
प्रकाश की पहुँच से गहरा पाट
भावनाओं-सी शंकित झील
मेहंदी जैसा चढ़ा मौसम
आसमां अधीर
हवा, तरंगें नदारद
सोई शायद मछलियाँ भी
उबल उबल जाए
भीतर एक ज्वालामुखी
ये सन्नाटा, ये शांति
तब तक ही
जब तक प्रेम जीवित है
फिर सिर्फ त्रासदी (12)
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