
संध्या हो गई, उसे तो होना ही था
सारी दीप्ति को तुझमें खोना ही था
तेरे किनारे जो हम निकल आए टहलने
मंद पवन में कामनाओं को मचलना ही था
जाते जाते सब रंग गए बिखर
जिधर भी देखूं तेरा प्रकाश फैला उधर
लहरों को बहना है ऐसे ही रात भर
मत्त बादल भटकेंगे कभी इधर कभी उधर
सेतु पर चढ़ कर भले कर लूँ तुझे पार
तरणी में चाहे करूँ भ्रमण बारम्बार
पहाड़ी से टकरा कर ठहर जाये ये नज़र
झील को अपलक निहारता रहेगा ये नगर ………………………..(12)


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Beautiful pics 👌👌
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