भाषाई फुलझड़ी : धुलेलकर की हिंदुस्तानी के नाम पर संविधान सभा में धमाचौकड़ी

संबिधान सभा की दूसरी बैठक,

तिथि 10 दिसंबर, 1946

सेक्षंस एवं कमेटी के मसले पर सदन में गरमागरम बहस चल रही थी । एक तरफ थे कृपलानी तथा जयकर, दूसरी तरफ लामबंद थे सुरेश चन्द्र बनर्जी , श्यामप्रसाद मुखर्जी, टंडन, केएम मुंशी और हरनाम सिंह । पंडित नेहरू कृपलानी को संघर्ष विराम का इशारा करके बस अभी बैठे ही थे । ऐसे में यकायक खड़े हुए श्री आरवी धुलेलकर, और हिंदुस्तान में कुछ बोलने लगे ।

अस्थायी सभापति सच्चिदानंद सिन्हा ने पूछा – Do you not know English ?

रौब से धुलेलकर ने जवाब दिये – I do, but I intend to speak in Hindustani.

सिन्हा चेताये- Many members here, even Rajaji, do not know Hindustani.

धुलेलकर-  People who do not know Hindustani have no right to stay in India. They better leave. People who are present in this House to fashion out a Constitution for India, and do not know Hindustani , are not worthy to be members of this Assembly. They had better leave.

सिन्हा साहब थोड़ा दबाव में आ गए – Please say what you want to say.

धुलेलकर गरजे – मेरा प्रस्ताव है कि प्रोसीजर कमेटी अपने सभी नियम-कायदे-कानून हिंदुस्तानी में बनाए, तदोपरांत उनका अङ्ग्रेज़ी में अनुवाद किया जाये ।

हम लोग, जो आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं, उन्हें अपनी ही भाषा में सोचना, बोलना और लिखना चाहिए ।

कल से लगातार अमरीका, जापान, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और हाउस ऑफ कामन्स की चर्चाएं और बढ़ाइयाँ सुन-सुन कर मुझे सिरदर्द –सा हो गया है । मुझे समझ नहीं आता कि हम हिंदुस्तानी अपनी भाषा में अपनी बात क्यूँ नहीं कर पाते ।

हमें विश्व इतिहास और नीति को समझने की कोई आवश्यकता नहीं है , हमारा स्वयं का करोड़ों वर्षों का गौरवशाली इतिहास रहा है ।

एक भारतीय होने के नाते मैं चाहूँगा कि इस सभा की कार्यवाही हिंदुस्तानी में हो ।

सिन्हा साहब ने बहुत सुन लिया था । धुलेलकर को सदन की गरिमा और सम्मति के विरुद्ध बताकर आउट ऑफ ऑर्डर करार दे दिया गया । पर वह अपनी बात कह चुके थे ।

भाषायी जिन्न चिराग से बाहर आ चुका था । अगले दो दशक तक इस जिन्न ने भारत को जी-भर के नचाया ।  यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका कोई सीधा-सीधा उत्तर आज भी हमारे पास नहीं है । धुलेलकर स्वयं हिंदुस्तानी की पैरवी कर रहे थे, हिन्दी की नहीं । गांधी और नेहरू का रुझान भी हिंदुस्तानी की तरफ था । हिंदुस्तानी हिन्दी और उर्दू का मिश्रण है । धुलेलकर प्रादेशिक भाषाओं के बारे में भी चुप ही रहे । संविधान सभा ने अंततः हिन्दी और अङ्ग्रेज़ी, दोनों को ही, लिंक भाषाएँ नामजद किया । संविधान किसी राष्ट्रभाषा की बात नहीं करता । बाईस राजभाषाएँ हैं, जिनका ओहदा बराबर का है । संस्कृत के समर्थक स्वयं संस्कृत बोल नहीं पाते । तमिल और संस्कृत में से कौन-सी अधिक प्राचीन है, इसपर गहरे मतभेद हैं । तमिल हो या कन्नड़, प्रादेशिक भाषाओं को उनके प्रदेश के बाहर जानने वाला कोई है नहीं । अङ्ग्रेज़ी और हिन्दी का अपना विशिष्ठ स्थान है, इसमे तो कोई संदेह नहीं है । परंतु हर-कभी कोई शरारती तत्त्व इस भाषायी फुलझड़ी को जला लेता है और चूंकि थोड़ा बहुत रोगन मौजूद है, वह बंद-बुझ होती हुई खिल भी जाती है ।

खैर, धुलेलकर साहब को हम संविधान सभा की पहली फुलझड़ी जलाने के लिए स्मरण करते हैं । अजय देवगन ने पिछले महीने ही इस फुलझड़ी को पुनः सुलगा दिया था जिसे बाद में सुदीप किच्चा, कंगना, सोनू निगम, सिद्धरमय्या और कुमारस्वामी ने भी पकड़ कर खूब लहराया । फिलहाल के लिए लगता है इसकी आग बुझ गयी है । अगले चुनाव या किसी बड़ी हिन्दी अथवा प्रादेशिक फिल्म की रिलीज़ का इंतज़ार करें, कोई न कोई मौकापरस्त उसे पुनः जला ही देगा । और चूंकि रोगन अभी बाकी है ……..

===================================================================

#हिन्दी #हिंदुस्तानी #भाषा #भाषाविवाद #धुलेलकर #आरवीधुलेलकर #संविधानसभा #प्रादेशिकभाषा #राजभाषा #राष्ट्रीयभाषा

#राष्ट्रभाषा #राजकीयभाषा #अङ्ग्रेज़ी #ग़ुलाम #एसएनसिन्हा #भाषाईग़ुलामी #संस्कृत #तमिल

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s