अब नहीं जागूँगा, तो कब जागूंगा? अब नहीं भागूंगा, तो कब भागूंगा? जाग कर करना क्या है, यह पता नहीं है, भाग कर जाना कहाँ है, नहीं जानता, कहाँ पता करना है, किससे पूछें कहाँ जाना है, कोई नहीं बताएगा, सब के सब स्याले केवल उलाहने देंगे, देते ही रहेंगे । गाय नहीं हूँ…
Category: Hindi Poems
बड़े परिवार में जन्मा मोहब्बत का मसीहा ! (कविता)
अपनी मातृभूमि को नफरत का बाज़ार बताने वाला, मोहब्बत को दुकान पर बिकता पकवान समझने वाला, जनसेवा को जनता पर एहसान समझने वाला, समर्थन न देने वालों को नादान समझने वाला, स्वतंत्र वर्तमान को खानदानी इतिहास का ग़ुलाम समझने वाला, सर्वोच्च सत्ता को बपौती का सामान समझने वाला, वोटों के लिए जयश्री राम को हराम…
धंधा या वंशवाद ? (कविता)
वकील का लड़का जज बनेगा,जज का लड़का वकील,वंशवाद नहीं, धंधा है ये,तुम देते रहो दलील,ज्यादा दुखता हो पेट में,तो कर दो फाइल अपील,काले कौवे सारे मिलकर,कर देंगे तुम्हें ज़लील. कहते हैं व्यवस्था इसको,चलता इसमें खून-पैसा-जुगाड़,औलाद ही बाप की वारिस है, बाप खोलता है बंद किवाड़,दोष न निकालो अगले का,चलना सबको यही है दांव,है पास में…
उधड़ूँ थोड़ा, थोड़ा बुन लूँ (कविता)
मन की इच्छा लिखने की है, पैरों को पर चलना है , बरस रही है बरखा रिमझिम, मौसम में भी रमना है, छाता टांगू, जूते पहनूँ, या बैठ मेज पर भाव उड़ेलूँ, कलम चलाऊँ या फिर पैर, करूँ कविता, कर आऊँ सैर, चलते-चलते सोचूँ-सोचूँ, लिखते-लिखते उड़ ही जाऊँ, उधड़ूँ थोड़ा, थोड़ा बुन लूँ, त्रिशंकु बन…
छुक-छुक प्रश्न (कविता)
तटीय क्षेत्र, अनंत विस्तार, सागर और वसुंधरा को पृथक करती पेड़ों की प्राचीर । न अभी-अभी स्टेशन से छूटी है, न ही गंतव्य में प्रवेश कर रही है, यात्रा के मध्यरत दृष्टिगोचर हुई यह छुकछुक गाड़ी – क्या रुकी है, या फिर है गतिशील? चित्र यह नहीं कह पाएगा, न ही सुना सकेगा किसी प्रकार…
इस अटकल पच्चू संसार में (कविता)
सो रही मेरी बिटिया, उसके बगल में पड़ी गुड़िया, सामने वाले पेड़ पर कूँ-कूँ करती लाल चिड़िया – खेल शुरू हुआ नहीं, समय भी तो हुआ नहीं, खिलाड़ी ही नहीं पहुंचे अभी तो इस लोक में, उस लोक में लीन हैं, पर वहाँ के खेल तो मैं देख सकता नहीं, चक्षु मेरे दिव्य कहाँ? में…
हाय, मैं आहत हो गया ! (कविता)
हाय, मैं आहत हो गया, क्यूँ ली तुमने जम्हाई, क्यूँ मुस्काए मुझको देखकर, क्यूँ पलकें ही झपकाईं, क्यूँ झटका देकर ग्रीवा को, माथे से लटें सरकाईं, हाय, मैं आहत हो गया, तुमको लाज भला नहीं आई ! इतना कम था क्या, जो फिर ले बैठे अंगड़ाई, ऊंचे हाथ खेञ्च कर पीछे, पृष्ठ बढ़ा अल्हड़ता से…
कविता करना अपराध है (कविता)
कविता नहीं करना कोई अपराध नहीं हो सकता- न लिखकर पुस्तकें अलमारियों पर न लादना, न पढ़कर उन्हें दिमाग पर कोई बोझ ही डालना, न सुनकर किसी की बनाई दुनिया में खो जाना, न सुनाकर उन्हें दुनियावालों को बेवजह भरमाना, कविता नहीं करना कोई अपराध नहीं हो सकता । बल्कि कविता करने से बड़ा अपराध…
हर सुबह, सुबह जैसी ही होती है(कविता)
हर सुबह, सुबह जैसी ही होती है, आँखें खुली नहीं तामझाम में फसा देती है । संसार भले कहीं बुलाए, न-बुलाये, यह जीवन में धका ही देती है । जागिए चौंक कर या चुंबन-आलिंगन से, स्वप्न से निकालकर यथार्थ पर गिरा देती है । संकल्प लिवा देती है नाना-प्रकार के, साँझ तक के सहस्त्रों कार्य…
एक ताले का मद (कविता)
भरी गर्मी की भीषण दोपहर में घर के फाटक पर टंगा हेरिसन का ताला हूँ, धूप में चमचमाता, ज्येष्ठ ऊष्मा को झेलता, मैं ही वह हिम्मतवाला हूँ – जो खड़ा है प्रतिरोध बन घर और संसार के बीच, जो आने वाले शत्रु से सतर्क है, अपनी मुट्ठी भींच जो झेल रहा है लू प्रचंड, इस…
गुलमोहर के प्रेमपथ पर (कविता)
मार्ग पर चलते हुए, मनन-चिंतन करते हुए, जहां तक गयी दृष्टि, छितराए पड़े थे, लाल फूल ही लाल फूल…….. ग्रीवा उठाकर इधर-उधर देखा, चहुंओर हरा और लाल, अनंत नीला परिप्रेक्ष्य, बीच-बीच में पुष्पवर्षा, साधारण सड़क किसी चित्र-सी सुशोभित । ना मानो, तो कुछ नहीं, हैं वही पुराने गुलमोहर, जो बूझ सको सौन्दर्य अगर…
एक टंगी हुई साँझ (कविता)
पीली, शुष्क, ज्येष्ठ की साँझ में, मद्धम पवन मदोन्मत्त हो, महीन धूल को इधर से उधर कर रही है – नीम की शाखें लहलहा रहीं, वायु के स्पर्श का अनुभव मुझे भी हुआ, पर मेरे वस्त्र-केश एवं मार्ग पर बैठा कुत्ता अलसाए पड़े हैं, यह साँझ कुछ टंग सी गयी है, लगता है अब कुछ…