
“मेन बात यह है कि गुड्डू मुस्लिम ……”, फिर धाँय-धाँय-धाँय…..और सारे सपने सच।
कुख्यात अपराधी अशरफ के मुंह से अब अमर हो चुका यह अर्धवाक्य तब झर ही रहा था कि जब शूटरों ने उसकी और उसके भाई अतीक अहमद की गिद्धलीला पर विराम लगा दिया । अतीक और अशरफ अल्लाह मियां को प्यारे हो गए, और कैमरे पर यूं गुंजाया गुड्डू मुस्लिम का नाम वायरल हो गया । कौन है यह आततायी जिसको जाते-जाते भी अतीक और अशरफ जैसे दुर्दांत याद फरमा रहे थे । क्या वे उसे मुखबिरी या दगाबाजी के लिए कोस रहे थे ? या अपना समझ कर मदद के लिए पुकार रहे थे ? क्या गुड्डू मुस्लिम से कोई डर था, या फिर गिला कर रहे थे? क्या औलाद-सरीखा मान कर उसका नाम जप रहे थे?
स्वघोषित जानकारों की माने तो फरेब और दगा करना गुड्डू मुस्लिम की फितरत में है । मुखबिरी कर-करके ही उसने अपना नाम बनाया है, वरना उत्तर प्रदेश में बम मारने वाले तो सैंकड़ों मिल जाएंगे । गुड्डू मुस्लिम या गुड्डू बमबाज़ यू पी कानून-व्यवस्था पर नज़र रखने वालों के लिए कोई अनजाना नाम नहीं है । पूरे परिदृश्य में उसका महत्व शोले के सांबा जितना तो है ही । पहले पहल गुड्डू का नाम हुआ बमों के निपुण निशानेबाज के तौर पर । बदनाम लेकिन हुआ धोखेबाजी के किस्सों से । लेकिन ये भी है कि शेर के शिकार को चुरा कर या उसका बचा-खुचा खाने पर भी सियार, लोमड़ी, लकड़बग्घा अपयश नहीं पाते । उनकी वही फितरत जानी गयी है । गुड्डू मुस्लिम को मुखबिरी ही भाती है तो वही सही । वह आज भी ज़िंदा है,और प्रदेश पुलिस उसे पकड़ नहीं पायी है । सत्येंद्र सिंह, संतोष सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल और असद अतीक अहमद – ये चार वे बड़े नाम हैं जिनके बारे में जगजाहिर है कि गुड्डू से धोखा खाये और अब मारे जा चुके हैं । इनके अलावा न जाने कितने औरों का काटा होगा गुड्डू ने !
गुड्डू बमबाज़ ने सबसे पहले अम्बेडकरनगर के सत्येंद्र सिंह लंगड़ की जी-हुज़ूरी कर नाम बनाना शुरू किया, फिर एक दिन लंगड़ की राइफल लेकर उसके ही दुश्मन संतोष सिंह की मारुति में जा बैठा । सत्येंद्र सिंह दिन-दहाड़े भून दिया गया । इसके बाद गुड्डू सरायरासी (अयोध्या) के संतोष सिंह का खास हो गया । तब नजदीकी का फायदा उठाकर उसे लखनऊ ले गया जहां धनंजय सिंह के साथ मिलकर उसे जहर देकर मार डाला । बाद में गुड्डू रंगबाज़ श्रीप्रकाश शुक्ल के संपर्क में आया, लेकिन मौंका भाँपकर उसने एसटीएफ़ से उसकी मुखबिरी कर डाली और शुक्ल को मरवा दिया । ऐसे सरवाइवर का क्या कीजिएगा भला?
