
किसी भी चित्र में यदि सूर्य विद्यमान है तो प्रभुत्व उसी का होगा । ऊर्जा और प्रकाश उत्पन्न करने वाला स्रोत कभी नेपथ्य में नहीं जा सकता । यहाँ तक कि चित्र देखकर ऊष्मा या शीत का अनुभव भी सूर्य की चमक के अनुसार उसके ताप के अनुमान पर निर्भर करता है ।
पर्वतमाला भी है । अपने स्थान पर खड़ी है, डट कर खड़ी रहेगी । पर्वतों का महत्व सूर्य के आगे या पीछे प्रतीत होने में है । सूर्य के अलावा कहीं दृष्टि अटकती है तो धुंधले से मार्ग पर । प्रकाश और ऊर्जा के बाद गति ध्यान खींचती है । चलायमन व्यक्तित्व के समाचार आकर्षण का केंद्र होते हैं । न हमारा कोई अपना उस मार्ग से आने वाला है, न ही हम स्वयं ही अब वहाँ से निकलेंगे, फिर भी यातायात में उत्सुकता तो रहती है ।
चलती हुई लेखनी दौड़ते हुए विचारों से अधिक प्रभाव छोडती है । यह अलग बात है कि ऐसा वह पर्वतों की तरह जमे हुए अक्षरों के माध्यम से करती है । ऐसे में फर्राटे भर्ती जिह्वा का क्या ? बोले गए शब्दों की महत्ता लिखे गए शब्दों से अधिक तो नहीं होती ।
फिर सूर्य भी तो दिन-भर ही रहता है । पहाड़ तो रात्रि में भी वहीं खड़े मिलेंगे । मार्ग भी स्थिर है, उस पर चल रहा यातायात भले क्षणभंगुर हो । खगोल के छात्र कह सकते हैं कि सूर्य का अस्तित्व भी स्थायी नहीं है । एक दिन ऐसा भी आयेगा जब सारी हाइड्रोजन समाप्त हो जाएगी । भूगोल के अनुसार पर्वतों की भी अनवरत कटाई की प्रक्रिया जारी है । पर्वत को एक दिन कंकड़ हो जाना है । ऐसे तो आप, मैं और यह चित्र भी नहीं रहेंगे । बात तो लेकिन चित्र की ही हो रही थी ।
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