पाकिस्तानी क्रिकेटरों की साफ़गोई का कायल होता जा रहा हूँ (व्यंग्य)


विश्व कप में बारह बार हारने के बाद पाकिस्तान को अंततः भारत पर जीत नसीब हुई । छियान्वे से हरे वकार युनूस के घावों पर अब जाकर कुछ मलहम लगा । कसम से जडेजा ने तब इसे बड़ा कस के कूटा था ।  तीस साल बाद मिली इस दुर्लभ खुशी में भी वकार को सबसे ज्यादा सुकून इस बात से पहुंचा कि मोहम्मद रिजवान ने मैच जीतने के बाद हिंदुओं के बीच में नमाज़ अदा की । वाह क्या भाव हैं ! गजब की ईमानदारी है ! हिंदुओं के बीच में नमाज़ अदा करने का सेंस ऑफ आचीवमेंट ही कुछ अलग होता है ।

1998 का रोचक चेन्नई टेस्ट जीतते ही पाकिस्तानी खिलाड़ी बीच चेपक में नमाज़ पढ़ने और कब्रें चूमने में लग गए थे । हिंदुस्तान फतह कर लिया गया था । हिंदुओं को शिकस्त दी थी । ऊपरवाले का करम हुआ था । काबाइली सोच यहीं तक सीमित है । इतने में ही सातवें आसमान पर पहुँच जाते हैं ।  न तमिलनाडु के क्रिकेट प्रेमी , न टीवी पर प्रसारण देख रहा अबोध मैं, उस दिन इस धृष्टता को समझ पाये थे  । अब धीरे-धीरे इनके पत्ते खुलने लगे हैं ।

गुड़गाँव में देखिये । घर-बार हैं , मस्जिदें हैं , पर जुम्मे की नमाज़ सड़कों पर पढ़ने में जो मज़ा है वह क्यूँ न लिया जाये ।  मन हुआ तो यातायात रोककर भी खुदा का एहतराम किया जाएगा । क्यूँ करते हैं ऐसा ? मैं सोचता था कोई मजबूरी ज़रूर होगी । वकार युनूस ने आज स्पष्ट कर दिया । सुकून मिलता है हिंदुओं के बीच में नमाज़ पढ़ कर । हिंदुओं को भी गदगद होना चाहिए कि विशेष समुदाय के लोगों को हमारे बीच में ही अपने ऊपरवाले को याद करके चैन आता है ।  अगर हमें कोई किरदार मिल जाये तो फिर बलात परिवर्तन या हलाल करने के मंसूबे नहीं पाले जाएंगे ।

वकार की बात इनकी हल्की थी कि उससे हर्षा भोगली और शेखर कुत्ता टाइप के चंपू भी आहत हो गए । कल ये शमी भाई की फर्जी ट्रोलिंग पर रोना-गाना मचा रहे थे । आज भोगली को कहना पड़ गया कि हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें ऐसी धर्मांधता से मन खिन्न हो ही जाता है । शेखर कुत्ता जैसा गया-गुज़रा तक अब खेल रिश्ते बहाल करने के पक्ष में नहीं दिखता । सवाल ये भी उठता है अमन की आशा के ये मतवाले इतनी कोशिशें करते क्यूँ हैं ? सच को बाहर आने दें । हम काफिरों को अपनी राय खुद बनाने दें । (अब वकार ने माफी मांग ली है । लिबरल लॉबी ‘एक मौका और दो’ का नारा देकर वकार को पहुंचे सुकून को आया-गया करने में जुट जाएगी।)

वैसे वकार चुप भी रह सकता था लेकिन पाकिस्तानी क्रिकेटरों को फूटे ढोल की तरह सच बजाने की आदत-सी है । झूठ,फरेब,आधा-पौना सच, रणनीतिक चुप्पी – ये सब चालाक, व्यापारिक मानसिकता वाले हिन्दू के हथियार हैं । पाकिस्तान की भारत पर फतेह से फूल का कुप्पा हुए पीएम इमरान ने भारतीयों के जलों पर नमक छिड़कते हुए कहा कि चूंकि अभी-अभी भारत की हार हुई है, इसलिए दोनों देशों के बीच बातचीत का सही वक्त नहीं है । बड़बोला शाहिद अफरीदी पहले तो भज्जी-युवराज टाइप के कमअक्लों से अपनी चेरिटी संस्था के लिए फंडिंग की अपील करवाता है , और फिर हमारे पीएम को चुनचुनकर गालियां देते हुए पूरे कश्मीर को अपना बताता है । बाद में कमअक्ल भारतीय इस बड़बोले की मदद करने पर अफसोस ज़ाहिर करते हैं । पर लौ तो लग चुके हैं, अब क्या फायदा !

