरा,

अलसा रहे हैं , शयनकाल जो ठहरा ।18।

पक्षी बैठे हैं प्रतीक्षारत,

घुसकर अपने नीड़ों में,

शीघ्र वह क्षण आने को है,

जिस बिन्दु से पहले तक रहे अंधेरा,

ठीक उस पल पर खुल जाए सवेरा ।23।


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