
कल मियां साहब की बारात थी. ज़माना उन्हें सर्राखों पर बैठाये हुए था. रईसों जैसे ठाठ, शहजादों जैसा रौब. शादी के जलसे की रात थी जनाब. सजीधजी दुल्हन उनकी बेगम बनने का इंतज़ार कर रही थी.
गाजे-बाजे बजाता काफिला ससुराल पहुंचा. लड़कीवालों ने बड़े के आइटामों का इंतज़ाम कर रखा था. मियां साहब के संगी- साथियों में कुछ हिन्नो भी थे. सभी हिन्नो भैंसे नहीं खाते. उन्होंने चिकन खाने की फर्मायश रखी. मियां साहब को अपनी चंगेज़ी- तैमूरिया विरासत याद आ गई. उन्होंने भी चिकन चंगेज़ी की माँग उठा दी. काजू- टोमेटो की ग्रेवी खाने की प्रबल इच्छा मियां साहब के मन में भी उठी.
मांग कुछ खास न थी, और शायद न ही गैर-वाजिब भी.ससुर साहब मान भी जाते. लेकिन स्यालों को मियां साहब की टोन कुछ खटकी. जीजा बना नहीं, अभी से ओर्डर बजा रहा.उन्होंने संवेत्स्वर में इंकार कर दिया.
“ना जी. हम बस बड़े खिला पाएंगे, चिकन नहीं. हो नहीं पायेगा. इतनी ही बात हुई थी.”
मियां साहब भी मुगल शहजादों की ऐंठ पाले घूम रहे थे. तमक कर बोले-
“फिर हमसे भी कबूल न हो पायेगा. चिकन चंगेज़ी नहीं तो निकाह नहीं”
जिंदगी भर समान्य लौंडों को कोई टके के भाव नहीं पूछता, फिर शादी के दिनों में राजाबाबू बना दिये जाते हैं. राजसी कपड़े, तलवार, जुतियाँ, घोड़ी की सवारी, हर आदमी आपके हालचाल पूछता और दुआ देता, साले- सालियों आगे- पीछे, ससुराल वालों की मनुहार- दिमाग तो खराब होगा ही.
खैर हिन्नो प्रेम था या चिकन लव, दोस्तों की इज़्ज़त का ख्याल या फिर थी फ़र्ज़ी मुग़लिया अकड़, कह नहीं सकते. पर दूल्हे का महीन, अनमना- सा इंकार बाण की भाँति उड़कर दुल्हन के सपनों के मटके को छेद गया. दुल्हन तो पहले ही मन मार कर राजी हुई थी, झटके से बिदक गयी. “जो आदमी दोस्तों को चिकन चंगेज़ी खिलाने के चक्कर में निकाह न पढ़ने की धमकी दे सकता है, उसके साथ पूरी ज़िंदगी कैसे काटूंगी?” दुल्हन ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए. शादी केंसल. खा- पी के चलो अपने अपने घर.
बड़े के आइटाम पेश हुए और खाने वाले उन्हें सफाचट कर गए. अधिकतर हिन्नो दोस्त बीफ तो नहीं है पूछ- पूछकर बड़े उड़ाते रहे. जिन हिन्नूओं को चिकन ही चाहिए था, उन्होंने बाहर वाले ठेले पर से लेकर तंदूरी चिकन ठूंसा. होने वाली दुल्हन ने थाने में उत्पीड़न और दहेज की रपट दर्ज करवा दी. मियां साहब की रात हवालात में काटी. शेरवानी पहनकर किसे नींद आती है? पंचायत के बुड्ढे मान मुनव्वल करने में जुटे रहे पर उनकी एक न चली. मियां साहब ने मुआफ़ी मांगी, निकाह पढ़ने की इच्छा जताई और जो हुआ उसपर खेद भी जताया, पर होने वाली बहू-बेगम टस से मस न हुई. कोई कुछ भी कहता वह एक ही सवाल पूछती-
“समझाईश पर निकाह पढ़ भी लेगा तो भी कभी घर में चिकन चंगेज़ी न परोसे जाने पर ऐसा शौहर तलाक़नामा नहीं पढ़ डालेगा, इसकी क्या गारंटी है? “
गारंटी कौन दे? बिगड़े दूल्हे को तो फिर भी पुलिस का डंडा संभाल सकता है. पर बिदकी दुल्हन के सामने तर्क, दंड, प्रेम, लोभ,लाज – लिहाज़, कुछ नहीं चलता. मियां साहब हल्के और अकेले आदमी थे, हल्के और अकेले ही रह गए.
इस दुर्घटना के बाद, जिसके चलते मियां साहब आज़ाद परिंदे ही रह गए, उनके दोस्तों ने एक जियो और जीने दो पार्टी का आयोजन किया. अमुक पार्टी में अताउल्लाह खाँ की वोल्युम सत्ताईस के नग़मे खूब बजे, और चिकन चंगेज़ी न सिर्फ जमकर भगोसा गया, बल्कि एक-दूसरे पर फेंका और हवा में उछाला भी गया. पाकिस्तान पाइन्दाबाद के नारे के साथ!