
तर्क जब भी उतरा तरंगिणी में,
सदैव उसे परिवर्तित पाया,
कल भी शिप्रा, आज भी शिप्रा,
मुझे न अंतर समझ में आया,
जब भी उतरा मैं सरिता में,
माँ ने ममता से नहलाया,
प्राणप्रदायी, पुण्यसलिला,
मुक्ति याचक तट पर है आया,
धवल जल में कर्म धो-धोकर,
आंचल मैला हुआ सदानीरा,
प्रवाहमान पर भक्ति भाव से,
मोक्षदायिनी माता शिप्रा । 12।
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