
भाषा का कार्य है वस्तुस्थिति का वर्णन करना, और संवाद स्थापित करना । इसपर रह-रहकर नैतिक और राजनैतिक प्रहार होते रहते हैं । भाषा को भ्रष्ट करके न सामाजिक समरसता लाई जा सकती है , न ही शब्दों और विन्यासों को नियंत्रित अथवा प्रतिबंधित करके लोगों को संस्कारित रखा या बनाया जा सकता है । मेरी हिन्दी को न विक्टोरियन मोरालिटी की आवश्यकता है , न नेहरुवादी नफासत की । गांधी की मनभावन हिंदुस्तानी से वह जितने कोस दूर रहती है, उतनी ही संख्या में मेरी अधोजटाएँ खिल उठती हैं ।
जैसे अधोहस्ताक्षरी का मतलब the undersigned हुआ , वैसे ही अधोजटा अर्थात नीचे के बाल । इस शब्द के प्रयोग से आपको मिर्ची नहीं लगी – न नीचे, न ऊपर । लगनी भी नहीं चाहिए क्यूंकी पहला तो यह मात्र एक शब्द है, मसाला नहीं, और दूसरा, एक शारीरिक सत्य को वर्णित करता है । जो है सो है , इसमे कुछ भी सनसनीखेज नहीं ! मैं शब्द का प्रयोग करके वाक्य नहीं बेच रहा हूँ, उसे प्रयुक्त करके वाक्य को सार्थक बना रहा हूँ ।
वैसे मैंने यहाँ अधोजटा का प्रयोग शाब्दिक अर्थ में किया है। हिंदुस्तानी से दूर और हिन्दी के निकट रहकर रहकर मेरी प्यूब्स,अधोजटाएँ, रहस्यरोमन, पश्म, शष्प, झांटें वास्तव में खिल उठती हैं । लेकिन पत्रकार प्रदीप भण्डारी ने टीवी पर इसके सर्वश्रेष्ठ पर्याय का प्रयोग ‘बहुत तुच्छ और निकम्मी वस्तु’ के संदर्भ में किया है । हिन्दी अमरकोश के अनुसार ‘झाँट’ के शाब्दिक अर्थ के साथ-साथ यह अभिप्राय भी बताया गया है । तब किसी को क्या समस्या है ? क्यूँ कई लोगों के उदर में चुनचुने उठ रहे हैं ? प्रदीप भण्डारी ने एकदम ठीक ही कहा कि ‘वो अराजक तत्त्व जो तालिबानी हेंगिंग पर गर्व महसूस करते हैं, वो अराजक तत्त्व जो इस देश के कानून को झाँट भी नहीं समझते , वो अराजक तत्त्व जो सुप्रीम कोर्ट की ऑबसर्वेशन की भी परवाह नहीं करते ….’, मेरी दृष्टि में तो वे सकल ताड़ना के अधिकारी हैं । ऐसे ही हैं ये आंदोलनजीवी- एकदम नीच, निर्लज्ज और किसी भी आदेश या विधि को रहस्यरोमन से अधिक कुछ नहीं समझने वाले! विरोधियों, खासकर वामपंथियों की यही तकनीक है – उंगली, शब्द या चेहरे के भाव पर सवाल उठा दो, जिससे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत वाद-संवाद संभव ही न हो पाये । जैसे सावरकर के आगे वीर क्यूँ लगाया, अकबर के पीछे ग्रेट क्यूँ नहीं लिखा और औरंगजेब को ज़िंदा पीर से कुछ कम क्यूँ बताया ।
रहस्यरोमन पर ध्यान दिया ? यह किस चिड़िया का नाम हुआ ? क्या कोई थ्रिल, हॉरर, सस्पेंस, जासूसी से जुड़ा शब्द है ? जी नहीं । इसका अर्थ भी है प्युबिक हेयर ही, वह भी संस्कृत में । मैंने इसका प्रयोग होते वैसे आजतक न कहीं सुना है, न पढ़ा है, पर शब्द में एक रोमांस है । “वे अराजक तत्त्व जो इस देश के कानून को रहस्यरोमन भी नहीं समझते हैं…..”
झाँट के पर्याय और भी हैं – पश्म, शष्प और वंक्षण । इसमे पश्म का उद्भव पशमीना से हुआ लगता है जो चिकनी, मुलायम ऊन है । चिकनी, मुलायम ऊन ! भारतीय रहस्योरमन को पशमीना की संज्ञा देने पर तो कवि-स्वातंत्र्य की तार्किक सीमाएं ही पार हो जाएंगी । शष्प का शाब्दिक अर्थ उपस्थ ( जननेन्द्रिय, नितंब, पेडू) पर पाये जाने वाले बाल के साथ-साथ नई घास और नीली दूब भी होता है । भारतीय अधोजटाओं की सख्ती और पैनेपन को देखते हुए शष्प भी सटीक प्रयोग नहीं जान पड़ता । वंक्षण भी पेडू और जांघ के बीच के क्षेत्र को इंगित करता है और इस नाते श्रेष्ठ पर्याय नहीं कहा जा सकता । कुलमिलाकर, झाँट ही है जो फिट बैठता है- प्युबिक हेयर के लिए भी, और तुच्छ एवं निकम्मी वस्तु के लिए भी ।
कई उत्कृष्ट मुहावरे भी झाँट से जुड़ गए है । उदाहरण के लिए- झाँट जलना या झाँटें भर्राना, झाँटें सुलगना, झाँट राख़ अथवा भस्म हो जाना , किसी को झाँट-बराबर न समझना , झाँट उखाड़ना, झाँट की झंटुल्ली होना इत्यादि- जिनके अर्थ सुस्पष्ट हैं । गौर तलब है कि उर्दू भी यहाँ पर हिन्दी के समक्ष मात खाती प्रतीत होती है । उर्दू में प्यूब्स को कहा जाता है ज़ेर-ए-नाफ़ बाल । नाफ़ यानि नाभि , और ज़ेर मतलब नीचे के । मतलब तो साफ है, लेकिन अभिव्यक्ति दमदार नहीं है । झाँट कोई शब्द मुक़ाबला करेगा झाँट से । झाँट की उपादेयता निर्विवादित है । कुलमिलाकर जहां झाँट के प्रयुक्त होने से बात बनती हो, वहाँ झाँट का ही प्रयोग होना चाहिए । और जो कोई झाँट का पिस्सू आपत्ति करे तो करे तो , उखाड़ तो झाँट भी नहीं पाएगा उसकी जो शब्दानुशासन का पालन करेंगा ।
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लेखक, जिसने यह लिखा है। वाकई उसे झांटो की ईज्जत बक्शी हैं। ईश्वर उसकी झांट बराबर बुद्धि को और घुघराले बनाये।
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