
सवारी पहुँचती है अभी भी मुग़ल सराय ही,
ट्रेन भले दीन दयाल जंक्शन में जा टिकती हो,
ग़ुलामी बसती है हमारी ज़बान में, आदतों में,
कोई क्या करे जब पूँछ न होते हुए भी टेढ़ी हो । 4।
बिरयानी की आज़ादी है भाग्यनगर में पकने में,
हम नेतराम कचौड़ी को इलाहाबाद से छुड़ाकर लाये हैं,
वो कहते हैं नाम बदलने की कोशिशें बेकार हैं,
बगैर कोशिश किए तो तू क्यूँ ही ज़िंदा है ? (8)
पंद्रह बरस टोकन बेच-बेचकर उस नाम से,
कनौट प्लेस को हमने राजीव चौक भी किया है,
इस नाम का भले इतिहास से सरोकार न हो,
काशी-प्रयाग-कर्णावती तो जनमन में बसते है । 12।
गायब ही हो गया है मद्रास पूरी तरह,
मजाल है किसी की बंबई कह कर तो देखे,
उपहास की दहलीज़ गुरुग्राम भी लांघ चुका है,
भारतवर्ष तक पहुँचने में कितने वर्ष और लगेंगे ? (16)

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