
एक नस्ल का दूजी संग,
यह मानवीय व्यवहार नहीं था,
जो घटा था अमृतसर में उस दिन,
वह बस गोलीकांड नहीं था,
वह बस हत्याकांड नहीं था ।
वह भारतीयों के प्रति अंग्रेजों की नफरत से उपजा नरसंघार था । वह भारतीयों के दिलों में बसी ग़ुलामी, कुंठा और उदासीनता का इज़हार भी था । बैसाखी सभा को घेर कर गोलियां बरसाने का आदेश लेफ्टिनेंट गवर्नर ओ’ ड्वोयर का था, उसे मौके पर लागू जनरल डायर ने करवाया, लेकिन आखिर निशाना बांधने वाली आँखें और गोलियां चलाने वाली उँगलियाँ तो हिंदुस्तानी थीं – मुख्यतः गुरखा, सिख, राजपूत और बलोची सैनिक ।
जलियाँवाला में निहत्थों पर दस मिनट में सत्रह सौ गोलियां चलवाकर जनरल डायर डिनर करने सर सुंदर सिंह मजीठीया की कोठी पर चला गया । मजीठीया की औलादें और उनकी औलादों ने आगे जाकर स्वतंत्र भारत में लंबे समय तक सत्ता का भोग किया है । नाम लेने से मिजाज खराब ही होना है । पंजाब के अधिकांश शाही और संभ्रांत परिवारों ने जलियाँवाला की भर्त्स्ना तक नहीं की थी, बल्कि पटियाला महाराज भूपिंदर सिंह ने तो टेलीग्राम लिखकर डायर की प्रशंसा तक की थी ।
नरसंघर के दो हफ्ते बाद अंग्रेजों द्वारा नामित स्वर्ण मंदिर के जत्थेदार अरुर सिंह नौशेरा ने जनरल डायर का हर्मिन्दर साहब में इस्तकबाल किया । वहाँ पर डायर से कर्नल निकेयल्सन (Nicholson) की तरह सिख बनने की अपील की गयी, जो उसने ठुकरा दी । इस पर भी इस हत्यारे को पग बांधकर सिरोपा (robe of honour) तो भेंट किया ही गया ।
वायसराय चेल्म्स्फ़ोर्ड , हाउस ऑफ कॉमन्स और हंटर कमीशन ने जनरल डायर को क्रूरता का दोषी पाया । उसे नौकरी से त्यागपत्र देना पड़ा । लेकिन मॉर्निंग पोस्ट अखबार की नज़र में जनरल डायर ‘saviour ऑफ India’ था । कई अन्य अखबारों , हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों और बहुत सी चर्च से जुड़ी संस्थाओं ने जनरल डायर को इंग्लैंड में बहुत सम्मान दिया , और उसके लिए 28000 पाउंड का पर्स भी इकट्ठा किया । हमारे अपने स्वर्ण मंदिर संग्रहालय में 2007 तक जनरल डायर का पोर्ट्रेट टंगा हुआ था, फिर अंग्रेजों की तो क्या कहें ।
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से उस दिन 379 निहत्थे, जिनमें बूढ़े, बच्चे और महिलाएं शामिल थे, मारे गए थे और 1500 घायल हुए थे । स्वामी श्रद्धानंद ने गांधी को 1500 मौतों का आंकड़ा बताया था , जो काफी हद तक हताहतों की ठीक संख्या है । डेढ़ दिन तक लाशें धूप में पड़ी रहीं क्यूंकी नातेदारों की उनपर दावेदारी जताने की हिम्मत नहीं हुई । पंजाब में क्रूर दमनचक्र चल रहा था । 13 अप्रेल के पहले भी डायर का नस्लवाद ज़ाहिर था, और फिर 19 अप्रेल को एक अंग्रेज़ महिला के साथ हुए अभद्र व्यवहार के उपरांत जलियाँवाला के आसपास के इलाकों जैसे खू- कोरियाँ की गलियों – सड़कों पर और अमृतसर के मुख्य बाज़ार में भारतीयों को कुछ इलाके रेंग – रेंग कर ही पार करने देने का हुक्म जारी हुआ । हुक्म की तामील पूरे जोश के साथ हिंदुस्तानी पुलिसवालों ने ही कारवाई । वहीं पर कोड़े बरसाने का भी हुक्म हुआ, जिसकी भी जोशों खरोश की साथ तामील हुई ।
खैर यह भी हमारी नपुंसकता पर एक टिप्पणी है कि जल्लाद डायर अंततः 1927 में ब्रेन हेमरेज द्वारा मौत को प्राप्त हुआ । पंजाब की अगली पीढ़ी का लहू इससे थोड़ा अधिक गरम था । 1928 में लाला लाजपत राय पर लठियाँ बरसाने का आदेश देने वाले आला अधिकारी जेम्स स्कॉट के संघार की साजिश तुरंत ही रची दी गयी । कार्यान्वयन थोड़ा गड़बड़ा गया, और स्कॉट की जगह पुलिस अधिकारी सौंडर्स मारा गया । भगत सिंह और उनके साथियों से प्रेरणा लेकर ही उधम सिंह ने जलियाँवाला में गोलियां बरसाने का आदेश जारी करने वाले पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ ड्वोयर का वध 1940 में लंदन जाकर किया ।
हमें याद रखना चाहिए कि नस्लवादी अंग्रेजों ने आज तक इस नरसंघार के लिए माफी नहीं मांगी है, महज ‘deep regrets’ कहकर अपना पिंड छुड़ाना चाहा है । कोहिनूर वापस लाने से अधिक महत्वपूर्ण इनसे माफी कहलवाना भी एक अति-आवश्यक लंबित कार्य है ।
#जलियाँवाला #खूकोरियाँ #अमृतसर #पंजाब #जनरलडायर #बैसाखी #भूपिंदरसिंह #पटियालामहाराजा #सुंदरसिंहमजीठीया #सिरोपा #अरुरसिंहनौशेरा #जत्थेदार #माइकलओड्वोयर #generaldyre #michaelodwoyre #udhamsingh #amritsar #jalianwalabagh #khookorrian #punjab #baisakhi #massacre #genocide #bhupindersingh #sundarsinghmajithia #arursingh