
अधूरी कहानी के कहीं न पहुँच सकने का अवसाद है,
कभी ललकारता, कभी धिक्कारता मेरा अंतर्नाद है,
हर अगले शब्द, अगले वाक्य पर कोई न कोई विवाद है,
कलम की स्याही में जम चुका मवाद है,
ऐसे में निद्रा में झुला जाना मानो ईश्वरीय प्रसाद है,
महत्वकांक्षा के पौधे में समर्पित हुआ यह खाद है,
स्वप्न में हुआ आभास यह कथा तो अपवाद है,
जीवन और मृत्यु के मध्य का संवाद है,
जब काल ही नहीं पता क्या अभी के बाद है,
कैसे कर दूँ पूर्ण उसे जो बह रही निर्बाध है?
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