लव जिहाद को लिब्रांडों का परोक्ष संरक्षण क्यूँ?

जब शाहरुख ने दिल्लीवालों पर पिस्तौल तानी था तब रवीश पाणे ने उसे अनुराग मिश्रा जा बताया था । शांतिदूत के बचाव के साथ-साथ ब्राह्मण को गाली – डबल इनाम पाइस होगा रवीश्वा !

शाहरुख दुमका में बड़ा कांड कर दीस,  लेकिन चेहरे पर शिकन तक नहीं । इंडिया टुडे के मामुओं ने उसे अभिषेक करार देकर समाचार चला दिया । चहुंओर भर्त्सना हुई तो सही नाम डाल दिया । फेक नाम बताने वालों को इनाम तो पहुंच ही गया होगा । शाहरुख को भी स्वयं का नाम अभिषेक बताए जाने पर बहुत गुदगुदी हुई । फ़ूटेज में मुस्कुराहट फूट रही थी । आखिर उसने अपना नाम बनाया है । एक लड़की पर गुस्सा निकाला है । दुनिया को बता दिया है एक जिहादी क्या कुछ करगुज़र सकता है । अब तक पुलिस विभाग से भी पूरा कोपरेशन मिल रहा था । बाकी फिर ‘एवरी सिनर हेस ए फ्यूचर’ – ये ज्ञान गंगा तो कोई भी जज कभी भी बहा  देगा ।

देश की जनता इस जघन्य अपराध से आश्चर्यचकित नहीं  है । बल्कि ये आम बात है । अमुक समुदाय के किसी छुट्टे सूअर का हिन्दू महिला को फसाकर प्रताड़ित करना , और झिड़क दिये जाने पर उस महिला पर किसी न किसी तरह से बल प्रयोग करना – ये हर दिन, कई बार होता है । सिर्फ दुमका , झारखंड या भारत में ही नहीं, उपमहाद्वीप में, बल्कि समस्त संसार में इस तरह की वीभत्स घटनाएँ होती रहती हैं, और करने वाले शाहरुख के भाई-बंद ही होते हैं । हमारा दुर्भाग्य है कि हमने आज तक नहीं सुना कि प्रत्युत्तर में लड़की ने, उसके परिवार ने या फिर समाज ने ऐसे पिशाच या उसके परिजनों की अंतड़ियाँ छिन्न-भिन्न कर डाली हों । ट्वीट अवश्य किए जाते हैं, वह भी बम्पर मात्रा में, क्षोभ अभिव्यक्त होता है- गली, नुक्कड़, चौराहों पर, ट्रेनों में, पार्टियों में । अगले दिन फिर कोई शाहरुख खबर बनाता है, और दुनिया भर के लिब्रांडे उसे त्रुटिपूर्वक अभिजीत या अविजित पांडे कहकर फर्जी नेरेटिव बनाने में व्यस्त हो जाते हैं । लिब्रांडे सिर्फ नाम की अदला-बदली से ही नहीं, लिंगभेद, पौरुषीय अहंकार और गरीबी टाइप के कारण प्रस्तुत कर के भी लव जिहाद सरीखे अपराधों की तीक्ष्णता को कम करने में लगे रहते हैं ।

