
चुक चुके अंग्रेजों को एक दिन तो वापस जाना था,
सैंतालीस नहीं तो अड़तालीस में टिकट कटवाना था।2।
पढ़ते आए हैं बचपन से विश्व युद्ध की थकान थी भारी
जाने वाले स्वतः गए, पर हम हाथ जोड़े रहें आभारी ? (4)
आभारी उनके जो मान बैठे हम एक धरा पर दो राष्ट्र हैं,
पलट कर हमसे झूठ कह दिया एक ही हैं, पर दो हो गए ? (6)
भीख तो कहना उचित नहीं पर कटी-छटी आज़ादी थी,
हमने अपने हाथ कटाकर नई पोशाक चढ़ा ली थी ।8।
आधी-पूरी, थकी- मांदी जैसी भी हो मतवाली थी,
अपना भविष्य बनाने की अब अपनी ज़िम्मेदारी थी ।10।
लीपापोती, महिमामंडन, व्यक्तिपूजा से हम दूर रहें,
पूर्ण स्वराज से स्वतन्त्रता में हुए विलंब पर गौर करें,
इतिहास और उसके किरदारों का निष्पक्ष मूल्यांकन हो,
भाषा लेकिन सधी हुई हो, गरिमा का हम वरण करें ।14।