
इमरान खान को गोली लगी कि गोलियां, ठीक से कहा नहीं जा सकता । चली थीं चार, पहले बताया गया लगीं हैं दो – दोनों पाँव में एक-एक, फिर किसी ने बतलाया तीन, और अब सरकारी हवाले से एक ही गोली लगने की बात मानी जा रही है । अब हक़ीक़ी आज़ादी लॉन्ग मार्च के लिए तालिबान खान के निकलने का इंतज़ार है, हर भाषण में नित-नए खुलासे होते रहेंगे । हमले के तुरंत बाद इमरान को खुद के बनाए हुए हस्पताल शौकत खानम ले जाया गया था, जहां पर प्राथमिक इलाज़ हुआ । जब सरकारी मेडिकलकर्मी तसदीक करने पहुंचे तो उन्हें टरका दिया गया – न एक्स रे थमाया, न ही ब्लड रिपोर्ट ही सौंपी । खून में ड्रग्स पायी जाती तो ‘अस-सादिक़, अल-अमीन’ का कच्चा चिट्ठा खुल जाना था । इसी हायतौबा में शाहबाज़ शरीफ ने कह डाला कि जी इमरान खान का तो पोस्टमोर्टम तक नहीं हुआ । पोस्टमोर्टम ! यही है असली पाकिस्तान – बदनाम, बड़बोला, बदनसीब, बेहया मुल्क, जिसकी कौम अब तक लड़ी हर लड़ाई हारी है और जिसे न कोई तकल्लुफ है, न ही जिसकी कुछ अच्छा करने की नीयत ही है । सोच केवल इतनी भर है कि हिंदुस्तान की बरबादी की प्लानिंग करते रहना है, चाहे इसके लिए दुनिया भर में कटोरा लेकर घूमना पड़े या जिहाद-फेक्ट्री के तौर पर ब्रांड होना पड़ जाये ।
इधर कमर जावेद बाजवा का भी हो गया है । नवंबर 29 को रिटायरमेंट है । दो कार्यकाल बहुत होते हैं । अब कहने-सुनने की जियादा इच्छा नहीं रही, हटने का मन बना लिया है । सामान पैक हो चुका है, ट्रांसपोर्ट भी अरेंज्ड है । कोर कमांडर बंद कमरे में फैसला करेंगे । पाकिस्तान की सड़कों पर बलवे मचे हुए हैं, तालिबान खान आईएसआई और आर्मी पर ज़बानी हमले बोल रहा है और आवाम को उकसा रहा है, पशतून, बलोच और गिलगित-बालटिस्तान के लोगों में व्यापक रोष है, अर्थव्यवस्था फर्श पर है, रोज़ का राजनैतिक संघर्ष और अमरीका-चीन में बेलेन्स बनाने की कवायद कठिन है – बाजवा इस फ़ाइंडिंग द गोइंग टफ़ एंड फील्स बर्ण्ट आउट । या फिर हो सकता है मनुहार ही चाहता हो । कौन नहीं चाहता ? सारे हिस्सादर हाथ जोड़ कर गुजारिश करें तो एहसान लाद कर दो साल गद्दी पर बैठे रहने में हर्ज़ क्या है । कभी- कभी कुर्सी आपके पिछवाड़े से चिपक जाती है । झाड़ने से भी नहुईं गिरती । बाजवाज़ सीम्स ग्लूड ठू !
