
सम्पत पिछले पच्चीस सालों से दौड़ा नहीं था ।
इतने सालों में वह जहां भी गया चल कर गया । जाने की जल्दी भी हुई तो गाड़ी में बैठ कर गया, या फिर जहाज़ में उड़कर । काल उसपर इतना भारी कभी नहीं हो पाया की दौड़ा ही दे । कभी पैदल चलकर समय पर पहुँच पाना संभव न भी हुआ, तो उसने देरी से पहुँचना गवारा किया, पर नहीं दौड़ना था,तो नहीं ही दौड़ा ।
वह नवीं कक्षा में था जब उसने अंतिम बार दौड़ लगाई थी । स्कूल में एक क्रिकेट मैच खेलते हुए वह विकटों के बीच में आखिरी बार भागा था । उस पारी में उसकी ईंज़मामी दौड़ के चलते टीम के दो प्रमुख बल्लेबाज रन आउट हो गए थे । पहिले रन आउट के बाद सम्पत अपराध बोध से ग्रस्त हो गया और इसी दबाव के चलते दोबारा अंटसंट दौड़ पड़ा और विचित्र परिस्थितियों में दूसरे बैट्समेन को भी रन आउट करवा बैठा । मैदान में उसके विपक्षी और डगआउट में बैठे साथी, यहाँ तक कि अंपायर और स्वयं रन आउट हुआ खिलाड़ी भी उसपर गिर-गिर कर हँसे थे । इस फजीहत के कारण सम्पत का खेलप्रेम हवा-हवाई हो गया । बल्लेबाजी करते रहना अर्थहीन जान पड़ा । इसी उधेड़बुन में वह अगली गेंद पर अपने बल्ले समेत विकेटों पर जा गिरा और हिट विकेट करार दिया गया । उक्त दुर्घटना के फलस्वरूप गंभीर मोड पर फसा वह मैच हास्य- व्यंग्य सम्मेलन में परिवर्तित हो गया । चारों ओर फिर से ठहाके और हसगुल्ले बरसने लगे । सम्पत ने मैदान के बीच से भाग जाने की चेष्ठा की, पर उसके पैरों का वजन इतना बढ़ गया था कि घोंघे की तरह सरक-सरक कर बमुश्किल पेविलियन लौट सका । और फिर वहाँ से सम्पत हो लिया चंपत कभी न लौटने के लिए !
उस दिन जो सम्पत शर्मसार हुआ फिर कभी मैदान में प्रविष्ट नहीं हुआ । होता भी तो उसे टीम में चुनता कौन? तब से घर पर ही बैठा चरता रहता और पढ़ता जाता । इसके चलते एक अच्छे कॉलेज में दाखिला पा गया । वहाँ चार सालों तक रहा लेकिन कभी न किसी खेल में शिरकत की, न ही एक बार भी रनिंग, स्प्रिंटिंग अथवा जॉगिंग करने में रुचि दिखाई । फिर नौकरी लग गयी, बीवी पा गया, बच्चे दुनिया में ले आया । जिस तरह रन दौड़ा करता था, उसी तरह नौकरी भी की और प्रेम भी । किसी भी फाईल में अपने सहकर्मियों को फसा कर निपटवा देना, बेवजह रन लेने के लिए दौड़ पड़ना, भ्रम की स्थिति पैदा करना – ऐसा तो उसका काम करने का तरीका था । प्रेमलीला के दौरान भी कभी तो अपने छोर पर शीघ्रता से पहुँच जाता और संगिनी को मझधार में छोड़ देता, तो कभी संगिनी किनारे लग जाती और स्वयं को भँवर में फसा पाता ।
एक बार जो उसके जीवन की लय गड़बड़ाई, जो अन्य मनुष्यों और परिस्तिथियों से उसका तारतम्य बिगड़ा, तो फिर पटरी पर न अपने आप लौटा, न ही उसने पटरी पर लौटा लाने की ईमानदार कोशिश ही की । माँ उसके स्वास्थ्य की चिंता करती तो कुछ दिन प्रातः उठ कर टहलने निकल जाता । बीबी उलाहने देती तो कुछ दिन पुशअप अथवा योग करने का स्वांग भर लेता । लेकिन सम्पत मोट्टड़ के लिए अब दौड़ना हराम था । उसके पैर जम चुके थे । वह स्वयं को एक पेड़ मान चुका था । वह खुद को भागता हुआ चित्रित कर ही नहीं पाता था । मन ही मन अपनी जगहँसाई की पुनरावृति होने का भय भी उसे सताता । अपने दौड़ने पर बच्चों द्वारा खुलकर और बीवी के मन ही मन हंसने की कल्पना से वह अवसाद में चला जाता ।
लेकिन यदि आपके जीवन की कुल निर्धारित दौड़ों में से एक बाकी रह गयी हो तो आपको उसे कभी-न-कभी दौड़ना ही पड़ता है, चाहे अंतिम पलों में ही क्यूँ नहीं । ठीक कुछ इसी तरह जगहँसाई का हिसाब-किताब भी चलता है । एक दिन सम्पत बीवी-बच्चों संग सड़क किनारे खड़े ठेले से खरीदी हुई तंदूरी चिकन ठूस रहा था । एक बड़ा-सा गास लेकर उसने चिकन पीस पकड़े अपने हाथ को नीचे किया ही था कि एक भन्नाया हुआ कुकुर गुर्राकर उसपर झपट पड़ा । सम्पत के रोंगटे खड़े हो गए और मानो पिछवाड़े में -गजनवी मिसाइल लेकर भागने लगा । वह भागा, भागा और ऐसा भागा कि भागता ही रहा – सम्पत आगे-आगे, कुत्ता पीछे- पीछे, कभी सम्पत का हाथ तो कभी उसके कपड़े मुंह में दबाता । उसने चिकन पीस फेंक भी दिया पर कुत्ता पीछे लगा रहा । यह अविस्मरणीय दृश्य जिसने भी देखा वही ‘रोलिंग ऑन द फ्लोर’ एवं ‘लाफिंग माय एस ऑफ’ हो गया । हंस-हंस कर जमाने-भर का हाल बुरा हो गया– उसके बीवी-बच्चे भी अपनी हँसी नहीं रोक सके, बाकियों का तो कहना ही क्या । कनखियों से अपनों को खुद की व्यथा पर खिलखिलाते देखकर सम्पत ने निश्चय किया कि अबकी बार न वह स्वयं रन आउट होगा, न ही अपने बीडू को होने देगा । उसने पैरों की गति बढ़ाते-बढ़ाते इतनी तेज़ कर दी कि स्वयं ही विमान बनकर बैकुंठ रवाना हो गया । जैसे महाभारत-काल में एक कुत्ता युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग जा पहुंचा था, इस श्वान ने भी सम्पत के साथ-साथ स्वर्ग पहुँच कर ही दम लिया ।
ऐसा हैरतअंगेज सीधा प्रसारण देख कर दर्शक पहले हँसे, फिर घबड़ाये, फिर लोटपोट होकर हँसते-हँसते रोने लगे । सम्पत की बीवी ने इन्स्टा रील बनाकर वाइरल कर दी । सम्पत की अंतिम दौड़ से प्रभावित होकर जगहँसाई का सदमा झेल रहे बहुत से सम्पतों ने दौड़-भाग को पूर्णतया त्याग देने का फैसला किया और इस अंतिम दौड़ को कुछ अर्थ प्रदान किया ।
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