उसकी यात्रा और इसका भ्रमण (व्यंग्य)

नहीं साहब, किसी मित्र के विवाह में सम्मिलित होना कोई अपराध नहीं है, न हो सकता है । विवाह किसी का भी हो, मंगलमय अवसर है । और जो स्वयं वैवाहिक बंधन में जकड़े जाने को प्रस्तुत है, उसपर वामपंथी, लिब्रांडु अथवा वोक जैसे ठप्पे भी नहीं लगाए जा सकते ।  वह कैसा वामी-कोमी जो रूसो को धता बताकर बेड़ियों में बंधना चाह रहा है । मनुष्य को ऐसे सामाजिक समारोहों में आते-जाते रहना चाहिए । और फिर विदेश यात्रा तो वैसे भी मस्तिष्क के बंद द्वार खोल देती है । नए क्षितिज दृष्टिगोचर होते हैं , विभिन्न दशाओं-दिशाओं-भाषाओं-विधाओं-संस्कृतियों का ज्ञान होता है । पुराने मित्रों से संपर्क पुनर्स्थापित हो जाते हैं, नवीन संभावनाएं जन्म लेती हैं । घरेलू मित्रों से दूरी बनाने और विदेशी शत्रुओं से संसर्ग करने के सुयोग बनते हैं । बदलाव से बहलाव होता है , थकावट मिट जाती है । शिथिल पड़े व्यक्तित्व में स्फूर्ति का संचार होता है । यात्रा आकर्षक है, वांछित है और सही मायनों में चिकित्सा का काम करती है । चिकित्सा तो अपराध नहीं हो सकती । प्रवास सदैव तो नहीं चल सकता, लौट कर अपने नीड़ पर ही आना है । आने के बाद फिर काम पर लग जाना है । ऐसे में विदेश यात्रा और विवाह समारोहों में भाग लेने पर आपत्ति करने वाला तो कोई निरा ढपोल शंख ही होगा ।

शर्त इतनी भर है कि यात्रा देशहित में नहीं होनी चाहिए, समस्याओं को सुलझाने हेतु नहीं होनी चाहिए । अन्य देशों के साथ सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने के निमित्त नहीं होनी चाहिए । भारत का हित साधने के लिए नहीं होनी चाहिए । विदेशी यात्रा के दौरान केवल भ्रमण हो, ऐश हो, अय्याशी हो, नाच-गाना हो, सहवास हो, आराम हो, पर बहुत-सा राजकीय कार्य निपटाने का बोझ नहीं होना चाहिए और न ही उस बोझ को अपने मातहतों पर लादना चाहिए । आपकी यात्रा से देश गौरान्वित नहीं होना चाहिए । किसी परिश्रमरत अश्व द्वारा तुच्छ प्रयोजन से की गयी यात्रा का उपहास हर हाल में उड़ाया जाना चाहिए , और आनंद में तल्लीन शूकर की निजता की दुहाई देकर मौन साधना चाहिए ।

चमचों पर कटाक्ष करके क्या मिलना है, लेकिन उनपर दया भी नहीं दिखानी चाहिए । यात्रा करनी पड़े तो अवश्य करें , अवसर न बन रहा हो तो अकारण भी निकल जाना चाहिए । बस इतना भर स्मरण रहे कि किसी के तो कार्यवश भ्रमण पर भी उलाहने देने का नेग है, और किसी के संदेहास्पद विचरण एवं आचरण पर भी चुप्पी का षड्यंत्र बनाए रखना है ।

बाकी जो चमचे कह दें , वह स्वीकार कर लेना चाहिए । मैंने घुमक्कड़ी, आवारगी और यायावरी जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया, सामाजिक जीवन में रहते ये सब कर पाना संभव भी नहीं है ।


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