रोन्दु रवीश पाणे,
बाध्यकारी विरोधाभासी,
पाकहितों के स्थायी संरक्षक,
एमडीटीवी ।
सुनो रवीश्वा, ये बात एकदमे नहीं जँचती कि तुम बरसों से एंकर की तनख्वा उठा रहे हो, एसी कमरे में बैठे-बैठे जाने कितनी कुर्सियों की गद्दियाँ फाड़ चुके हो, पर इतना भी ज्ञान नहीं रखते कि भारत सरकार ने तुम्हारे तालिबनी मामूओं को कंधार-परांत ही आतंकवादी घोषित कर रखा है । ये क्या मूढ़क सवाल हुआ बे ? माना मामूजान का राज़ फिर से आ गया है पर क्या खुशी में चकरघिन्नी बन होश ही खो बैठोगे ?
और फिर असली सवाल ये नहीं है कि भारत सरकार की नज़र में तुम्हारे मामूजान क्या हैं, क्यूंकी उसका जवाब तो स्पष्ट है । सवाल तो ये है कि तुम साले पाणे, इन कठमुल्लाओं से रिश्ता-नाता कैसे जोड़ लिए बे ? ये कैसे हुआ कि तुम, पाकिस्तानी और तालिबानी एक ही गांड से हगने लगे ? कहाँ तो तुम जाति पूछते नहीं थकते थे, और कहाँ फिर मजहब का दरिया ही पार कर बैठे ?
वैसे तुम्हारे जैसे निकट्ठू, भयाक्रांत, स्टुडियो जनरलिस्ट ( जनरल लिस्ट ही पढ़ोगे तुम , मैं जानता हूँ । लेकिन तुमपर जर्नलिस्ट होने की तोहमत भी तो नहीं लगा सकता ) की जानकारी के लिए भारत सरकार समय-समय पर विज्ञप्तियाँ जारी करती रहती है । फिर कहोगे, तुम देसी आदमी हो, कंप्यूटर चलाना आयबे न करी । कोई स्टाफ रख लो , चाहे जाति पूछकर ही रख लेना । वैसे यार रवीश्वा गुस्सा बड़ा आता है कभी कभी तुमपर । दिन-रात टीवी स्टुडियो में बैठे-बैठे तुमको इतना नहीं समझ आया कि अभी तक तालिबान ने वहाँ सरकार नहीं बनाई है, सिर्फ काबुल और अन्य शहरों पर कब्जा किया है ! आईआईएमसी से पढे हो न ? कुछ तो मजबूरी रही होगी उनकी जो तुम्हें डिग्री दे दी । एमडीटीवी की मजबूरी तो हम समझते हैं ।
रही बात जिहादियों से बात करने की , तो सरकार कितनी बार स्पष्ट करे बे ? क्या बोरे पर लिख कर तुम्हारी खाल मे सिलवा दे ? ऐसा भारत में तो होगा नहीं , ऐसा आपके मामूजान ही किया करते हैं । शायद उनकी किताब में इस सब का ज़िक्र भी है । सब जानते हैं कि अमन की आशा अपनी छाती में दबाये तुम कितना तरसते हो कि भारत सरकार कभी तो तुम्हारे पाकिस्तानी रहनुमाओं से बातचीत करे । पर ये मोदी-डोवाल हैं कि तुम्हारी भावनाओं की कदर ही नहीं करते ! इसीलिए तुम तालिबान से बातचीत होगी या नहीं यह जानने को उत्सुक हो ना , ताकि उससे इमरान खान के साथ वार्ता करने का भी दबाव बने । तब तो तुम और तुम्हारे जैसे पाकपरस्त बेशर्मी से यह भी कह सकते हैं कि अगर जिहादियों से चर्चा हो सकती है, तो इमरान तो फिर जम्हूरियत का फरिश्ता है । (नोबल शांति पुरस्कार का दावेदार है, कई पाक-पैरोकारों का पे-मास्टर है )
रही बात आतंक पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति कि तो उसपर क्यूँ कटाक्ष करते हो ? क्या सरकार दहशतगर्दी को बर्दाश्त करे अथवा बढ़ावा दे ? क्या पाकिस्तान से बिना शर्त बातचीत करने लगें ? वैसे लगता है अफ़ग़ानी काजू-छुहाड़े तुम्हारे मुंह लग गए हैं । अरे चार-पाँच सौ रुपया किलो रेट बढ़ भी गया तो क्या है, तुम्हारे लिए मामू मुल्ला बिरादर नहीं तो इमरान चिचा फ्री भिजवा ही देंगे । नहीं तो दिल्ली में दुबक कर बैठे स्लीपर-एजेंट्स गिफ्ट कर देंगे । सिर्फ काजू छुहाड़े के लिए ही तुम पाक और तालिबान की दलाली मत उठाओ । अपना एक लेवल रखो, सरहद पार से भी इज्ज़त अधिक मिलेगी ।
वैसे ट्रोल आर्मी से तुम्हें डर बहुत लगता है । भले तालिबान-पाकिस्तान से आत्मीयता है, पर उनसे भी बहुत भय खाते हो – इतना कि भारत सरकार से पूछे बिना कोई बयान नहीं देना चाहते । तुम्हें पत्रकार नहीं बे, चिड़ियाघर का बंदर होना चाहिए था । बंदर ही क्यूँ ? क्यूंकी कोई ढोलकी बजाता है तो नाचते तुम बढ़िया हो । वैसे भी तुमको कुत्ता या सियार कहकर मैं उनकी बेइज्जती नहीं करना चाहता ।
भारत के सैनिकों से तुम्हारी नफरत और उन्हें खतरे में डालने की मंशा भी इस दंभ-भरे खुल्ले, संक्षिप्त पत्र में साफ झलक रही है । तुम उन्हें आतंक से लड़ने का ऐतिहासिक वक्त याद दिला कर काबुल-कंधार भेजना चाहते हो ! उस मौत के कुए में जहां पर जाने कितने की रूसी,अमरीकी, पाकिस्तानी और अफ़गान सैनिक मारे जा चुके हैं, और मरते ही रहेंगे । ऐसा इस देश के सैनिक ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है पाणे ? रही बात मोदी जी को उकसाने की, तो सुन चूतिये, तेरे जैसों को अजित भारती से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई भी नागरिक गंभीरता से नहीं लेता । बस तेरे रोने में बिस्मिल्लाह खान की शहनाई सुनाई दे जाती है, तो कभी-कभार मज़ा ले लेते हैं ।
अगर इससे ज्यादा अवगत होना है तो नेट खोल (डेटा कम है तो केजरीवाल का फ्री वाई-फ़ाई यूज़ कर), एमईए की वेबसाइट पर जा और कभी थोड़ा मेहनत भी कर ले जीवन में । ये बार-बार अपने छोटा और मामूली आदमी होने, ट्रोल किए जाने और ज़ीरो रेटिंग पाने का एहसान मत जता । किसी को फर्क नहीं पड़ता । औ अगली बार प्रधान सेवक जो को सीधे पत्र न लिखना बे । ये सब चिरकुटगिरी से ही तुम्हारी जगहसाई होती है , अच्छा नहीं लगता है । क्यूंकी जितने भी हल्के हो, हो फिर भी भारतीय ही । लानतें भेजते हुए बड़े क्यूट भी लगते हो ।
भवदीय,
पंच मास्टर गोगो,
सत्यानवेषी
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