क्यूँ बनने दूँ ? (कविता)

जल रही अंगुलियों को, ठिठुर रही पगलियों को,

सिगड़ी में न झोंक दूँ ?

खून को बर्फ क्यूँ बनने दूँ ? (3)

बढ़ रही चरबी को, मुटिया रही चमड़ी को,

कसाई को न बेच दूँ ?

वजन का बोझ क्यूँ लदने दूँ? (6)

बहला रहे लफ्जों में, फुसला रहे ख्यालों में,

एक कटार न खोंस दूँ,

कविता को प्रेमगीत क्यूँ बनने दूँ? (9)

सड़ रही व्यवस्था पर, गल रही अवस्था पर,

कीटनाशक न छिड़क दूँ?

समाज को गटर क्यूँ बनने दूँ? (12)

अंदर बैठे फकीर को, अधमरे ज़मीर को,

चिलम में न फूँक दूँ?

अपनी लाश क्यूँ बनने दूँ? (15)

कुलबुलाती कामना को, बची-खुची वासना को,

उसके उदर में न घोंप दूँ,

लिहाज का पर्दा क्यूँ रहने दूँ? (18)


#सिगड़ी #फरसा #हिन्दीकविता #कविता #हिन्दी #झिझक #चिलम #ठंड #लिहाज

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  1. बहुत ही सुंदर

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