
मैं भारत से आता हूँ ।
मैं किस भारत से आता हूँ?
दुविधा में जीने वाले, बिके हुए, खोखले, नफरती टट्टुओं को दो भारत दीखते हैं । दो, बस दो !
भारत केवल जागे हुए और सुप्त, अमीर-गरीब, राजपरिवार या आम आदमी, कामकाजी और बेरोजगार, हिन्दू-मुस्लिम, पढे लिखे अथवा गवार, रेपिस्ट और भद्र में ही विभाजित नहीं है । सड़कें नापने वाले, खाक छानने वाले, धक्के खाने वाले, हर चौराहे पर अपनी मराने वाले हमारे जैसों को ज्ञात है कि भारत एक, दो, तीन नहीं, कोटि-कोटि हैं- जितनी जनसंख्या, उतने ही भारत, उतने ही दांव, उतने ही पेंच ।
मैं हर उस भारत से आता हूँ । रोहिङ्ग्याओं, बांग्लादेशियों, पाकिस्तानियों, खालिस्तानियों में से नहीं आता लेकिन हर देशी जाति, कुल, संप्रदाय, धर्म, क्षेत्र से आता हूँ । उन सब भारत से भी आता हूँ जो लालची, स्वार्थी, अहंकारी संभ्रांत वर्ग, वामियों-कामियों, जिहादियों और जिहाद के पोषकों, वोक एवं लिब्रांडुओं तथा पश्चिम के दासों के मन-मस्तिष्कों में पलते हैं। अपने धर्म, देश और अस्मिता का व्यापार करने वालों के भारत से भी मैं आ ही जाता हूँ । क्या है कि ये मीर जाफ़र, रवीश और रोमिला थापर भी अपने ही देशवासी हैं, और मुझे इनका प्रतिनिधित्व भी करना है ।
1.मैं नकारेबाज़ों के उस भारत से आता हूँ जिन्होने कोरोना से निपटने की हमारी क्षमता पर सदैव संदेह जताया, भ्रामक प्रचार फैलाया और वेक्सीन अनुसंधान का उपहास उड़ाया, लेकिन जैसे ही मुफ्त टीका उपलब्ध हुआ तो भीड़ लगाकर कोविन पोर्टल का बट्टा बैठा दिया ।
2. मैं दोगले संभ्रांतों के उस भारत से आता हूँ जो प्रदूषण का रोना तो रोते हैं मगर सवारी एसयूवी की और यात्रा हवाई ही करते हैं ।
3. मैं उर्दूवूड के उस भारत से आता हूँ जो धड़ल्ले से महिलाओं का चीरहरण और वस्तुकरण करता है, और रजतपट पर बलात्कार-छेड़खानी को बढ़ावा देता है , लेकिन सवाल उठाए जाने पर वस्त्र त्याग, प्लेकार्ड उठा दुर्जन के जाति-धर्म का पता लगाने में उत्सुक रहता है ।
4. मैं उस भारत से आता हूँ जो सारी समस्यों की जड़ विशाल जनसंख्या में देखता हैं पर जनसंख्या नियंत्रण कानून का ज़िक्र होते ही नाक-बौंह सिकोड़ने लगता है ।
5.मैं उस भारत से आता हूँ जहां के स्थापित पत्रकार अपने एसी कमरों से बाहर एक कदम नहीं निकालते पर हर समस्या और उसके समाधान की पूर्ण जानकारी होने का दंभ भरते हैं – उनसे भी अधिक जो स्वयं वह समस्या झेल रहे हैं और समाधान ढूंढ रहे हैं !
