
अपनी मातृभूमि को नफरत का बाज़ार बताने वाला,
मोहब्बत को दुकान पर बिकता पकवान समझने वाला,
जनसेवा को जनता पर एहसान समझने वाला,
समर्थन न देने वालों को नादान समझने वाला,
स्वतंत्र वर्तमान को खानदानी इतिहास का ग़ुलाम समझने वाला,
सर्वोच्च सत्ता को बपौती का सामान समझने वाला,
वोटों के लिए जयश्री राम को हराम कहने वाला,
उद्यमियों को उलाहने, मुफ्तखोरों को उकसाते रहने वाला,
राष्ट्रीय संकल्पना को कल्पना की उड़ान समझने वाला,
हर दिन ‘अल्पसंख्यक खतरे में है’ की माला जपने वाला,
अपने दल का गुगुलिया, (गुगुलिया- बंदर नचानेवाला, मदारी)
जनमानस का छलिया,
धर्म का कठमलिया, (कठमलिया- कंठी पहनने वाला ढोंगी साधु)
देश का दुर्भाग्य,
पर अपने परिवार का चिराग है ।
बड़े परिवारों के चिराग ऐसे ही होते हैं।
#हिन्दीकविता #कविता #हिन्दी #hindipoem #hindipoetry #मसीहा #कुकुर #गुगुलिया #कठमलिया #चिराग #वंशवाद #राष्ट्र #मोहब्बत #नफरतकाबाज़ार #राजनीति
बहुत सुंदर व्यंगात्मक कथन
LikeLike
This draft is so good therein made observation is also extremely well
LikeLike