
अब नहीं जागूँगा, तो कब जागूंगा?
अब नहीं भागूंगा, तो कब भागूंगा?
जाग कर करना क्या है,
यह पता नहीं,
भाग कर जाना कहाँ है,
नहीं जानता,
कहाँ पता करना है, किससे पूछें जाना कहाँ है,
कोई नहीं बताएगा,
सब के सब स्याले केवल उलाहने देंगे,
देते ही रहेंगे ।
गाय नहीं हूँ कि चरने जाना हो,
कुकुर हूँ नहीं कि गलियाँ नापनी हो,
दाना-पानी खोजती चिड़िया भी तो नहीं हूँ,
मनुज हूँ, सोया हुआ, खोया हुआ,
सूअर की नाई शिथिल पड़ा,
उठकर भागने भी लगूँ, कोई प्रयोजन तो हो,
गंतव्य तक पहुँचने पर परितोषिक कोई मिले,
मेरे उठ जाने और झूझने से संसार का भला होता हो,
वरना शैय्या पर डले रहने में भी हर्ज़ क्या है?
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