
कचरा स्वाहा कर दिया उसने उठाने के बजाए,
क्यूँ श्रम करे व्यर्थ जब हरामीपन चल जाए,
झुके, सोरे, अरे कितनी बार उठाए!
कमर बेचारे की हाय बार-बार कराहे,
गंदगी ढोकर शहर से बाहर ले जाये,
कूड़े के पहाड़ पर कितना और कूड़ा गिराए?
दुर्गंध से बेचारे की नाक सड़-सड़ जाये,
इससे बेहतर है थोड़ी शानपट्टी दिखलाए,
जहां पड़ा है कचरा वहीं भस्म हो जाए,
होता है कोहेफिज़ा धुआँ-धुआँ, भले हो जाए!
सफाई कर्मचारी की बस मेहनत बच जाये,
मजाल किसी की मोहल्ले में जो इसपर आवाज़ उठाए,
सड़कों पर घूमना, घर से निकालना चाहे दूभर हो जाए,
फेफड़ों में भले प्राणघातक वायु भर जाए,
जिसे नहीं करना ठीक से उससे कौन काम कराये ?
पड़ी लकड़ी उठा खामखाँ, क्यूँ फन्नेखाँ बना जाए?
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