6.मैं उन बस्तियों के भारत से भी आता हूँ जिन्हें पाकिस्तान की क्रिकेट टीम, सेना और इमरान खान अपने देश की टीम, सेना और नेताओं से अधिक पसंद है, और जिसका मुजाइरा वे पड़ोसी मुल्क की मदद करके अथवा सफलता पर पटाखे फोड़ कर करते हैं , और सवाल उठाए जाने पर उल्टा चोर कोतवाल होने के साथ-साथ मजहबोफ़ोबिया के आरोप जड़ देते हैं ।
7. मैं स्टेंड अप कोमेडियंस के उस भारत से आता हूँ जिनका हास्य नस्ल, रंग, शरीर, लिंग, सहवास, हिन्दू देवी-देवता एवं पूजा-संस्कार और पति-पत्नी के चुटकुलों से आगे नहीं निकल पाता, इसलिए ऐसे कमेडियन्स को विरोध प्रदर्शनों की आस रहती है बजाय स्टेज पर चढ़कर फूहड़ हास्य परोसने और अपना चूतिया कटवाने के ।
8. मैं ऐसे अजीबोगरीब भारत से आता हूँ जहां पचास साल के नेता अपने आप को अपरिपक्व मानते हैं, और पचहत्तर के वयोवृद्ध स्वयं को युवा । पचास वाले को कोई ज़िम्मेदारी चाहिए ही नहीं, पचहत्तर वालों को पूर्णविराम, छोड़िए अल्प विराम भी मंजूर नहीं ।
9.मैं उस भारत से आता हूँ जहां की राजनैतिक पार्टियां सोवियत रूस और कम्युनिस्ट चीन के प्रति वफादारी की कसमें खाती आयी हैं । यहाँ तक कि एक पार्टी ने तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू भी साइन किया हुआ है ।
10.मैं अंग्रेज़परस्तों के उस भारत से आता हूँ जिसने अंग्रेजों से समझौता कर आज़ादी तो स्वीकार ली, मगर वाइसराय को गवर्नर –जनरल बता कर रोजगार दिये रखा , और तब से आज तक राष्ट्रमंडल में बना हुआ है ।
11.मैं उस भारत से आता हूँ जहां पित्रसत्ता और जातिवाद के लिए केवल एक जाति उत्तरदाई है , और एक ही धर्म का मखौल उड़ाया जा सकता है । यह ऐसा भारत है जो हर पुरुष को केवल इसलिए बलात्कारी कह दे रहा है क्यूंकी एक हास्य-कलाकार को केनेडी सेंटर के स्टेज पर खुद को कोड़े बरसाते हुए नंगा नाच करना है ।
12.मैं अंधसेवकों के उस भारत से आता हूँ जो आज तक स्वीकार नहीं पाये कि देश का विभाजन दो-राष्ट्र सिद्धान्त के आधार पर हुआ था , जिसके फलस्वरूप दो अल्पसंख्यक राष्ट्र फलफूल रहे हैं, और 2047 में तीसरे की भी तैयारी है , लेकिन इस अखंड धरा के निर्विवाद स्वामियों की एक राष्ट्र की मांग पर कभी गौर तक नहीं हुआ ।
13.मैं लठैतों-टिकैतों के ऐसे भारत से आता हूँ जो संसद द्वारा विधिवत पास किए गए क़ानूनों को अलोकतांत्रिक बतलाता है, और सड़क पर डेरा डालकर, जाम लगाकर विरोध जताने को जन्मसिद्ध अधिकार मानता है ।
14.मैं ऐसे प्रगतिवादी भारत से आता हूँ जो शाकाहारवाद का मज़ाक उड़ाता है, पर दुग्ध उत्पाद से दूरी रखने को कहता है – क्यूंकी ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ माहौल बनाना है ।
15. मैं कृतघ्नों के ऐसे भारत से आता हूँ जो सुरक्षा बलों से सर्जिकल स्ट्राइक्स का सबूत मांगते हैं और उनपर बलात्कार एवं मानवाधिकार हनन की तोहमत लगाते हैं , पर मैं उस भारत से भी आता हूँ जो अपने हर एक सपूत के बलिदान पर आँसू बहाता है ।
