
भरी गर्मी की भीषण दोपहर में
घर के फाटक पर टंगा
हेरिसन का ताला हूँ,
धूप में चमचमाता,
ज्येष्ठ ऊष्मा को झेलता,
मैं ही वह हिम्मतवाला हूँ –
जो खड़ा है प्रतिरोध बन
घर और संसार के बीच,
जो आने वाले शत्रु से
सतर्क है, अपनी मुट्ठी भींच
जो झेल रहा है लू प्रचंड,
इस त्याग पर क्यूँ न करे घमंड,
तप-तप कर कुन्दन होता जाता हूँ,
घर के फाटक पर टंगा,
मैं हेरिसन का ताला हूँ ।
घरवाले कुछ घर के अंदर,
काम है जिनको गए हैं दफ्तर,
भीतरवालों को रखूँगा भीतर,
बाकी दुनिया घर से बाहर,
मैं ही हूँ वह बिन्दु जिसपर
पृथक हो जाते- घर, संसार,
मैं ही हूँ वह रक्षक, रखता
अंदर को अंदर, बाहर को बाहर ।
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