विकेट गड़े हैं, बल्ले खड़े हैं : कोहरे में क्रिकेट (कविता)

विकेट तो गड़े हैं बीच मैदान में,

बल्ले किनारे खड़े हैं कबसे इंतज़ार में,

खिलाड़ी देर से जमा हैं धुंध दरकिनार कर,

ठंड मगर इतनी है कौन फेंके गेंदें भागकर,

हाथ तैयार ही नहीं जेबों से निकलने के लिए,

अलाव जले हैं बाउंड्री पर खून गरमाने के लिए,

किटकिटाते, तापते, पौरुष को ललकारते,

वक्त ज़ाया करने पर एक दूजे को धिक्कारते,

माना कोहरा इतना है दस गज़ तो दिखता नहीं,

इरादे भले पक्के हैं पर गेंद न आ लगे कहीं,

ऐसे में निकल गया है कोहली कप्तानी छोडकर,

रोहित भी छिपा बैठा है खूंखार रबाड़ा से डरकर,

पर राहुल है और अश्विन है , और हैं खड़े पंत-हनुमा,

ग्यारह नहीं सिर्फ, एक अरब हैं, जोश में सारे जवान,

सूरज निकले न निकले, कोई आए न आए,

एक बार हो गया जो टॉस, सब में ऊर्जा भर जाये,

खेल तो फिर खेल है, क्या मौसम और क्या किरदार,

बल्ले भँजते , गेंद भागती, कोई तो लेकर आओ यार !  


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