
दीप भर नहीं हूँ केवल
ज्योत हूँ मैं धर्म की
प्रकाश में ही निहित मेरे
सनातन का मर्म भी (4)
प्रज्ज्वलित हूँ आदि से
मैं पूर्वजों की संपदा
प्रयास कर न बुझा सका
मुझे कोई भी आक्रांता (8)
अपनी ही धरा पर
युगों से संघर्षरत
कोटि-कोटि आहुतियों से
जीवन ये सिंचित रहा (12)
संकल्प संपन्न हों सभी
धर्मध्वजारोहित रहे
घृताहुति अनवरत करें
तो समाज उद्दीपित रहे (16)
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