करते रहिए TRAY,कोषीश,पृयास – कभी तो ठीक बैठेंगे अक्षर विन्यास

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(अरे सुनो, भाषाई शुचिता के ठेकेदारों – हमें ब्याहकरण से बैर नहीं, पर स्पेलिङ्ग तेरी अब खैर नहीं। जो कुछ लिखा है जानभूझ कर लिखा है, टाइपो नहीं है । समझ में आ जाए तो ठीक है, वरना समझना कोई मुलभुत ज़रूरी नहीं है)

हे अत्याचारिणी इंग्रेज़ी !

बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि तेरे बाप-दादा बिल्लायत बापस चले गए और तुझे यहीं छोड़ गए । आखिर ऐसा क्यूँ हुआ री? क्या तेरा अल्हड़पना और अकड़ उनसे भी बरदास्त नहीं हुए? या जैसे चीन ने बिस्वगुरु बनने हेतु कोरोना छोड़ रखा है, वैसे ही ब्रितानिया ने दुनिया को कुत्ता बनाकर सबके गले में भाषा का पट्टा डाला हुआ है? कब तक तेरी चाबुक हम दीनों-हीनों के पिछवाड़ों पर पड़-पड़ कर उसे लाल करती रहेगी ? कब तक तेरे गुलामों की फौज हमें लानतें परोसती रहेगी?

ये फें-फें करके इंग्लिस बोलने वाले और लिखी इङ्ग्रेजी में have/ had की गलतियाँ ढूँढने वाले क्या अपनी मात्रभाषाएँ भी त्रुटि-free तरीखे से लिख-बोल सकते हैं? अगर हीनदि एवं प्रादेशिक भाषाओं में इन्हें इङ्ग्रेजी शब्द, लहजा इत्यादि घुसेड़ने से परहेज नहीं है, तो इंग्लिस में मिलावट कर देने पर इतना क्यूँ किलसते हैं ? बाकी इनको सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों के vowels खा जाना, और बेसिरपैर के शॉर्ट फोर्म यूज़ करना नहीं अखरता । मुझे बस डबल स्टेंडर्ड्स गिनाने हैं, करूंगा तो वैसे भी मैं अपने मन की ही !

‘काशी का अस्सी’ में भाईसाहब इंग्रेज़ी से कुश्तम-पछाड़ करते रह गए पर हाथ लगा ठुल्लू । कपिल शर्मा का समगृ हास्य-व्यंग्य ही इंग्लिस जानने लेकिन उसमें come for table होने-न होने के इर्द-गिर्द घूमता है । अमिताभ बच्चन ने तो नमक हलाल में सीना ठोक कर घोषणा कर दी थी – I can talk English, I can walk English, I can laugh English, because English is a very funny language. फनी है तो हंसने-हँसाने दो न परवानों, काहे शेक्सपियर के नाती बनकर सताते हो ? भाषा को लेकर वैसे अमिताभ सदैव ही सतर्क रहे । याराना में अमित जी ने जनदगी/ज़िंदगी को साज/सोज और साज़/सोज़ के बीच में बहुत घुमाया । क्या कहते हैं उसे ? नुक़्ता ! इसमें अगर आपने वह बिंदी नहीं टिकाई, और गले को कुल्ले की मंशा से नहीं भरभराया, तो उर्दू वाले आपको वो ज़िलालतें देंगे कि आप आजीवन याद रखेंगे ।

ये भाषाई नुक्ताचीनी अधिक पढ़े-लिखों को सेंस ऑफ पावर प्रदान करती है और कहीं न कहीं कम kwalified पर दबाव बनाती है । इङ्ग्रेजी और हुर्दू वालों के हत्याचार पुराने सत्ताधीशों और संभ्रांतों के संस्कार हैं। हीनदि वालों की टीस दीन-हीन-दुर्बल प्राणियों वाली है- “समझ में तो आ ही रहा है न !” । नई-नई अकड़ और थोड़ा-सा प्रतिवाद नए शासकों वाला है-“ऐसे ही लिख पाएंगे , कौनसा छात्रवृति ही मिल जाएगी” । वे स्वयं को बुद्धिजीवी भले कह लें, कोई शुद्ध हिन्दी वालों को इंटेलेक्चुअल नहीं मानता । (कोई- इलीट मठाधीश)

लेकिन यह मानना पड़ेगा कि नाम-का ही सही, थोड़ा अनुशासन तो आवश्यक है । वरना हीनदि कि पुंछ मरोड़ने से कौन किसको रोक सकता है ? हिन्दी टाइपिंग में ऑटोकरेक्ट भी ठिक से काम नहीं करता । वैसे अगर भाषा और उक्खारण का कोई महत्व ही नहीं होता तो काहे हमने ये ‘कच्छा फाफड़ा, पक्का फाफड़ा” और ‘चिकनीचाची ने चमनचूतिये को चाँदनी रात में चार चपत जमाई” जैसे मुखसाफ़ बना रखे हैं , जिन्हें एक-दूसरे से बुलवा-बुलवाकर हिन्दीभाषी आज भी हँसते हैं !