वैसे नाम न भी बताते और ‘एक समुदाय’ कह कर खबर प्रसारित कर देते, तब तो फिर भी थोड़ी संवेदनशीलता दिखती  । कमसकम सेकुलरवाद का परचम तो बुलंद रहता । एक पर्दा तो डला ही रहता । जनता समझ फिर भी जाती, पर जिहादियों और लिब्रांडों की ज्यादा थू-थू न होती । अब मामला तुष्टीकरण के साथ-साथ हिन्दूफोबिया का भी हो गया है । महाराष्ट्र के सीएम शरद पवार ने 1993 के बंबई बम ब्लास्ट के दिन, यानि 12 मार्च 1993 को, एक तेरहवें ब्लास्ट के बारे में गलतबयानी की थी । उसके अनुसार यह ब्लास्ट, 12 अन्य ब्लास्ट के विपरीत, मुस्लिम बहुल इलाके में हुआ था । लिब्राण्डे इस नीच एवं सेक्युलर झूठ के लिए साहब की प्रशंसा करते नहीं थकते । जबकि एक सीएम ने यह असत्य वचन मात्र हिंदुओं को भ्रमित रखने के हिसाब से कहा था । उनपर हमला हुआ है और हो रहा है, ये वह जान नहीं पाएँ, कहीं सतर्क न हो जाएँ, यह इस प्रयोजन से कहा गया था । खैर इस सब में दुमका की  विक्टिम ( जिसके बारे में अधिक चर्चा कर के मैं उसकी ट्रेजडी को सामान्य नहीं करूंगा) और उसके परिवार को कितना न्याय मिल पाएगा, ये ‘सिनर’ का न्याय करने वाले दयानिधान पर निर्भर करेगा ।

लिब्राण्डे दुमका मामले की तुलना बिल्किस बानो के साथ कर रहे हैं । वामियों-कामियों का मजहब ही दलीलबाजी है, आप बुरा मत मानिए । अंकिता के लिए न्याय की गुहार और शाहरुख को फांसी की मांग वे बिल्किस का ज़िक्र किए बगैर कर ही नहीं सकते । उनकी बुद्धि पर तरस खाने की त्रुटि भी न करें, वे सब समझते हैं । बिल्किस के गुनहगारों को उम्र कैद हुई थी, चौदह बरस वे सलाखों के पीछे काट भी चुके हैं । रूटीन तौर पर मामला पुनर्विचार के लिए आया, और न्यायसम्मत तरीके से गुनहगारों को रिहा कर दिया गया । किसी को माफी नहीं मिली है, किसी को अनुराग या अभिषेक नहीं बताया गया है । इन पिशाचों का जो स्वागत किया गया था वह बेहद शर्मनाक था , और उसकी सब तरफ निंदा भी हुई । यही नहीं, बिल्किस मामले पर सुनवाई सुप्रीम अदालत में चल रही है ।  दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा । पर दुमका वाले मामले में पुलिस ने शुरुआत से ही केस को हल्का करने की कोशिश की, जो दुर्भाग्यपूर्ण है । तथाकथित अभिषेक को अपने मजहब के ही एक अफसर का सहारा मिल गया था ।

देशभर में पुलिस को हिन्दू हितों की रक्षा हेतु बाकी मजहबों से सख्ती से पेश आने में ज़ोर आने लगा है । देश के कानून को संप्रादयिक सद्भाव के सामने गिरवी रख दिया है । हाल में मद्रास पुलिस ने सांप्रदायिक उबाल का हवाला देकर एक प्रस्तावित पांडाल में गणेश-स्थापना की अनुमति देने से मना कर दिया । हाई कोर्ट ने सशर्त अनुमति दी है, पर साथ ही फरमान सुनाया है उस इलाके के मजहबियों को विश्वास में लेकर ही स्थापना की जाए ! रामनवमी जुलूस किन इलाकों से निकलेंगे, इसपर भी अमुक मजहब का वीटो माना जाने लगा है । लव जिहाद की रोकथाम के लिए क्या कोई कानून बन सकता है , या सामाजिक जागरूकता बढ़ा कर ही इस रोग का निदान किया जा सकता है, इस पर अभी तक कोई आम राय नहीं है । हम जिस दिशा में बढ़ रहे हैं, देर-सवेर हर गली और मोहल्ला पाकिस्तान हो ही जाएगा, पर फिलहाल हमें पाकिस्तान के बाढ़ पीड़ितों से संवेदना प्रकट करनी चाहिए, और हरसंभव मदद भी करनी चाहिए ।

जय हिन्द ।


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