संजय दत्त को पुलिस ने आतंकवादी साबित होने से कैसे बचाया ?

12 मार्च 1993 को दोपहर डेढ़ से तीन चालीस के बीच मुंबई में 12 बड़े धमाके हुए । दाऊद इब्राहिम,उसके गुर्गे टाइगर मेमन और कई अन्य दुर्दांतों ने आईएसआई के साथ मिलकर एक खतरनाक षड्यंत्र रचा था । उन्हें पूरी उम्मीद थी कि ब्लास्ट के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठेंगे । इसलिए बम बनाने के लिए आवश्यक काले साबुन (आरडीएक्स) के अतिरिक्त बहुत-सी एके-56 राइफलें, पिस्तौल, मेगज़ीन, गोलियां, हथगोले इत्यादि भी पहले ही भारत भेज दिये गए थे । इस असले को शहर-भर के असामाजिक तत्वों में बाँट दिया गया था, ताकि धमाकों के बाद जब स्थिति गड़बड़ाए तो काफिरों से लड़ने के लिए उनके पास प्रचुर मात्रा में हथियार मौजूद रहें । इतनी अधिक मात्रा में गोली-बारूद-बंदूकें जमा हो गए, कि मौका आने तक उन्हें छिपाए रखना भी मुश्किल हो गया था ।

15 जनवरी 1993 को मेग्नम वीडियो कंपनी चलाने वाले समीर हिंगोरा और हनीफ कंडावाला, इब्राहिम मूसा और ड्राइवर आबू सलेम संजू बाबा के पाली हिल, बांद्रा स्थित बंगले पर बातचीत के लिए पहुंचे और अगले दिन, 16 जनवरी को, 3 एके-56 राइफलें, 250 राउंड गोलियां, एक 9 mm पिस्तौल, कार्टरिज और बहुत से हथगोलों (80 से अधिक) से भरा एक वाहन उस बंगले के गेराज़ में पार्क कर दिया गया । संजय दत्त के हाथ-पैर फूलने पर 18 जनवरी को यह जखीरा हटा लिया गया , पर उसमें से एक एके-56 राइफल, एक 9 mm पिस्तौल और कुछ गोलियां/मेगज़ीन ‘हीरो’ ने अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए घर पर ही रख लीं । यहाँ स्पष्ट है कि संजय को दाल मे कुछ काला ज़रूर लगा , पर उसने जो हो रहा था, वह होने दिया ।

 

फिर 12 मार्च को ब्लास्ट हुए, 257 लोग मारे गए । डीसीपी ट्रेफिक राकेश मारिया को जांच सौंप दी गयी । जल्द ही समीर हिंगोरा और हनीफ कंडावाला पुलिस की गिरफ्त में आ गए । ‘हीरो’ का नाम उनकी ज़बान पर आते देर न लगी । केस फूलप्रूफ था । राकेश मारिया ने सारी जानकारी सीपी अमरजीत सिंह समरा और जाइंट सीपी महेश नारायण सिंह को दी । “हथियार अभी कहाँ हैं?”, समरा ने पूछा । “जो लौटाए नहीं थे, वह उसके घर पर ही होंगे । संजू आतिश की शूटिंग के लिए मॉरीशस में है । बाकी किसी को कुछ नहीं पता” ।

यहाँ पर आकर मामला कुछ उलझ जाता है । हथियार घर में पड़े थे, पर हीरो विदेश में था । समरा ने सीक्रेसी बनाए रखने पर बल दिया । खबर लीक होने पर संजू के भारत न लौटने का खतरा बताकर एके-56 की बरामदगी को टाल दिया गया । इसी दौरान बलजीत परमार ने मुंबई के एक टेब्लोइड में संजय के पास एके-56 होने की खबर ब्रेक कर दी । यह सारा घटनाक्रम एक से 18 अप्रेल के बीच का है । उन्नीस तारीख को संजय दत्त भारत लौटा और उसे एयरपोर्ट पर ही धर लिया गया । राकेश मारिया ने अपनी किताब में बहुत चटखारों के साथ इस घटनाक्रम का ब्योरा दिया है – कैसे संजू के किसी भी सवाल का जवाब न देकर उसे साइलेंट ट्रीटमेंट दिया गया, कैसे उसकी फालतू बाते सुनकर मारिया ने आवेश में आकर उसे तमाचा जड़ और फिर सँजू ने एक सांस में ही इकबाल-ए-जुर्म कर लिया । संजू ने यह भी बताया कि उसके कहने पर उसके मित्रों युसुफ नलवाला, करसी अदानिया, अजय मरवाह और रूसी मुल्ला ने उसके घर में पड़ी एके-56 और 9 mm पिस्तौल को ठिकाने लगा दिया है । यानि मुंबई पोलिस को हीरो तो मिल गया, पर हथियार बरामद नहीं हुआ ।

