
मालवा में पानी की कमी है । पिच की ठीक से तराई नहीं हुई तो सूखा रह गया । बिना घास के ढीले विकट पर पहले अवर से ही धूल उड़ने लगी थी । मैच की पाँचवी गेंद को बेतहाशा टर्न मिला । कंगारू स्पिन तिकड़ी के सामने आईपीएल सुपरस्टार्स के होश फाख्ता हो गए । अपने खोदे गटर में बीसीसीआई की टीम खुद ही धस गई ।
मालवा की मिट्टी काली है । कपास और मूँगफली के लिए अत्योत्तम । पहले लाल मिट्टी मंगवाकर एक बढ़िया पिच तैयार किया गया था, जिसपर तेज़ गेंदबाजों और फिर बाद में स्पिन को मदद मिलती है । होल्कर के विकट पिछले कुछ टेस्ट मैचों में बढ़िया खेले थे । पर बाहर की मिट्टी में इंदौरी महक नहीं थी, इसलिए आसपास के खेतों से काली मिट्टी मंगवाकर पिच पर बुरक दी गयी और नयी सतह का निर्माण हुआ । नतीजा रहा शून्य सीम मूवमेंट, मनचला बाउन्स और कातिल टर्न, और अंततोगत्वा भारत का ऑस्ट्रेलिया के समक्ष केवल सात सत्रों की टेस्ट क्रिकेट में ही समर्पण । इस बार बीसीसीआई को कुछ स्पेशल मांगता था, तो उन्होने खुद ही ऑर्डर कर के कचरा पिच बनवा दी ।
इस सब जुगाड़-पानी, अफरातफरी, हाय-तौबा और चोरी-चकारी के बाद भी भारत यह मैच जीत जाता अगर हमारे पास देशभक्ति और जीतने की लालसा के साथ-साथ बल्लेबाजों की एक टुकड़ी भी होती । पर हमारे पास तो हैं पोंदु महाराज और पूरणपोली । गिल समझ गया था ज्यादा टिक नहीं पाएगा तो चार-पाँच बड़े शॉट खेल कर कुछ रन जुटाने में लग गया । आगे कूद कर उसने जो बल्ला भांजा, बेचारे दर्शक गेंद को सीमा रेखा के पार ढूँढने लगे । और गेंद थी बेवफा, बल्ले को चकमा देकर मिडिल स्टम्प में जा धँसी । अय्यर यहाँ-वहाँ बल्ला फेंक कर कुछ रन जुटाने में सफल रहा, पर पोल उसकी भी खुल गयी कि आपकी जान सांसत में हो तो यह आदमी भरोसे के लायक नहीं है । दुनिया के सबसे बड़े खिलाड़ी पूरणपोली ने बल्ले को टेंनिस रैकेट की तरह तिरछा चलाया, पर गेंद पैड पार जा लगी । पाँव था जमा अंगद के पैर की तरह विकट के ठीक सामने । पूरणपोली को पग से बाधा देने के आरोप में आउट करार दे दिया गया । नाराजगी में पोली ने रिव्यू लेने की ज़हमत भी नहीं उठाई । विकट-कीपर भरत दुष्यंत-पुत्र भरत के नक्शेकदमों पर चल लायन के दाँत नहीं गिन पाया । चिंटू पुजारा की चर्चा करने का कोई तुक नहीं है क्यूंकी अपने को एक मापदंड वह स्वयं भी नहीं मानता । अक्षर को क्रम में ऊपर भेजा जा सकता था, पर जडेजा उसे अपने ऊपर भेजा जाना सहन नहीं कर पाता । कुलमिलाकर हम मज़े-मज़े में दो बार सस्ते में निपट गए ।
इस भारत-दुर्दशा के लिए आप टी-ट्वेंटी को मत कोसिए । उतनी आक्रामकता से खेलते तो दोनों पारियों में ठीक-ठाक टोटल लगा ही लेते । इंदौर टेस्ट में भारत को कन्नूर लोकेश राहुल को ड्रॉप करने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा । नव-विवाहित खिलाड़ी अपनी वधू के भाग्य से चमकता है । होल्कर स्टेडियम को प्रकाशमय करने का अवसर हमने गंवा दिया ।
अच्छी बात यह है कि पूरी तरह बेइज़्ज़त होने के बावजूद भारतीय टीम का मनोबल ऊंचा बना हुआ है । कप्तान पोंदु वड़ापाव ने पिच को कोसने की बजाय लॉयन को अजीत कुमार की संज्ञा दे डाली । वही अजीत कुमार जिसे सारा शहर लॉयन के नाम से जानता है । कौनसा शहर, किसी ने पूछ डाला ? फिर वह इंदौर ही रहा होगा । मोट्टड़ मौज-मौज में यह भी कह गया कि जनता का मनोरंजन करने के लिए ही भारतीय बल्लेबाजी क्रम जल्दी पसर गया, ताकि टेस्ट क्रिकेट जनता के लिए ज्यादा उबाऊ नहीं हो जाये । मैच हार कर स्टेडियम से निकलती भारतीय टीम ने मूनवाल्कर ट्रेफिक कॉप के मनमोहक नृत्य का आनंद उठाया और सहर्ष तालियाँ बजाईं । यह सब एक परीकथा की तरह ही तो है । दो-तीन दिन नेट्स लगा कर स्पिन खेलने का क्रैश कोर्स करने का अवसर था पर टीम ने इंदौरी पोहे और सराफा की नारियल पेटिस खाने को तरजीह दी । अक्षय कुमार की तरह टेस्ट क्रिकेट में हर मोर्चे पर विफल साबित हो रहे पूरणपोली सपत्नीक उज्जैन निकल लिए जहां बाबा महाकाल की भस्मा आरती में सम्मिलित होकर उन्होने विश्व शांति और देश की प्रगति की कामना की । एक प्रशंसक द्वारा यह पूछे जाने पर कि अगला टेस्ट शतक कब आएगा, और क्या उन्होने उसके लिए बाबा से मनौती की है, भूतपूर्व कप्तान ने मुस्कुराकर जवाब दिया – “होली आने वाली है । पानी बरबाद न करें । कुत्तों को रंग न लगाएँ । मिठाइयाँ न खाएं । सभी स्वस्थ रहें, उन्नति करें, बस इतनी भर प्रार्थना है” ।
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