अरुणिका की प्रतीक्षा (कविता)

टूटते अंधेरे से फूटती पौ में

बिछी काली सड़क की देह विद्यमान है,

अनवरत बहते यातायात से किन्तु  

स्वप्न और संकल्प सप्राण हैं .  

मदधम शीतल पवन में,

धीमे-से सरसराती झाड़ियाँ,

पास आते वाहनों का दंभी कोलाहल,

दूर जाते हुओं के वेग का आवेग,

उड़ती हुई पन्नियाँ और धूल,

बिखरे पड़े कागज़ और कागज़ के फूल.

चम-चम करती मेरी बत्ती की लालिमा,

विरामरत यात्रा का प्रश्नचिह्न?

अधजगे पखेरूओं की आकुल शांति,

अनेकानेक जीव निद्रा में अस्त-व्यस्त,

अनभिव्यक्त दुराग्रहों की यह बेला भारी,

बहुत ही भारी,

कुछ भी घट सकता है,

कुछ भी नहीं घटेगा,

कुछ भी नहीं घटेगा.


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