बाबर आजम को टीवी प्रेसेंटर के ‘कुफ़्र टूट गया’ कहने पर कोई ऐतराज नहीं होता । शोएब मलिक ने एक दफ़े शमी को भारत का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज करार देते हुए कहा था कि ऐसा वह इसलिए नहीं बोल रहा है क्यूंकी शमी एक मुसलमान है । रिजवान को मैच खत्म होते ही हिंदुओं के बीच में नमाज़ पढ़नी थी । लाला अफरीदी को हिंदुस्तानी संगदिल लगते हैं, और पाकिस्तानी बड़े दिल वाले । सईद अनवर, इंज़माम, मुश्ताक़ अहमद, मोहम्मद युसुफ, सकलेन मुश्ताक़ और कई पाकिस्तानी खिलाड़ी खुलकर इस्लाम का प्रचार-प्रसार करते और ‘दावत’ देते रहे हैं ।  मुश्ताक़ मोहम्मद ने 1978 में सीरीज़ जीतकर उसे दुनियाभर के मुसलमानों की हिंदुओं पर जीत बताया था । सत्तासी में चिन्नास्वामी टेस्ट जीतकर सीरीज़ जीतने के उन्माद में पाकिस्तान क्रिकेट के युगपुरुष अब्दुल हाफिज़ करदार ने ‘we have conquered the Hindus’ कह डाला था । इसपर हमारे रण बांकुरों ने क्या किया ? बगलें झाँके, कट्टर बातें अनसुनी कीं, गर्दनें हिलाईं, हाथ मिलाये, तालियाँ बजाईं, एक जैसे होने-दिखने की बातें कीं, दोस्तियाँ बनाईं, प्यार के वादे किए, पाकिस्तान के दौरे किए-करवाए, अपने पैसे से उनके पेट भरे – ये किया !

क्या कारण है कि हमारे चेनल पर , भज्जी की मौजूदगी में, लाईव केमरा पर शोएब अख्तर टू-नेशन थियरि की वकालत करता है , और हमारा खिलाड़ी सब एक हैं,प्यार है टाइप की मूर्खता रटता चला जाता है ? शोएब की किताब में शक-शुबहे की गुंजाइश नहीं है । पाकिस्तानी मजबूत कद-काठी के धनी और गौमांस खाने वाले एग्रेसिव नौजवान हैं, इसलिए तेज़ गेंदबाजी में भारत पर सवाई हैं – यह बात शोएब खुल कर बोलता है , फिर भी सुधीर चौधरी उसे ज़ी न्यूज़ पर आमंत्रित करता है । पाकिस्तान में हिन्दू-सिख साफ हो गए, बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा होना आम बात है – लेकिन हमारे खिलाड़ियों ने  घुटने टेके किसी अंजान देश में चल रहे रंग और नस्लभेद के खिलाफ !

यहाँ तारीफ करनी होगी बाबर आजम की ईमानदारी की । मैच शुरू होने के पहले रोहित शर्मा उसके पास गया और उससे घुटने टेकने का आग्रह किया । बाबर ने हाथ दिल पर रखकर साफ मना कर दिया । जिस बारे में पता नहीं, उस झंझट में पड़ना नहीं । विराट कोहली एकादश तो उस दिन केवल प्रोटेस्ट दर्ज कराने ही उतरी थी । क्या जोरदार मंज़र था-हिंदुस्तान के दोनों सलामी बल्लेबाज़ बीच मैदान में और बाकी खिलाड़ी सीमा रेखा पर झुक कर खड़े थे,  और पाकिस्तानी टीम दिल पर हाथ रखे सलामी ले रही थी । इसे कहते हैं ऐच्छिक सरेंडर ! जनरल नियाजी और 94000 पाकिस्तानी सिपाहियों ने यही किया था । खैर अपनी एकाग्रता को स्वतः भंग कर चुके दोनों एक्टिविस्ट सलामी बल्लेबाज बिना वक्त ज़ाया किए चलते बने । Black Lives Matter अवश्य करती हैं , पर शाहीन शाह अफरीदी की धारदार गेंदों को इससे कोई सरोकार नहीं था । फालतू के चोंचले हमपर भारी पड़ गए ।

हमारे रिच, स्पोइल्ट हिन्दू ब्रेट्स से तो दनिश कनेरिया भला, जो पाकिस्तान में रह कर भी उल्लास के साथ हिन्दू तीज-त्योहार मनाता है , और आवश्यक मुद्दों पर अपनी राय भी रखता है । दनिश को आप दिवाली मनाने के 101 तरीखे बताते या गणेश की जगह बिल्ली को दूध पिलाने की सलाह देते नहीं सुनेंगे । सेहवाग, गंभीर और वेंकी प्रसाद अब बोलने लगे हैं , पर बाकियों से अधिक उम्मीद नहीं है ! खुद की बेइज्जती करवाने से बेहतर है हम न पाकिस्तानी खिलाड़ियों को अपने टीवी चेनलों पर बुलाएँ, न ही जिहाद के पोषक इस पड़ोसी के साथ कोई भी खेल खेलें ।


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  1. nitinsingh says:

    बहुत बढ़िया लिखा है, उनका इरादा साफ़ है , यहां नाटकबाजी है।

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