16.मैं उस भारत से आता हूँ जिसके इतिहास पर लीपापोती कर दी गयी है और जहां के इतिहासकारों ने धर्मांधता से उपजी क्रूरता को राजकाज कहकर उसका सामान्यीकरण करने का प्रयास किया है । इस भारत के वासी आज भी धर्मांध हत्यारों, गाज़ियों और बुतशिकनों के नामों पर अपनी औलादों का नामकरण करने में फख्र महसूस करते हैं ।
17.मैं धिम्मियों के भारत से भी आता हूँ जो ‘अखंड भारत’ पर व्यंग्य करता है पर जिसे पूरी शिद्दत से आज भी ‘अमन की आशा’ है ; जहां देवभाषा को कालभ्रमित मान लिया गया है, सिवाय जब ‘वसुधैव कुटुंबकम’ , ‘अतिथि देवो भव’ एवं ‘सर्व धर्म समभाव’ आदि का प्रयोग कर तुष्टीकरण और गैर-कानूनी अप्रवासन को जायज़ ठहराना हो ।
18. मैं उस भारत से आता हूँ जो वंशानुगत हस्तांतरण को लोकतान्त्रिक प्रक्रिया मानता है , जातिवाद को सोशल इंजीनियरिंग करार देता है, अमुक संप्रदायों को वोट बैंक से अधिक कुछ नहीं समझता, कुप्रशासन को एंटी-इंकम्बेसी बताकर माफ कर देता है, एलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल से बहुत हैरान-परेशान है और अपने नेताओं के हास्य-व्यंग्य-नौटंकी इत्यादि से ही इतना आनंदित रहता है कि टटपुंज्ये कोमेडियनों की न उसे दरकार महसूस होती है, न ही इनकी कद्र कर पाता है ।
19. मैं उस अंधे-लाचार भारत से आता हूँ जो इतना सब होने पर भी धर्म के प्रचार- प्रसार का मूलाधिकार देता है, और धार्मिक उन्माद काम करने हेतु धर्मपरिवर्तन विधान की मांग पर तथाकथित धर्म-निरपेक्ष और नास्तिकों से झाड़ खा जाता है ।
20. मैं उस भारत से आता हूँ जो मेरे इस उद्गार को सुनकर इसके सत्य को पहचानेगा । झूठ बेचने की रेडियाँ लगाने वाले पेशेवर मक्कार ओवरटाइम कर अपना उत्पाद बेचते रहेंगे । फर्जी क्षोभ और उन्माद की फेक्टरियाँ चलाने वाले अपने कार्य में ज़ोरशोर से लगे ही हैं ।
21. मैं उस भारत से आता हूँ जो न नेट्फ़्लिक्स देखता है, न जिसे ट्विटर से सरोकार है, न कभी हवाईजहाज़ में ही बैठा है, जो न अपनी असलियत स्वीकारने से डरता है और जो महामारी द्वारा मचाए गई तबाही के उपरांत अपने पैरों पर शनैः- शनैः खड़ा हो रहा है ।
22.मैं उस भारत से आता हूँ जो न स्वयं से नफरत करता है, न ही किसी हीनता का शिकार है , जो गोरे मालिक को प्रसन्न करने के लिए कठपुतली अथवा बंदर का खेल दिखाने को अनुगृहीत नहीं है; जिसने भूत से सीखा है, जो वर्तमान में संघर्षरत है और भविष्य के प्रति आशावान है !
वैसे किसी मनुष्य का चरित्र भाँपना हो तो उसे एक मंच देके देखो । मंच पर बोल रहे व्यक्ति के अंदरूनी व्यक्तित्व और बाह्य दृष्टिकोण की गंगा-जमना का संगम हो जाता है, और उसका सत्य झर-झर करके प्रयाग से काशी की ओर बहने लगता है । हर एक तो इतना भाग्यशाली नहीं होता कि अपने देश को गौरान्वित कर सके, पर मिले हुए मंच से भी जो पतित अपनों पर ही कीचड़ उछाले, उन्हें निकृष्ट और अमानवीय कहे, बलात्कारी और भ्रष्ट बतलाए- वो क्या ही किसी का सगा होगा ? फूहड़ता को कला कहकर परोसता, अपनों को पराया बताने वाला, परदेसी संभ्रांतों के मनोरंजन हेतु अपने देशवासियों को गरियाता यह जन्तु ‘सर्कस के बंदर’ से अधिक कुछ नहीं हो सकता ।
मैं इसके भारत से भी आता हूँ ।
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