खैर मुझे गुलामों और पिट्ठूओं से लेना-देना कम है, अपनी हीनदि के तथाकथित मतवालों से अधिक है । खासकर उनसे जो पाकिस्तान के कप्तान इंज़माम के ‘लड़के बहुत अच्छा खेले’ पर हँसते थे, और अजहर चिचा के ‘boys did well’ पर फख्र महसूस किया करते थे । उन हिन्दी-माध्यम वाले दोस्तों से भी जिन्होने मुझ इङ्ग्रेजी वाले की बेइज्जती करके कहा था – आज इसकी क्या हीनदि की है ! मेरे हीनदि के मास्टर ने हमें बताया था – हीनदि में सोचोगे तो दलिया मिलेगा, इंग्लिस ख्याल देखोगे तो porridge की प्राप्ति होगी । इन हीनादियों को मल्लू-तमिल भाइयों के थोड़े से अटपटे उक्खारन एवं वचन-लिंग आदि की गड़बड़ियों पर उचल-उचल कर तालियाँ- पीटते भी मैंने देखा है । आज इनमें से कुछ को ‘tray tray till you dye” पर उड़ाई जा रही खिल्लियों पर आपत्ति है, लेकिन हल्की-सी गलती पर किसी को बकस्ने को ये स्वयं भी तैयार नहीं हैं !

अपनी भाषा को लेकर मन मे भावना है हींन, उसके साहित्य से नहीं है कोई सरोकार – कैसे भी लिखना, कैसे भी बोलना- हिन्दी की बेकदरी हम स्वयं किए हुए हैं । नई हिन्दी के नाम पर उर्दू और हिंगलिश परोसी हुई है । पर कोई और करे तो बुरा लगता है । किसी और की भाषा के साथ स्वच्छंद होने का मन करता है । हिन्दी को लेकर हम उतने सख़्त इसलिए नहीं हो पाते क्यूंकी ब्रज, अवधी, कन्नौजी, बुन्देली, मगही, मैथिली, राजस्थानी, हाड़ौती, हरयानवी, भोजपुरी और अन्य के बीच में फस कर रह जाते हैं । वरना ये हमारे ही पुरखे थे जिन्होने संस्कृत को नियम-कायदों में इस कदर बांध दिया कि बोलने-लिखने से भी सामान्य लोग बचने लगे । अतः देववाणी की लगभग विलुप्ति के लिए हमारा कठोर, गैर-लचीला रवैया ही जिम्मेदार है ।

लेकिन ये मानना पड़ेगा कि इंगरेज़ी को भाषा के तौर पर नहीं, तो भी skill या कौशल के तौर पर तो भाव देना ही पड़ेगा । आम संवाद में भले उसकी टांग मरोड़िए, गला दबाये या हत्या कर दीजिये, पर ओफ़ीशियल वार्तालाप में तो साफ-सुथरा बोलने की उपादेयता है । वहाँ ये tray, tray से sexeed ना हो पाइएगा । अगर आप सोशल मीडिया पर भाषा-बाग़ी नहीं हैं, तो मोबाइल पर ऑटोकरेक्ट को तो ऑन रख ही सकते हैं। वैसे कईयों के लिए ऑटोकरेक्ट भाषाई गुणवत्ता बनाए रखने से  बड़ा सरदर्द साबित हो सकता है । हालांकि यह भी सच है कि कोई भी ऑटोकरेक्ट nation of father को राष्ट्रपिता / father of the nation नहीं कर सकता । इसके लिए तो एक बाबू ही रखना पड़ेगा । अजित पवार रख रहे हैं, या रख लिया है । करोड़ों खर्च करके । आप भी tray कर लें ।

अब अङ्ग्रेज़ी भाषा तो पूर्णतया फोनेटिक्स पर आधारित है नहीं, जबकि हिन्दी और अधिकांश भारतीय भाषाएँ हैं । ऐसे में समस्या अङ्ग्रेज़ी की भी है, केवल हमारी ज़बान की ही नहीं । थोड़ी बहुत भूल-चूक माफ होनी चाहिए । कुछ ढील हमें उच्चारण के लिए भी मिलनी चाहिए। भाषा के साथ कितनी छूट लेनी है इसे सहूलियत, साहित्य, प्रयोग, व्यापार, राजनीति एवं हास्य-विनोद के सामांजस्य पर छोड़ देना चाहिए । जो ठीक से लिख-बोल नहीं सकता, उसके लिए संवाद भाषाई-पवित्रता से अधिक माने रखता है । कोई पढ़ा-लिखा जानभूजकर सीमाएं पार करे, या भाषा के सम्मान के साथ अठखेलियाँ करे, उसपर तो हमले बनते हैं । साहित्य में कभी-कभी प्रयोग करने पड़ते हैं , वे भाषा की उन्नति के लिए शिरोधार्य हैं। दफ़तर और व्यापार में सरल किन्तु सही इस्तेमाल आवश्यक है । हास्य-विनोद से कोई अछूता नहीं है । जब जिसका मन करे वो हास्य, कटाक्ष, उपहास करे, परंतु जवाबी कार्यवाही या प्रतिकार पर रूआँसा न हो । हाँ, सामाजिक-राजनैतिक बदनीयती के चलते हास्य-विनोद अगर सूजे हुए टट्टे बनकर झूलने लगें तो घुँघराली अधोजटाओं के छूआने मात्र से उन्हें शॉर्ट किया जा सकता है । वाहियात और निहित स्वार्थ से किए गए मज़ाक का जवाब है सामने वाले को उसकी मानसिक ग़ुलामी और स्वयं के संस्कारों से दूरियों का हवाला दे देना । बाकी सब चलता है !

जय हिन्दी ! इंग्रेज़ी और उर्दू से भी पीसफुल कोएग्ज़ीस्टेन्स!

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