
एक हाथ में फरसा मेरे, दूसरे में वेद हो,
शोषण होते देख मुझको परशुराम-सा क्रोध हो,
आततायी को अनुशासित करना मेरा नित्य कर्म,
सनातन की सेवा ही हो अब से मेरा परम धर्म ।4।
कर सकूँ बेधड़क होकर गोवंश तस्करों का संघार,
काँप जाएं सहस्त्रार्जुन-संतति सुनकर मेरी सिंह दहाड़,
राम को भी टोक सकने का हो मुझमें आत्मबल,
भिड़ पड़ूं मैं भीष्म से अन्याय करे जो अनर्गल ।8।
काट सागर तट उठा दूँ, गोमान्तक से केरल बना दूँ,
प्रश्न हो परमार्थ का तो मैं अपना सर्वस्व लूटा दूँ,
फिर कभी किसी कर्ण को मैं भूल से भी न श्राप दूँ,
फिर न कहने पर पिता के माँ का मस्तक काट दूँ ।12।
क्रोध भले मारे हिलोरें, सशक्त मेरा बांध हो,
बाढ़ बनकर बह न निकले जब उबल रहा उन्माद हो,
हूँ चिरंजीवी, प्रायश्चित सदैव ही संभव रहा,
कब अवतरित हो रहा है कल्कि, गुरु प्रतीक्षा कर रहा? (16)
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