
अमरीकी रक्षा तंत्र और कॉर्पोरेट गठजोड़ सदैव किसी ऐसे शक्तिशाली, प्राणघातक शत्रु को चिन्हित करने में व्यस्त रहता है, जिसके विरुद्ध वह अपनी समस्त सैन्य एवं तकनीकी-प्रौद्योगिक क्षमता को लामबंद कर सके । यह मूल अमरीकी प्रवृति है – शत्रु अपने आप खड़ा हो जाए तो ठीक, नहीं तो उसे येन-केन-प्रकारेण पैदा किया जाए । चीन से तो अब अमरीका भय खाने लगा है । पुतिन को छेड़ने पर प्रति-कार्यवाही का भयंकर खतरा है, इसलिए रूस का हौव्वा बनाने में भी कठिनाई है । ईरान अपनी महिलाओं से ही परेशान है, उत्तर कोरिया को चीन मसलने नहीं देगा । ओसामा के बाद अल कायदा में दम रहा नहीं, आइसिस अरब-जगत से बाहर अपना असर छोड़ नहीं सका । पर एक रिपु तो चाहिए, तभी रिपु दमन के नाम पर अमरीका अपना मनोबल बनाए रख सकता है । महाशक्ति है, समय-समय पर ज़ोर आजमाइश नितांत आवश्यक है ।
अन्य देश किसी विश्वसनीय बाहरी खतरे के अभाव में अंदरूनी विरोध को कुचलने में व्यस्त हो जाते हैं, पर अमरीकी कल्पनाशीलता और नाटकीयता का कोई सानी नहीं है । ये स्टार वार और ड्रोन पावर वाली सभ्यता है । कुछ वर्षों पहले एक नया शत्रु घोषित हुआ – क्षुद्र गृह । पृथ्वी की ओर प्रचंड वेग से बढ़ते उल्कापिंड और एस्ट्रोइड साई-फ़ाई फिल्मों के रोचक विषय रहे हैं । जनमानस को बताया गया कि यदि ऐसी कोई टक्कर भविष्य में होती है तो हमारे गृह का हुलिया बिगड़ने का ही नहीं, बल्कि समस्त जीवन के नष्ट हो जाने की आशंका है । तब तो ऐसी किसी भी शिला को रोकने, ठोकने या दिग्भ्रमित करने का कौशल,तकनीक एवं अनुभव नासा एवं अन्य अन्तरिक्ष अजेंसियों के पास होना चाहिए । इस नाते लक्ष्य तय हुआ लगभग एक सौ दस लाख किलोमीटर दूर स्थित एक दोहरी क्षुद्र गृह प्रणाली में से छोटा वाला क्षुद्र गृह – डिमोर्फस । अपने से बड़े गृह – डिडिमोस- की परिक्रमा करता , 160 मीटर लंबा, फुटबाल मैदान से सवाई- डिमोर्फस । प्रश्न था कि क्या नासा ऐसी किसी चट्टान से पृथ्वी की रक्षा कर सकता है ? चाहे ध्वस्त करके अथवा कक्षा से डिगा कर ही ?
संसार को बचाने हेतु अमरीका और नासा कटिबद्ध हुए । बजट जारी हुआ छब्बीस सौ करोड़ रुपए । खगोलीय शत्रु का उदय हुआ तो नासा ने एक फिदायीन भी तुरतातुरत तैयार कर लिया । डार्ट- जिसे 22500 किलोमीटर प्रति घंटे के तीव्र वेग से भागते हुए, लगातार फोटो खेंचते हुए, डिमोर्फस से टकराना था- लांच हुआ । अंतिम समय तक डार्ट अपनी सेवाएँ देता रहा । डिमोर्फस को जहां भेदना था, वहीं भेदा । दायित्व निभाते हुए अंततः फना हो गया । भिड़ंत हो चुकी है, डार्ट अब नहीं है । परीक्षण का प्रथम भाग पूर्णतः सफल रहा । फिदायीन ने अपना काम बखूबी निभाया । अब देखना यह है कि क्षुद्र गृह क्या अपनी कक्षा से विचलित होता है ? एक प्रतिशत भी डिग गया तो बुढ़ऊ बीडेन को डींगे मारने का अधिकार मिल जाएगा । अमरीकी साख और हाथीनुमा बजट की लाज अब इसी पर निर्भर है ।
वैसे अमरीका का इतिहास रहा है इस तरह के डार्ट-फिदायीन तैयार करने का । ओसामा , सद्दाम, तालिबान, मेनुअल नोरिगा, और ऐसे कई अन्य दुर्जन हुए जिन्हें सीआईए ने पहले सिर पर बैठाया और फिर उन्होने अमरीका के विरुद्ध ही युद्ध घोष किया । आशा है कि डार्ट, डिमोर्फस से टकरा कर, पूरी तरह नष्ट हो गया होगा और भविष्य में नासा के किसी अन्य प्रोजेक्ट में खलल उत्पन्न नहीं करेगा । वैसे खुदा-न-खास्ता अगर ऐसा होता भी है तो भीमकाय बजट और दंभी नारों के साथ नासा जवाबी कार्यवाही के लिए तत्पर मिलेगा – अमरीकी होने का यही अर्थ भी है ।
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