इसके बाद बहुत समय तक गुड्डू मुस्लिम अतीक गेंग से जुड़ा रहा । पाकिस्तान से आने वाले हथियारों की होशियारपुर से डिलिवरी लेकर वही उन्हें ठिकाने लगाता था । इस साल उमेश पाल हत्याकांड के दौरान असद अतीक और गुड्डू फिर लाइमलाइट में आए । हत्याकांड के फुटेज में जो दुस्साहसी बमबाज़ उमेश और उसके पुलिस गार्ड पर बम पर बम मार रहा है, वह गुड्डू मुस्लिम ही है । असद के पकड़ाये जाने के पीछे गुड्डू की मुखबिरी हो सकती है । शायद यही निष्कर्ष अशरफ और अतीक ने भी निकाला होगा । पिछले कई दिनों से गुड्डू मुस्लिम की गिरफ्तारी की अफवाह चल रही है । सच बस इतना है कि गुड्डू और अतीक की बेगम शाइस्ता परवीन अभी तक फरार हैं, और गुड्डू का नाम रटते-रटते अतीक और अशरफ अल्लाह मियां अपना टिकट कटवा चुके हैं ।
ऐसा ही एक बमबाज़ और है – सत्तू गोलगप्पा, जिसने पिछले हफ्ते सरकार पर छक कर गोलगप्पे बरसाए । ये बात अलग है कि असद के एनकाउंटर और फिर अतीक-अशरफ की सरेआम हत्या से हुए धमाकों में इस गोलगप्पे की चिटपिट कहीं दब कर रह गयी । सत्तापक्ष बोल रहा है कि जो फटा था वह हीपोलीन का चिकना बुलबुला था । धुर-विरोधी ढ़ोल फाड़ रहे हैं कि बारह सौ रुपए का गेस सिलेन्डर फटा था । दिल्ली मे चर्चा आम है कि आबकारी नीति का बिल फटा था । ऐसा तो नहीं कि किसी सजीले रंगमंच का पर्दा फटा हो, या फिर कोई दुत्कारे हुए, तिरस्कृत वीथीश्वान की महत्वकांक्षा का फुग्गा फट गया हो । वीथीश्वान मज़ेदार शब्द है, गौर फरमाइएगा !
वैसे फटा तो कुछ अवश्य है । पुलवामा का चालीस किलो आरडीएक्स किसी को स्मरण है?

अपना ये सत्तू बहुत बड़बोला और नटखट है । केमरा से आँखें चार होते ही वह रहस्योद्घाटन करने पर आमादा हो जाता है । उसे अपनी वाणी की गूंज बहुत भाती है । बड़े और महत्वपूर्ण व्यंजनों जैसे नमो नान, डोवाल बड़ा, राजभोगनाथ और शाही पनीर के साथ अपनी निकटता के किस्से झाड़ने की उसकी आदत-सी है । हालांकि सत्तू गोलगप्पे ने मनगढ़ंत दावे करने और मिथ्या आरोप मढ़ने जैसी चारित्रिक कमज़ोरियाँ भी समय-समय पर स्वीकारी हैं । लेकिन विपक्षी कथनात्मक को चलाए रखने के लिए इस पानी-पुरी का बिकना बहुत आवश्यक है, सो इसे बेचने का प्रयास तो किया जाता रहेगा ।
गोलगप्पा वैसे किसी खालिस ब्रांड का नहीं है और इसे मिश्रित स्रोतों से उत्पन्न हुआ बताया गया है । विभिन्न सदनों में पहुंचा है, महामहिम के तौर पर चार जगह बैठाया गया है । जब कश्मीर में सरकार द्वारा इस कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण भोज दिया जा रहा था, तब सत्तू गोलगप्पा ही डिश-ऑफ-ऑनर था । नमो नान और शाही पनीर को गोलगप्पे के स्वाद और कुरकुरेपन पर इतना भरोसा था, कुछ तो बात अवश्य होगी इस सत्तू कहीं के में । अब इसे पागल बादल बता कर यूंही खारिज भी आखिर कैसे किया जा सकता है?
वैसे भी वामी-कामी-स्लामी-वोक-सोरोस संतति-लिब्बो-जिस्सु गेंग को आरोपों की सत्यता इत्यादि से कोई सरोकार नहीं है । गोलगप्पा स्वयंभू फटा हो चाहे गुड्डू मुस्लिम ने दे मारा हो, गेंग ने सरकार के विरुद्ध नृत्य-गायन एवं भांड प्रदर्शन आरंभ कर दिये हैं । मकसद केवल हँगामा खड़ा करना है । अपने रोजगारदाता के प्रति निष्ठा और समर्पण भाव ही इनका टूलकिट हैं । समवेत स्वर में असद अतीक देशभक्त की एङ्कौंटर में हुई मौत पर ग़म भी मनाया जा रहा है, अतीक और अशरफ की सरेआम हत्या को जैसे-तैसे पचाया भी जा रहा है और गोलगप्पे के आरोपों को मुख्यधारा की चर्चा में चलाया भी जा रहा है ।
चौबीस तक अब यही चलेगा । फिर नया टूलकिट आयेगा । नए किस्म के धमाके होंगे …….
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