
हर सुबह, सुबह जैसी ही होती है,
आँखें खुली नहीं तामझाम में फसा देती है ।
संसार भले कहीं बुलाए, न-बुलाये,
यह जीवन में धका ही देती है ।
जागिए चौंक कर या चुंबन-आलिंगन से,
स्वप्न से निकालकर यथार्थ पर गिरा देती है ।
संकल्प लिवा देती है नाना-प्रकार के,
साँझ तक के सहस्त्रों कार्य गिना देती है ।
उलाहने देना भी एक अदा है उसकी,
मेरी अपूर्णता का संज्ञान करवा देती है ।
चेताती है, बताती-स्मरण भी कराती है,
उत्तरदायित्व के बोझ तले दबा देती है ।
धवल पृष्ठ होती है हर एक सुबह,
हाथों में एक कलम थमा देती है ।
जा लिख ले जो लिखना है भाग्य में,
संभावनाओं के बांध बना देती है ।
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Very nice
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बहुत सुन्दर 🌻
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