अपनी घंटी पर मैं अब खुद ही बैठूँगा (मेरी कविता)

अपनी घंटी पर मैं अब खुद ही बैठूँगा, बजने से पहले फरमाइश पूरी कर दूंगा, तलब लगे जो चाय की तो है केटली तैयार, बोतल भर रख लिया है पानी, प्लेट में अल्पाहार, सिगरेट-गुटका वैसे बैन हैं, मँगवाने ही नहीं हैं, टिफ़िन, तश्तरी सजे मेज पर, चिंता ही नहीं है, फाइलें ढोना कल की बातें,…

The Note Sheet Skirmish

I opened a file, went through the contents, and made the following observation- Note#5 Pl discuss The reader must not bother about Note #1-4 here. They pertain to routine work and hold no particular interest. (Pressed: Send Back) I received back the following Note within two minutes- Note#6   Pl inform the date and time….

Walk the Dog, Carefully!

If walking your dog inside a sports stadium can get you transferred out of a shit hole to some idyllic heaven, imagine what could be achieved if you can make your dog pee or poo inside it? Exile to Tibet perhaps, or banishment to Xinjiang, if the trends hold. Perhaps the Grandees sitting in the…

नौकरी के अक्षर – संज्ञा, विशेषण, क्रिया या विस्मयादिबोधक ?

इक्कीस अप्रेल को सिविल सेवा दिवस मनाया जाता है । किसी मित्र ने फेसबुक पर एक कविता साझा की, जिसमे विभिन्न सेवाओं के तीन-चार अक्षरों वाले एक्रोनिम, यानि परिवर्णी शब्दों के अधिकारी के नाम से जुड़ जाने, और उनसे उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला गया था । यह लघु कविता मुझे वस्तुस्थिति के…

चप्पलतंत्र से चपलतंत्र तक (व्यंग्य)

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि कैकईनन्दन भरत कहीं राजवंशी न होकर एक अफसरशाह मात्र तो न थे ? आखिर एक अधिकारी ही इतना कुशल हो सकता है कि पादुकाराज जैसे नीरस गल्प में प्रजा की आस्था को चौदह बरस तक जगाए रख सके । अजी चौदह की क्या कही , भरत…

In Defence of the Demigod

An unconditional apology by an officer would always be seen as an admission of guilt. Hence, some excuse or justification must always be added to it. An unconditional statement on a subordinate’s action would be construed as censure by the superiors or the Service Association. Hence reprimand the one in the dock, but also endorse…

वोक अफसरों को गुस्सा आता है तो ज्वालामुखी फटता है

जीवन में कभी मानस नहीं बाँची, हाथ में वाल्मीकि रामायण नहीं उठाई, अट्ठारह पुराणों के नाम नहीं गिना सकते, उपनिषद लिखा जाता है या उपनिशद- नहीं जानते, षडदर्शन को सिविल सेवा परीक्षा का प्रोबेबल टू-मार्कर जानकर रटा, तीर्थयात्रा जाना पड़ा तो उसे ट्रेकिंग बताया, महीनों से मंदिर में नहीं घुसे हैं, हवन का ह नहीं…

MOOD POST OFFICE

(1) Ordeal finally over, Six! gently screams, The steadfast clock, Disinterested, unconcerned, The sincerely lazy lizard Just sleeps off. (6) Again, the sun sets, Sets to rise again, Rise in the same garb, To perform the same job. (10) Who pays the Sun? Why does it burn? Day and night, East to west, Whose race…

सरकारी टॉवल नहीं हटाऊंगा  !

  कुर्सी पर सफ़ेद टॉवल देखते हैं , तो वे जलते हैं । जो सतरंगी हो, तो खिल्ली उड़ाते हैं । लेकिन सबसे घोर चिढ़न उन्हे होती है पीताम्बर या भगवा टॉवल देख कर । पर अब करें तो क्या करें ? हर किसी नत्थुगैरे की मनोकामना पूरी करने का ठेका तो हमने ले नहीं…

बहुत सर-सर हुआ सर ! अब हम तो सफ़र करते हैं !

(नौकरी तो बोस ने भी छोड़ी थी , पर वह बात कुछ और थी )   “बहुत सर-सर हुआ सर , अब सर उठा के चलेंगे, आगे पढ़ेंगे , आगे बढ़ेंगे , व्यापार करेंगे , कहानियाँ गढ़ेंगे , मन की सुनेंगे  , मन की कहेंगे , क्रांति लाएँगे , क्रांति बनेंगे, जितना बचा है जीवन…

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ? (कविता)

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ? चारों दुर्दांत द्रुत धावक निकले, पलक झपकते ही सौ मीटर भग लिए, सिपाही उसेन बोल्ट तो नहीं , पर शार्प शूटर गजब के निकले , धाँय-धाँय, धाँय-धाँय किया चारों को ढेर ! (6) पुलिस बेचारी और करती भी क्या ? भीड़ से बचा लाए थे हत्यारों को ,…

ख़ाकी को धरना देने का क्रेज़ हुआ है (कविता)

  खाकी को धरना देने का क्रेज़ हुआ है, बहुत हैरान,परेशान बेचारा रंगरेज हुआ है, करनी होगी अब वर्दी पर चूने से पुताई, लाल-सफ़ेद सब मिट जाएगा जब होगी धुलाई, जब से है लौकप में उनपर ही थर्ड डिग्री लगाई, पुलिस कैप पर है तब से ही गांधी टोपी चढ़ाई , काले कोटों का जबसे…