
आबादी बमुश्किल चार हज़ार,
पर हॉकी ओलम्पियनों की भरमार,
जलंधर छावनी के बगल में बसा ग्राम संसारपुर,
अंग्रेजों को देख-देख लड़कों को चढ़ा हॉकी का सुरूर,
शहतूत की टहनी कर गई कुंडी का काम,
धागों को बांध माताओं ने दिया खुद्दो का नाम,
खेल ‘खुद्दो-कुंडी’ पहुँच गए एम्स्टर्डम ठाकुर चंद, (ओलंपिक 1928)
धीरे-धीरे हॉकी बन गई हर युवा की पसंद,
गुरमीत सिंह कुल्लर ने किया बत्तीस में कमाल, (लॉस एंजिल्स 1932)
अस्सी तक हर टीम में खेला संसारपुर का लाल, (मॉस्को ओलंपिक 1980)
मेक्सिको में थे गाँव के थे आठ खिलाड़ी खेले, (मेक्सिको ओलंपिक 1968)
पाँच भारत, दो केन्या, एक कनाडा की किस्मत ठेले,
चौंसठ की स्वर्णिम टोक्यो टीम में भी थे चार, (टोक्यो 1964)
अजितपाल की कप्तानी में जीता था विश्व कप पहली बार, (1975 क्वालालांपुर)
गाँव छोड़ो, गली पूछो- कुल्लरों की गली,
चौदह ओलम्पियनों की किस्मत है यहीं से निकली,
हॉकी आज भी धर्म है यहाँ पर,
संसारपुर कर रहा इंतज़ार,
टर्फ मिल गयी, अबकी मेडल भी आ गया,
गाँव में फिर कब आएगी चैम्पियनों की बहार?
कब फिर सीनियर-जूनियर बलबीर दिखाएंगे जौहर?
कब निकलेगा संसारपुर से दूसरा अजित पाल सिंह कुल्लर ?

#संसारपुर #पंजाब #जलंधर #हॉकी #ओलंपिक्स #ओलंपियन #बलबीरसिंह #कुल्लर #अजितपालसिंहकुल्लर
#मेक्सिको1968 #खुद्दोकुंडी #शहतूत #भारतीयहॉकी