
बहुत दिन से पलटू पलटा नहीं है,
पलटे बिना मगर उसका गुज़ारा नहीं है,
अब पलटेगा, कब पलटेगा,
कयास लगाते रहिये,
बीच बीच में जाति की
हवा बनाते रहिये.
जाति की राजनीति उसके मन- प्राण हैं,
जाति न चले तो फिर काम तमाम है.
आशा ही नहीं हमें पूर्ण विश्वास है,
इसकी पलटने की इच्छा का आभास है,
रोटी जब सिकती है तो पलटती ही है
तीन-चार साल में इसकी मोहब्बत भटकती ही है,
कल के भतीजों को आज कह दे चोर
चोर के साथ मिलकर परसों करे शोर
जिसकी दया से आज सत्ता में बैठे
उसकी ही जड़ें काटने के चक्कर में रहते
ये पलटू चिचा का शौक पुराना है
कैसे भी करके इन्हें जनादेश चुराना है
प्रशासन जाए भाड़ में
जाति का ज़हर फैलाना है
अभी के दोस्त को दगा देकर
पुराने यार से इश्क फरमाना है