इमरान नियाजी बाजवा के बने रहने पर मान सकता है । शरीफ को भी बाजवा के बने रहने में परेशानी नहीं होनी चाहिए । पता नहीं नया आदमी किस ओर करवट ले बैठे ? बड़े मियां शरीफ का पाकिस्तान आना अधरझूल में है । फौज के जनरलों को मनपसंद राजनेता पालने की छूट है, पर राजनेताओं को मनपसंद जनरल रखने की नहीं । ऐसा करके ही सेना ने अपना अधिपत्य बरकरार रखा है । वैसे आर्मी भी पूरी तरह एकजूट नहीं है । सेना के वो अधिकारी जो स्वयं चीफ बनने के ख्वाब देखते होंगे, शायद चाहते हों कि बाजवा अब निकल ले । एक बुढ़ऊ अपने मिलिट्री बूट टांगेगा तभी तो बकियों का भी नंबर लगेगा । एक कैंप है दाढ़ी रखने वाले जनरलों का जो तालिबन खान से हमदर्दी रखता है, जबकि विस्कि गुड़कने वाले जनरल उसे कतई पसंद नहीं करते ।
इमरान ने सारा बखेड़ा पिछले साल चालू किया जब आईएसआई चीफ आसीम मुनीर को केवल आठ महीनों के कार्यकाल के बाद ही बर्खास्त करके नियुक्त किया अपने करीबी फैज हमीद को । फिर जब सेना ने हमीद को आईएसआई से पदोन्नत कर कोर कमांडर बनाना चाहा तब इमरान ने रजामंदी देने में ना-नुकुर की । बिना कोर कमांडर बने आप पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ नहीं बन सकते । इमरान ने कोशिश की कि इस ज़रूरत को पार पा कर बाजवा के बाद फैज को सीधे आईएसआई से आर्मी चीफ़ बना दे , लेकिन यह संभव नहीं हो पाया । तब हमीद को पेशावर कोर कमांडर बनाकर भेजा गया । अब बाजवा ने उसे भावलपुर शंट कर दिया है । फिलहाल फैज हमीद टॉप पर पहुँचने की दौड़ से बाहर है । इमरान के आदमी को शाहबाज़ सरकार नामित करने से रही । शरीफ अपना प्यादा न बैठा दे यह डर इमरान को खाये जा रहा है । आसीम मुनीर तो इमरान को निपटा ही देगा । इसी के चलते इतनी जेद्दोजहद मची हुई है ।
इमरान खान अहमद नियाजी ने भयंकर माहौल बना रखा है । सत्ता से च्युत, अमरीकी गुडबुक्स से बाहर, अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा घायल भेड़िया ज़ोर-ज़ोर से ‘न रुकेगा तू,न थकेगा तू’ चिल्ला-चिल्ला कर इस्लामाबाद पर हक़ीक़ी आज़ादी लॉन्ग मार्च करने पर आमादा है । क्या ‘नया पाकिस्तान’ का नारा देते-देते इमरान सेना की नाक में नकेल डाल देगा? रियासत-ए-पुदीना का सादिक़-ओ-अमीन क्या फौज को बाड़े में बंद कर देगा? कमर बाजवा पद पर बना रहे तो इमरान को फिर भी अन्तरिम सरकार और मध्यावधि चुनावों की आस बनी रहेगी । बाकी बाद में देखा जाएगा ।
अमरीका क्या चाहता है, कहा नहीं जा सकता । लेकिन किसे नहीं चाहता, इतना तो साफ है । इमरान खान ने लगातार अमरीकी हस्तक्षेप के आरोप मढ़े हैं । साऊदी- अमरीका की आजकल पहले जैसी नहीं छन रही है, पर किसी भी सुरतेहाल में पाकिस्तान को डूबने नहीं देने की ज़िम्मेदारी उन्हीं की है । चीन हर मौसम में पाकिस्तान की छाती पर चढ़कर मूंग दलता है । ग्वदर में विद्रोह सड़क पर उबल आया है । चीनी कर्मचारियों की सुरक्षा पर बनी है । जो चीन अमरीका में पुलिस चौकियाँ खोल सकता है, वह पाकिस्तान को खरीद भी सकता है । भयानक सरदर्द है । शरीफ और बिलावल भुट्टों की संभाल पाने की औकात नहीं है । एक बाजवा कब तक मुल्क को बचा कर रखे ? मामला बिगड़ते-बिगड़ते कहीं परमाणु हथियारों असुरक्षित हाथों में न पड़ जाएँ । चौबीस में भारत में चुनाव हैं । पीओके भी गरमा सकता है । भारत में गलत आदमी सत्ता में बैठा है । ऐसे में आवाम को लगा असल जम्हूरियत का नवा चस्का पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ सकता है, खासकर इसलिए क्यूंकी खान साहब का मिजाज ऐसा है कि या तो हम करेंगे राज़, या कर देंगे मुल्क को पूरी तरह बर्बाद । लगता है पाकिस्तान बर्बाद होकर ही रहेगा ।
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