जुबां हिन्दी हो या केसरी – अजय देवगुण को फर्क नहीं पड़ता

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सुदीप किच्चा ने भाषाओं के बारे में कुछ ज्ञान बांटा । क्या कहा, ये किसी को ठीक से पता नहीं है । केजीएफ़ 2 चलने के अहंकार में कुछ कह गया होगा । ज़बान केसरी अंकल को तो एकदम पता नहीं था जब उसने पलटट्वीट किया जहां उसने हिन्दी को ‘हमारी’ मातृभाषा और राष्ट्रभाषा करार दे दिया । मुंह में मसाला भरे बैठा होगा, तो किसी से पूछने कि स्थिति में संभव है, न रहा हो । पर गूगल तो कर ही सकता था । मातृभाषा वह होती है जो आपकी माँ बोलती है । केसरी ब्रो, सुदीप की मातृभाषा हिन्दी कैसे होगी? उसे तो कन्नड़ ही होना है । क्या अपने मन्तव्य की सामान्य अभिव्यक्ति भी आप अपनी मातृभाषा में ठीक से नहीं कर सकते ? हिन्दी में हाथ तंग है तो केसरी जुबां में ट्वीट करना चाहिए था ।

फिर हिन्दी एवं 21 अन्य प्रमुख भाषाएँ राजभाषाएँ हैं , राष्ट्रभाषा शब्द ही संविधान से नदारद है । हिन्दी और अङ्ग्रेज़ी लिंक भाषाएँ नामित की गईं थीं, आज भी हैं । हिन्दी शास्त्रीय भाषा नहीं है, कन्नड़ है । तमिल, संस्कृत, तेलुगू, मलयालम और उड़िया भी हैं, पर हिन्दी नहीं है । कन्नड़ द्रविडियन भाषा है पर संस्कृत के भी बहुत निकट है । मौसेरे भाई, ममेरी बहनों टाइप संबंध है । तो विवाद क्या है, कह नहीं सकते । ट्वीट, पलटट्वीट, किच्चा के तीन व्याख्या एवं स्पष्टीकरण ट्वीट और अंत में किया गया देवगन का लड़ाई-लड़ाई-माफ-करो-जुबां-केसरी-याद-करो ट्वीट – इनकी समयसारिणी बनाई जाये तो संभव है पता लग सके कि उस समय दोनों की जुबां केसरी थीं या कड़वीं, जब इन्हें पोस्ट किया गया था ।

देवगुण को नितांत मूर्खतापूर्ण ट्वीट करने के लिए जनता से क्षमा मंगनी चाहिए थी । पर देवगुण को फर्क नहीं पड़ता । अक्षय कुमार को पड़ता है, तभी तो थोड़ी-बहुत ट्रोलिंग में पानी मांग बैठा । राष्ट्रवादी वह अज्जु से बड़ा बनता है, पर शायद उसकी चमड़ी उतनी मोटी नहीं है । शाहरुख भी विमल वाले इश्तेहार के लिए बहुत गाली खाया है , पर एक तो उसे अब आदत-सी हो गयी है , दूसरे, पब्लिक समझती है कि ड्रग्स कांड के बाद उसे पैसे की बहुत ज़रूरत लगी होगी । पद्म चू. ये तीनों ही हैं । पर इस एड के लिए देवगुण की कोई भर्त्स्ना नहीं हुई, बल्कि कहिए, अलग से उसका ज़िक्र तक नहीं हुआ । किसी ने उसका मखौल नहीं उड़ाया, केंपेन से अलग होने की अपील नहीं की, ट्रोल नहीं किया , यहाँ तक कि मीम भी नहीं बनाईं । क्रिएटर्स का कहना है कि पेराशूट में उड़ता देवगुण, जिसके बाल खड़े हैं और आँखें नशीली, जब दो अंगुलियाँ खुद की तरफ करके पब्लिक से कहता है ‘बोलो ज़बान केसरी’, तब पब्लिक बोल भी देती है, और मीम बनाने का फ़र्दर स्कोप ही खत्म हो जाता है ।

चूंकि लोग जानते हैं कि देवगुण को फर्क नहीं पड़ता, इसलिए ताकत ज़ाया नहीं करते । फिर उसे देखकर ऐसा प्रतीत भी होता है मानो अपनी घरेलू ब्रांड का विज्ञापन कर रहा हो । वरना कौन इतनी शिद्दत से दिन-रात जमाने को कचरा बेचता है । कुछ भी हो, मानना पड़ेगा अज्जु को । क्या ब्रांड बनाया है- इस युग का सबसे बड़ा । गुटखा, पान मसाला को इतना ग्लोरिफाय तो माणिकचंद सेठ भी कभी नहीं कर पाया होगा । रेपर फाड़कर, मसाला हाथों में उड़ेलकर, हल्की फूँक के साथ फांक लगाने वाले बहुतेरे देखे , पिच-पिच की आवाज़ों के साथ सड़कों पर लाल थूंक बरसाने वाले भी जाने कितने देखे , पर इस एड केंपेन से पहले तक किसी को जुबां केसरी, जुबां केसरी रटते नहीं देखा था । मगर अब ऐसी ब्रांडिंग हो गयी है कि पानवले से केसरी डिमांड किया जाता है,विमल नहीं ।

अक्षय अपने दोगलेपन में मारा गया । शाहरुख को उसकी बेबाकी का नुकसान होता है । देवगुण को साँप सूंघे रहता है । लोगों को लगता है एसपी अमित कुमार के मुंह में मसाला भरा है, इसलिए प्रतिक्रिया नहीं आती । अब रसास्वादन करे, या फालतू जवाब देता फिरे । ऐसे आदमी के मुंह लगने में स्वयं की जुबां केसरी होने का खतरा भी विद्यमान है । संभव है भविष्य में एक एड ऐसा भी आए जिसमे अजय देवगुण ट्रोल, वोक और अन्य किटाणुओं के सोशल मीडिया विरोध एवं जुलूस, रेली, हड़ताल इत्यादि के बीचोंबीच मसाला फांक कर चिल बैठा रहे, और दूसरी तरफ विमल बिकता रहे, खुद की तिजोरी भरती रहे ।

बोलो जुबां केसरी !


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