सत्या एकदम डेंजर था, भीखू तो बस बदनाम हो गया

बार का दरवाजा खुलता है । हेंडल खिंचने की आवाज़ सुनाई देती है ।

क्या यह सत्या की अंतरात्मा की आवाज़ है?

या फिर मौत की ?

शायद उसपर चढ़े हुए बदले के फितूर की हो?

ऊंची वॉल्यूम पर गाना बज रहा है –

हाँ मुझे प्यार हुआ, प्यार हुआ अल्लाह मियां , भरी बरसात में इकरार हुआ अल्लाह मियां …..

सत्या पहले इसी बार में वेटर हुआ करता था । यहीं तो जग्गा से उसका राड़ा हुआ था । कैमरा सत्या की आँखें बन कर मेन हाल में सरसरी निगाह से उसे ढूँढता है । जानता है वह हरामी वहाँ नहीं मिलेगा, वह अंदर वाले कमरे में ठाठ से बैठा होगा ।

फिर…दिखा, पीछे से । मुंह दूसरी तरफ करके बैठा है । पेग गटका रहा है, मुर्गा चाप रहा है ।  

पिस्तौल कॉक होने की आवाज़ भर से जग्गा को इल्म हो जाता है । भरी महफिल के शोरगुल में भी मौत की हल्की सी पदचाप उसे साफ सुनाई देती है । थोड़ी गर्दन घूमाकर आँखों की पुतली से सत्या को पिस्तौल ताने देखता है । सत्या पहली बार गेम करने उतरा है, आज तक घोडा नहीं दबाया, पर एकदम नर्वस नहीं है । कैसे चलाना है, भीखू ने अभी गाड़ी में बैठे-बैठे ही बताया था ।

पिस्तौल खोपड़ी से बस दो इंच दूर थी, उसके बाद बूम – और जग्गा खल्लास । अल्लाह मियां को प्यारा हो गया । हाँ मुझे प्यार हुआ अल्लाह मियां बज रहा था, बजता ही रहा । एकदम मक्खन थी , साली जर्मन मेड पिस्तौल चलाने का मज़ा ही अलग है । वो भी अगर खास दोस्त ने गिफ्ट दी हो, तो सुने पे सुहागा है ।

एक ही गोली चलाई सत्या ने । नो फाल्स मूव, नो पेनिक रिएक्शन । जब एक से काम हो गया, तो दूसरी क्यूँ बर्बाद करना ? फायर करके अपना फोर्म होल्ड किया, फिर फ़ौलोथ्रु में कमांडो की तरह हाथ पीछे लिया ।

क्या बोला था भीखू  – करना है, तो करना है ।

कर दिया सत्या ने । जग्गा से अपना हिसाब चुकता कर दिया ।

उस दिन भीखू जेल से छूटा, फिर कल्लू मामा के अड्डे पर सबने ‘मरेगा कल्लू मामा’ गाते हुए धांसू दारू पार्टी की । वापस जाने के लिए गाड़ी में बैठे तो भीखू बहुत हाई स्पिरिट्स में था । एक बड़े डाइरेक्टर को धमका कर कैसे अपने किसी छोकरे को काम दिलवाया था, सत्या को ये कहानी सुनाई । फिर ‘ले रख’ बोलकर अखबार में लपेटा हुआ कुछ समान दिया, जो एक जर्मन मेड पिस्तौल थी । सत्या बोला, “मगर मुझे तो चलानी नहीं आती” ।

“कौन सा तेरे को कंपीटीशन में जाना है, हैं? फ़र्स्ट प्राइज़ लेना है क्या तेरे को ?”

ऐसे माहौल में धीमे-धीमे चल रही गाड़ी को भीखू झटके से रोकता है ।

“मालूम किया मैं, वह अंदर है, जग्गा । करना है, तो करना है….”

सत्या एक पल में मिशन मोड में आ जाता है, जैसे पूरी ज़िंदगी उसी का इंतज़ार कर रहा हो । मुस्तैदी से गाड़ी से उतरकर डग भरता हुआ बार की ओर बढ़ता है। शक की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं ।

भीखू गाड़ी में ही रहा । उसका कोई प्रोब्लेम नहीं था जग्गा से । बदले का बोझ अकेले उठाना पड़ता है, हिसाब-किताब भी व्यक्तिगत तौर पर होता है । सत्या जब ठोक कर आता है और गाड़ी में बैठ जाता है तो भीखू खुश होकर पागलों की तरह हँसता है । सत्या हैड मेड हिज बोन्स, एंड इन सच ए कूल मेनर । भीखू में अब तक यारी का भाव था । अब सत्या को लेकर गर्व और उसके प्रति सम्मान भी उमड़ रहे थे ।

सत्या का किरदार ही ऐसा था । अपनी हद में रहना, पर उसमें किसी को एक इंच भी घुसने नहीं देना । पकिया ने वसूली के लिए उस्तरा दिखाया तो उसी से उसका चेहरा काट दिया । जग्गा ने पीटा और जेल भेजा तो बाहर आकर उसको ठोक डाला । विद्या को लेकर सत्या ने गेंग को साफ बोल दिया था – मैं उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता हूँ । भीखू उसकी हद समझ गया था और उसका सम्मान करता था । भाऊ ने गुरु नारायण को मारने को साफ-साफ मना किया था, पर सत्या के समझाने पर भीखू राज़ी हो गया । दोनों ने मिलकर उसे सरेआम मार डाला । गुरु ने उनपर हमला करवाया था । नहीं मारते तो दोबारा करवाता । फिर नंबर लगा पुलिस कमिश्नर आमोद शुक्ल का , जिसे उड़ाने का सिवाय सत्या के कोई और सोच भी नहीं सकता था । हम उसे नहीं मारेंगे, तो वह तो हमें मार ही देगा ।

करना है, तो करना है । डाइलॉग बोला भीखू ने था, पर था यह फलसफा सत्या का । भीखू बाल-बच्चेदार था, यारी-दोस्ती निभाता था, भाऊ को मानता था, धंधे के कायदे –कानून जानता था । हँसता था, बोलता था, नाचता था, गरियाता था – गर्मजोशी थी उसमें । सत्या का न परिवार था , न ही वह ज्यादा बोलता-बालता था । ज्यादा हुआ तो हल्का सा मुस्कुरा दिया । नीरस नहीं था, पर बंधनों से रहित था । अपनी सीमाओं को न मानने वाले धंधे में ज्यादा दिन नहीं टिकते और साथ वालों को भी ले डूबते हैं । भीखू लंबा चलता, पर उसपर सत्या का साथ भारी पड़ गया ।

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