
बूंदें अगर सुनाई दें पर दिखे नहीं तो भी इसे प्रामाणिक तौर पर बारिश का नहीं होना नहीं माना जा सकता । हवा में बूंदें देख पाना आसान नहीं होता । धरती पर हुआ गीला या भरे पानी में तलती जलेबियाँ देखकर पता लगाना फिर भी संभव है । लेकिन इसके लिए धरती पर प्रकाश पड़ना चाहिए । अंधेरे में झर-झर गिरती बूंदें कैसे दिखेंगी? बारिश नहीं गिर रही तो हो सकता है पानी की टंकी फूट गयी हो । या फिर किसी नलके से पानी चू रहा हो।
पानी का क्या है , किसी सड़ी-गली लाश से भी टपक सकता है । जो टपक रहा है वह तेजाब हो सकता है या फिर मरने वाले का वीर्य भी । हो सकता है किसी ने मूत्रदान किया हो । टपकते लहू और पानी की ध्वनि एक सी ही होगी । मन भी अगर तनाव से भर जाए तो रिसने लगता है । ज्यादा रिसेगा तो टपकेगा भी ! हो सकता है किसी के मन की पुकार हो ! हो सकता है मेरे ही भीतर की ललकार या चेतावनी हो?
कुलमिलाकर रात को टपटप होना न तो बारिश होने का प्रमाण है न ही कुछ घट ही रहा हो इसका भी। यह केवल आभास-भर भी हो सकता है । काल की दस्तक हो सकती है । पल भी टपकते हैं , और तय पलों पर मनुष्य भी ।
यह सब मैं जानता और समझता हूँ । लेकिन एक बार जो टपटप के फेर में पड़ा तो मुझे सोते से उठना ही पड़ा । कोई भी जीवित, स्वाभिमानी व्यक्ति उठेगा ही , वह भी तब जबकि वह अकेला नहीं सो रहा है और उसके संग शयनरत व्यक्ति भी इस टपूकड़े को अनुभव कर पा रहा हो । तो हे भद्र, मैं भी देर रात्रि को निद्रा देवी की गोद से उठा, और एक-एक करके सारे नलकों का निरीक्षण किया । दूसरी मंज़िल की अपनी खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो बारिश होती प्रतीत नहीं हुई । बाल्कनी में जाकर खुले में हाथ बढ़ा कर हथेलियाँ फैलाईं ताकि कोई संदेह न रहे । ऊपर से आँखें गड़ा कर धरती की ओर ताका तो उसे भी सूखा ही पाया । फिर अंदर आकर मटके का निरीक्षण किया । फ्रिज की पड़ताल की , बाथरूम के फ्लश जाँचे । फिल्टर का मुआयना किया । जब कहीं कुछ लीक होता नहीं मिला, तो बिस्तर पर आकर लेट गया और आत्मावलोकन करने लगा । छिद्र अगर बाहर नहीं तो भीतर ही होगा ।
अपने भीतर का छेद खोजते-खोजते मैं गहरी निद्रा में खो गया । पता नहीं कितनी देर के पश्चात पुनः झटके से उठा । कुछ टपक रहा था । कुछ, कहीं, क्या फिर से टपक रहा था ! एक बार वही सब दोहराया जो पहले किया था । कोई उत्तर नहीं मिला । अबकी बार मैंने लेटना उचित नहीं समझा, और लगा लिखने ।
तब से लिख ही रहा हूँ ।
लेप्टोप पर पड़ रही मेरी उँगलियों के टपोरों की टपटप में सारी ध्वनियाँ विलीन हो चुकी हैं ।
शब्द रिसते-रिसते वाक्य, अनुच्छेद और निबंध बन चुके हैं । मैं रहस्य से रहस्यवाद की ओर प्रस्थान कर चुका हूँ । जो टपक रहा था वह चेतन था । अगर भ्रम भी था तो प्रेरणा बन गया ।
#टपटप #टपूकड़ा #बूंदें #रहस्य #रहस्यवाद #प्रेरणा #चेतन #विचार #रेंडम #छिद्र #छेद #आत्मावलोकन #कौन #क्या #किधर #हिंदीलेख #हिन्दी
अतिसुन्दर
LikeLike