
टूटते अंधेरे से फूटती पौ में
बिछी काली सड़क की देह विद्यमान है,
अनवरत बहते यातायात से किन्तु
स्वप्न और संकल्प सप्राण हैं .
मदधम शीतल पवन में,
धीमे-से सरसराती झाड़ियाँ,
पास आते वाहनों का दंभी कोलाहल,
दूर जाते हुओं के वेग का आवेग,
उड़ती हुई पन्नियाँ और धूल,
बिखरे पड़े कागज़ और कागज़ के फूल.
चम-चम करती मेरी बत्ती की लालिमा,
विरामरत यात्रा का प्रश्नचिह्न?
अधजगे पखेरूओं की आकुल शांति,
अनेकानेक जीव निद्रा में अस्त-व्यस्त,
अनभिव्यक्त दुराग्रहों की यह बेला भारी,
बहुत ही भारी,
कुछ भी घट सकता है,
कुछ भी नहीं घटेगा,
कुछ भी नहीं घटेगा.