गुलमोहर के प्रेमपथ पर (कविता)

on

मार्ग पर चलते हुए,

मनन-चिंतन करते हुए,

जहां तक गयी दृष्टि,

छितराए पड़े थे,

लाल फूल ही लाल फूल……..

ग्रीवा उठाकर इधर-उधर देखा,

चहुंओर हरा और लाल,

अनंत नीला परिप्रेक्ष्य,

बीच-बीच में पुष्पवर्षा,

साधारण सड़क किसी चित्र-सी सुशोभित ।  

ना मानो, तो कुछ नहीं,   

हैं वही पुराने गुलमोहर,

जो बूझ सको सौन्दर्य अगर तो,

रंग लाल, रंगत अति मनोहर, 

गुलमोहर हैं, गुल मोहर !

लाल फूल हैं, सुर्ख लाल!

आसक्त हो कर चमके लाल,

धूप में तपकर हुए लाल,

भक्ति में रंग गए लाल,

लहू से भी गहरे ये लाल !     

                                        

चूंकि प्रभु मस्तक पर सजाये,  

तो कृष्णचूड़ भी कहलाए,

आभूषणों से सुसज्जित वृक्ष को,

राज आभरण पुकारा जाये,

नाम चला लेकिन एक ही-

गुलमोहर ही जनमानस को भाए,

पुष्पित हो जब यह वृक्ष तब,

नगर विवाह-मंडप सा सज जाए ।


#गुलमोहर #कृष्णचूड़ #राजआभरण #भोपाल #हिन्दी #हिन्दीकविता #कविता #gulmohar #delonixregia #krishnachura #bhopal #hindi #hindipoem #hindipoetry #kavita #flowers #floweringtreesofindia

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s