खैर इसके बाद संजू पर टाडा के तहत केस दर्ज हुआ । वह अगले 18 महीने जेल में रहा । बाल ठाकरे के व्यक्तिगत हस्तक्षेप के बाद ही संजू को जमानत मिल सकी । लंबा मुकदमा चला, इतना कि बड़े दत्त साहब बीच में ही चल बसे (2005) । 2007 में टाडा कोर्ट ने संजू को मुंबई ब्लास्ट की साजिश के आरोपों से तो बरी कर दिया, लेकिन आर्म्स एक्ट के अंतर्गत 6 वर्षों का कारावास सुनाया । सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इसे घटाकर 5 वर्ष का कर दिया । सज़ा तो संजय दत्त ने अवश्य भोगी, पर उतनी नहीं जितना कि वह हकदार था ।

यदि संजू जनवरी 1993 में पुलिस को इत्तला कर देता तो संभव है पूरी साजिश का ही भांडाफोड़ हो जाता और मुंबई ब्लास्ट रोक लिए जाते । कोई भी गैरत-वाला आदमी इतना बड़ा जखीरा देख कर समझ जाता कि मुंबई दहलने वाली है । उसकी चुप्पी ही उसका साजिश में शामिल होना साबित कर देती है । अनीस और दाऊद का डर हो या लिहाज, संजय दत्त ऐसा भी दूधमुंहा नहीं था कि समझ न सके कि क्या चल रहा है ।  संजू के पास लाइसेंसधारी पिस्तौल पहले से ही थीं । इसलिए आत्मरक्षा इत्यादि थोथे बहाने-भर हैं ।

दरअसल पुलिस ने अगर संजू की गिरफ्तारी से पहले उसके घर में पड़ीं राइफल, पिस्तौल और गोलियां बरामद कर ली होतीं तो टाडा का केस बहुत पुख्ता हो जाता । पर गिरफ्तारी को हथियार की बरामदगी पर बेवजह तरजीह दी गयी, जिससे संजू को हथियार रफा-दफा करने का समय मिल गया । हथियारों की बरामदगी हो जाती तो 18 महीने में जमानत भी नहीं होती । अगर संजू पर टाडा टिक जाता तो आतंकवादी और राष्ट्रदोही करार होता , और सज़ा भी दस साल से कम की नहीं होती । कुलमिलाकर संजू का फिल्मी और सुनील दत्त का राजनैतिक करियर तबाह हो जाते । न दाग बनती, न वास्तव, न मुन्नाभाई का नंबर आता, न परिणीता का । दत्त साहब मंत्री भी नहीं बन पाते ।

पर समरा साहब मेहरबान थे, तो संजू भी पहलवान बना रहा । यह भी ठीक है कि सीबीआई और अदालतों का रवैया भी नरम रहा, वरना टाडा केसों में बर्डन ऑफ प्रूफ के नीचे ही अभियुक्त दब जाता है । जजों को न मोटिव समझ आया, न हत्यारी सोच दिखी । बस एमपी बड़े दत्त साहब की बिगड़ी हुई चूतिया औलाद नज़र आई , और यह दलील भी भाई कि धमकियों के मद्देनजर ही संजू ने एके-56 रख ली । पाँच साल जेल में ज़रूर काटे पर गद्दार साबित नहीं हुआ ! पुलिस अंकल को शुक्रिया तो बनता ही है ।


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  1. Mahesh says:

    Bhai sahab aapne Sunil Dutt ka political career toh zikr kiya lekin yeh nahin ki us samay Priya Dutt MP ke liye chunav lad rahi thi ,aur Congress party apne wafadaaron ka kuch nahin hone deti ,aise hi Quatrochi thodena riha ho gaya Augusta case mein ya phir Abhishek Manusinghvi CD case mein.

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