कुफ़्र-काफिर पर ऐतराज नहीं, झांट-झंटुए और *टुए पर है ? (निबंध)

परसों तक सब्र ही तोड़ते थे, कल कुफ़्र भी तोड़ दिया ।

सब्र का क्या है साहब । हम लोग काफिर हैं, बारह सौ साल से बुतशिकनों की नफरत खत्म होने का इंतज़ार कर रहे हैं । कश्मीर में आज भी हमारे लोग मारे जा रहे हैं ।

शर्म बस हमें आती नहीं । क्रिकेट खेलना बहुत ज़रूरी है । आईपीएल एक व्यापार हुआ, समझ आता है कि उसके लिए हम बेगैरत भी हो जाएँ । देश के सारे बड़े नेता, उनकी क़ाबिल-नाक़ाबिल औलादें और खिलाड़ी बीसीसीआई से जुड़े हैं । उनका खर्चा-पानी निकलना भी ज़रूरी है । नेता-अभिनेता-क्रिकेटर-सटोरियों का सकल घरेलू उत्पाद कम नहीं होना चाहिए ।

पर इन पड़ोसी जिहादियों के साथ मुक़ाबले में उतरना क्यूँ ज़रूरी है ? क्यूँ भारत पाकिस्तान का पूर्ण बहिष्कार नहीं कर सकता ?

ऐसी क्या मजबूरी है हमारी जो हम अपने और अपनों के सम्मान के लिए एक बार भी खड़े नहीं हो सकते ?

अरे 1974 में हम डेविस कप फाइनल खेलने वाले थे दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ । तब हमने रंगभेद का विरोध करते हुए दक्षिण अफ्रीकी टीम का बहिष्कार कर दिया था । बाईस बरस तक दक्षिण अफ्रीका खेल जगत से बाहर रहा । फिर पाकिस्तान तो दशकों से हमारे सैनिकों और नागरिकों को अकारण मार रहा है । जिहाद की इस फेक्टरी का हम बॉयकोट क्यूँ नहीं कर पाते ? या इस छद्मयुद्ध को भी हम आईपीएल समझ कर ही खेल रहे हैं ?

न करे हमारा अनुसरण बाकी दुनिया उससे क्या ? खेलने दो उन्हें । हम तो सक्षम हैं ! हमें करना चाहिए । शुरुआत तो करें । एकबार तो करके देखें । संघर्ष करने की मानसिकता दिखाएँ । सबसे बड़े बाज़ार हैं हम, हमें बाकी क्रिकेट जगत की नहीं , उन्हें हमारी आवश्यकता है ।

शायद बहुत ज़्यादा उम्मीद है मुझे इस देश और बीसीसीआई से । इन्हें ‘कुफ़्र टूट गया’ सुनकर उर्दू की खूबसूरत अदायगी पर फख्र करने से फुर्सत कहाँ है ?

उर्दू के आशिक कल से ही कुफ़्र के मतलब और ‘कुफ़्र टूट गया’ के माने समझा रहे हैं । जश्न-ए-रेख़ता के लिंक वायरल हैं । कुफ़्र का मतलब ये, कुफ़्र का मतलब वो……अरे बेशर्मों ! काफ़िर शब्द का माद्दा , अर्थात मूल धातु है कुफ़्र । कुछ कहने को बाकी है क्या ? जिसे तुम द्विअर्थी संवाद कहते हो, उसे वहाँ पर तकिय्या कहते हैं और उर्दू में इस तरह के अलफाज भरे पड़े हैं । भारत के सेकुलरपरस्त वामी-कामी तो काफ़िर शब्द को भी प्रियवचन की तरह लेते हैं । पर जिसका हिन्दुत्व जीवित है, वह तो प्रतिकार करेगा । अलाउद्दीन खलजी के रणथंबोर किला फतह करने के पश्चात क्या तूती-ए-हिन्द अमीर खुसरो ने नहीं कहा था – “कुफ़्र का गढ़ आज इस्लाम का हुआ “? क्या इसपर भी बाकी इस्लामिक इतिहास की तरह लीपा-पोती कर दी जाये ?

यहाँ सवाल उर्दू पर भी उठता है । जो भाषा इस तरह के अतिवादी, इस्लामी अल्फ़ाज़ों से लैस हो, वह मज़हब से इतर कैसे मानी जा सकती है । भाषा की आड़ लेकर आप घटिया बात कहकर कैसे बच सकते हैं ? देखा जाये तो कटुआ, छिलका और लांडिया भी शब्द ही हैं , और शारीरिक स्थिति को बयान कर रहे हैं । पर उनका प्रयोग सामाजिक बोलचाल में निषेध है , जैसे नीग्रो एवं कई जातिसूचक शब्दों का , और होना भी चाहिए क्यूंकी ये मनुष्यता की मूलभूत गरिमा को आघात पहुँचाते हैं ! (ये अलग बात है कि वामी-कामी पिछले हफ्ते झांट जैसे शब्द से भी विचलित थे ) वैसे मज़े की बात है कि उर्दू पाकिस्तान में दस फीसद से कम आबादी द्वारा बोले जाने के बाद भी वहाँ की राष्ट्र भाषा है । कश्मीर में भी यह बहुत ज़्यादा नहीं बोली जाती पर 1889 से राजकीय भाषा है । उर्दूवुड में भी कोई उर्दूभाषी नहीं है, पर लिंगुआ फ्रेंका उर्दू है । कहीं उर्दू को महाद्वीप में आधुनिक इस्लामिक औपनिवेशवाद की भाषा तो नहीं माना जाता है ? माना कि बहुत से हिन्दी लेखकों और नेताओं ने लिख-बोल कर प्रोत्साहन दिया है, पर इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता । इस पर शोध समय की दरकार है !

