
सो रही मेरी बिटिया,
बगल में पड़ी इक गुड़िया,
सामने वाले पेड़ पर
कूँ-कूँ करती लाल चिड़िया –
खेल शुरू हुआ नहीं,
समय भी तो हुआ नहीं,
खिलाड़ी ही नहीं पहुंचे
अभी तो इस लोक में,
जाने कहाँ लीन है,
पर उधर के खेल तो
मैं देख सकता नहीं,
चक्षु मेरे दिव्य कहाँ?
मैं केवल एक पिता,
छुटकी के स्वप्न में
क्या पता बनता हूँ राजा,
पर कैसे देखूँ उसका खेल-
सपना सबका अपना-अपना,
क्या वह सुलाती गुड़िया?
क्या वह बुलाती चिड़िया?
यह सब मेरी कल्पना,
मन, अधेड़ मन की,
ढूंढ़ता-फिरता हूँ अर्थ-
सो रही बिटिया में,
बगल रखी गुड़िया में,
कूँ-कूँ करती चिड़िया में-
थोप देता हूँ अपनी समझ,
तीर-तुक्के से चलते,
इस अटकल पच्चू संसार पर ।
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