उफ, गर्मी बहुत है जमाने में ! (कविता)

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उफ गर्मी बहुत है जमाने में,

दम-सा घुटता है तंग घुसलखाने में,

नीला आसमान ही अब छत है मेरी,

कितना मज़ा आता है खुल्लेआम नहाने में ।

चिलचिलाती धूप मे तप चुका तन,

रोंए उभारती मंद-मंद पवन,

ठहरा हुआ जल है ठंडा बहुत,

हल्के स्पर्श पर ही कुलांचे भर्ता मन ।

छिपकर नहाते तो भी स्वच्छ हो जाते, ‘

पर चार लोग हमें देखकर शीतल न हो पाते,

अकेले ही नहाये तो भी क्या ग़म है,

कोई रोकटोक नहीं, इतना क्या कम है ।

पानी भर-भर कर स्वयं पर उँड़ेला,

सूंड बस टेढ़ी अपनी,नहीं कोई और झमेला,

स्नान करके चल दिये अपनी मदोन्मत्त चाल,

कल तय समय पर आएंगे फिर गजराज विशाल ।


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  1. Anonymous says:

    beyond ordinary

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