‘अमन की आशा’ के पोषकों को तो दिखाई नहीं देगा पर बाकी देश को समझना होगा कि आखिर क्यों हम भारतीय अभी तक ‘हम सब एक रूप-रंग-खून-नस्ल’ की रट लगाए रहते हैं , जबकि पाकिस्तानी सोच एकदम स्पष्ट है । इमरान और अफरीदी खुल कर कश्मीर पर हक़ जताते हैं, शोएब अख्तर सीधे ‘टू नेशन थियरि’ को स्वीकारता है , पर कोई भारतीय खिलाड़ी कश्मीर, जिहाद, छद्म आतंकवाद पर एक शब्द नहीं बोल नहीं पाता । पाकिस्तानी खिलाड़ियों और बोर्ड को हिंदुस्तानी आवाम का प्यार और पैसा भी चाहिए , साथ में कश्मीर भी । भारतीयों को इनसे क्या चाहिए (बुतपरस्ती की सज़ा के अलावा , कुछ पता ही नहीं ! क्या हरभजन जैसे खिलाड़ी पाकिस्तान में हो रहे सिखों के बलात धर्म परिवर्तन पर एक ट्वीट नहीं कर सकते ? अरे, पालेगा तो तुमको बीसीसीआई, पीसीबी नहीं ! फिर कैसा डर? ये 12 विश्व कप मैच खेलते-खेलते (1992-2021) सहसत्रों सिख-हिन्दू पाकिस्तान में गायब (और क्या कहूँ?) हो चुके हैं । क्या बात है कि घुटने उनके लिए टिकते नहीं और अंगुलियाँ तक ट्वीट करने को उठतीं नहीं हमारी ? पर बात दिवाली पर ज्ञान देने की या ब्लैक लाइव्ज़ मेटर का टोकन समर्थन करने की तो कोली एंड कंपनी हमेशा प्रस्तुत हैं !

सरकारें आएँगी, जाएंगी । खिलाड़ी भी आएंगे, जाएंगे । सौ फीसद जीत का रेकॉर्ड अब तक था, अब स्वाहा हो गया है । आत्मसमान कभी था नहीं , पाकिस्तान में फसे हुए अपनों की चिंता कभी की ही नहीं । इतना हम सोच ही नहीं पाते । पापा ने शायद बताया नहीं, किताबों में भी कुछ पढ़ा नहीं । सुरक्षा कारणों से लंका नहीं जाना था तो इंग्लैंड, औस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड 1996 विश्वकप में नहीं ही गए । राजनैतिक कारणों से ज़िम्बाब्वे और केन्या का बहिष्कार करना था, तो इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड ने 2003 में वही किया । सुपर सिक्स और सेमीफाइनल में नहीं पहुंचे तो इन देशों के क्रिकेट प्रेमी हृदयाघात से मर नहीं गए । लेकिन ये देश ज़िंदा हैं, अपनों के लिए चिंतित हैं । अंग्रेज़ चाहे ज़िम्बाब्वे में परेशान हो, या उगांडा में – ब्रिटिश जनमत को उनकी चिंता है। सरकारें और बोर्ड इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड की भी ढीली और लालची है , उनके कान और हाथ भी मरोड़ने पड़ते हैं ।  तब जाकर वहाँ खेल, व्यापार और मनोरंजन राष्ट्रहित में होता है । हम हिंदुस्तानियों को  तो अभी टूटा कुफ़्र जोड़ने में और काफिर कहने पर भड़कने में भी समय लगेगा । वरना सोल्युशन तो सामने है – आईसीसी का नब्बे फीसदी बजट बीसीसीआई भरता है, पाकिस्तान का आधा बजट आईसीसी भरता है । आधे घंटे में बाबर आज़म की माफी, और ‘कुफ्र टूट गया’ बकने वाले स्पोर्ट्स प्रेसेंटर की बर्खास्तगी लेना बीसीसीआई के हाथों में है । एक दफ़े डीन जोन्स ने हाशिम अमला को ऑफ-एयर टेररिस्ट करार दे दिया था । माफी मांगने पर भी उसे बर्खास्त कर दिया गया था ! फिर कुफ्र तो ऑन-एयर लाइव टीवी पर टूटा है । दिल तो जो टूटा है उसे टीम आगे मेच जीत कर जोड़ेगी, पर इस बदतमीजी के लिए इस स्पोर्ट्स कमेंटेटर की विदाई तो अब होनी ही चाहिए ।

नहीं तो बीसीसीआई पदाधिकारियों को भारतीयों से हाथ जोड़ कर अपनी नपुंसकता के लिए माफी मांगनी चाहिए । नाम नहीं लूँगा, लेकिन हिन्दू हित के नाम पर पल रहे राजों-युवराजों से इतनी उम्मीद तो करना बनता है ।

जय हिन्द ।

जय हिन्दू ।

जय भारत ।

और कुफ्र /काफिर जैसे शब्द इस्तेमाल करने वाले को इस ज़मीन पर ही जहन्नुम नसीब हो !


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  1. Ajay Kumar says:

    Good one, effective and eye opener!! (not able to share through Whatsapp)

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