
इतने वर्षों में यह तक जान नहीं पाया
कि समय के साथ
आयु बढ़ती है
या घटती जाती है ?
साथ समय के घटती है समझ,
इतना तो हूँ समझता,
वृद्ध भला क्या समझेगा वर्तमान को?
अवस्था का लेकिन समझदारी से नहीं,
लेना-देना है तो
स्वप्नों के मूर्त विधान से, (साकार होने से, tangible)
परिवर्तन की प्रत्याशा से, (आशा)
प्रेम की ललक से,
उपार्जन की क्षुधा से, (कमाई)
जठराग्नि की प्रबलता से, (भूख)
ईश्वर में आस्था से,
अज्ञान के बोध से.
न इंदराजी का खेल है, (accounts)
न अनुभव के एकत्रीकरण का,
मनुष्य का आभामंडल एक चलती घड़ी है,
पर चूंकि बात समझदारी की बात चल पड़ी है,
तो वय एक संख्या भर है
आस्तित्विक प्रश्न उठाती,
संकट का आभास कराती,
मुनादी है – अवश्यंभावी प्राणान्त की ।
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