पलटमास्टर पलटू (कविता)

बहुत दिन से पलटू पलटा नहीं था,
पलटे बिना मगर उसका गुज़ारा नहीं था,
अब पलटेगा, कब पलटेगा,
कयास लगते रहे,
बीच-बीच में वह पलटी लगाने की
हवा बनाते रहे. (1)


जाति की राजनीति उसके मन- प्राण हैं,
जाति न चले तो फिर काम तमाम है,
आशा ही नहीं हमें पूर्ण विश्वास था,
इसकी पलटने की इच्छा का पूर्वाभास था,
रोटी जब सिकती है तो पलटती ही है,
तीन-चार साल हुए इसकी मोहब्बत भटकती ही है,
परसों के भतीजे थे कल तक तो चोर,

चोर के साथ मिलकर आज करे शोर,
जिसकी दया से कल तक था सत्ता में बैठा,
उसकी जड़ें काटने के चक्कर में सदैव ही रहिता,
प्रशासन भले जाए भाड़ में,
बस जाति का ज़हर फैलाना है,

आज के मित्र को दगा देकर,
पुराने प्रेमी से फिर इश्क लड़ाना है !

पलटू चिचा को भौंरा बन यहाँ-वहाँ मंडराना है,
कैसे भी करके बस जनादेश चुराना है। (2)


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