
सड़क पर चलते-चलते,
सौहार्द पर मनन करते,
यकायक मेरा पाँव गया मुड़,
मैं ज़ोर से चिल्लाया,
सईद अनवर, स ई ई द अन वर र र र…..
लोगों ने आव देखा न ताव,
ज़मीन पर लेट गए सोचकर,
कि अब होगा धमाका,
क्या पता बरसें गोलियां,
कुछ नहीं हुआ तो भी उन्हें डर ने घेरे रखा,
ज्यादा नहीं तो ऊंची छतों से ईटें तो ज़रूर बरसेंगी,
सईद अनवर की ललकार कभी खाली नहीं जाती,
हल्की गेंद पर चौका-छक्का दे ही मारता था,
नहीं हुआ है तो अब होगा,
क्या पता कहीं और कुछ घट चुका हो,
बस अब तक पता न चला हो !
“अरे, कौन जाने किसी ने हक़ीक़त में
सईद अनवर को याद ही किया हो”,
एक ने बोला , दूसरे ने काटा,
रे मूर्ख, मौत से पहले जल्लाद को याद
बस फिदायीन करते हैं,
वो आए होते, तो फटे होते ।
तब मेरे बताने पर कि मेरी एडी मुड़ी थी,
और मैंने याद फरमाया था अनवर को ही,
कईयों ने मुझे इल्लुफ़ोबिक करार दे दिया,
एक शोहदे ने सलाह दी कि रमीज़ राज़ा को बुला लेते,
उसकी नौकरी अब जाने वाली है,
वह आ भी जाता,
भारत आने को हमेशा तैयार रहता है ।
मेरा कहना बस इतना है कि मैं इल्लुफ़ोब नहीं हूँ,
न ही वे हैं जो मारे डर के ज़मीनदोज़ हो गए थे,
मैंने बस इम्पल्सिव हो कर बक दिया कुछ,
बाकियों की जिजीविषा प्रबल थी,
कुछ भी लॉस्ट नहीं हुआ ट्रांसलेशन में,
अनुवाद करके अब सरवाइवल इन्स्टिंक्ट के मत्थे मढ़ दो !
जन्नत की टेक्सी पकड़ते वक्त
वैसे ओला-उबर चिल्लाने का रिवाज है,
सईद अनवर चीखा हो या सय्यद अनवर,
घबरा जाने की वजह आपकी ज़बरदस्ती है,
भाई हमको नहीं पकडनी तुम्हारी जन्नत टेक्सी,
तुम जाओ फिदायीन, क्यूँ हमें साथ खींचते हो,
तुम्हारी हूरों में से तो हमें कुछ मिलना नहीं,
हमारे लिए यह भारत भूमि ही स्वर्ग समान है ।
इस घटना का ज़िक्र ट्विटर पर करते हुए,
मैं ‘सईद अनवर’ की जगह ‘बुरहान वानी’ लिख गया,
ऑटोकरेक्ट को तो आज तक कोई कन्वर्ट नहीं कर पाया,
ध्यान रहे सिर्फ बुरहान वानी लिखा था,
न की उसकी ज़िंदाबाद, न ही मुर्दाबाद,
न आंड़ू, न बैंगनचो- कुछ नहीं कहा,
तुरंत मुझपर इल्लुफ़ोबिक होने के आरोप लग गए,
धिम्मी नंगे होकर मेरे सिर पर नाचने लगे,
मजहबी झुंड बना-बनाकर मुझे नोचने लगे,
नाम लिया तो कैसे लिया तुमने,
यह सरासर नफरत है, इल्लुफ़ोबिया है,
मैंने स्पष्ट किया कि न तस्वीर बनाई,
न ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लगाए,
न जिहादी कहा, न सूअर की औलाद,
दहशथगर्द तो करार एकदम नहीं दिया,
“क्यूँ नहीं उसे गरीब मास्टर का बेटा बतलाया,
वादी का अफरीदी था यह तथ्य क्यूँ छिपाया?”
इतना बहुत था मुझे कम्यूनल साबित करने के लिए,
मेरे नाम के आगे अब से लाल निशान लग गया था ।
M, I, J, Mo, A, Q- इन सब का इस्तेमाल वर्जित है,
कुछ मेरे ही पक्ष वालों ने मुझे समझाया,
(मेरा पक्ष? कुछ गाय, कुकुर, कौवे, कबूतर और गीदड़ अब भी थे बाज़ार में)
बचो इनके प्रयोग से-
और हाँ, ओसामा, अलक़ायदा, तालिबन, आईएस,
हाफिज़ सईद और पाकिस्तान –
इन सब का नाम भूलकर भी न लेना,
सस्पेंड हो जाओगे सोशल मीडिया से,
वोक कैन्सल कर देंगे,
धिम्मी इल्लुफ़ोबिक का मेडल चिपका देंगे,
किसी इल्लु के हत्थे चढ़ गए तो
कमलेश तिवारी की तरह सरेआम कम कर दिये जाओगे,
गलत नहीं हो, पर मारे जाओगे,
छुट्टी भी नहीं होगी दफ्तर में,
शोक सभा होगी, कोई बेसुरा गा देगा –
चलते, चलते मेरे ये गीत याद रखना,
इन अक्षरों से अब दूर ही रहना,
शब्द, शोहदे और नारे तो बहुत दूर की कौड़ी हैं ।
भारत और दुनिया में नया अछूतवाद कौन लेकर आया है,
कहाँ से लाया है,
अब कुछ आया समझ में ?
या फिर चिल्लाऊँ सईद अनवर?
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