
(डंडे से अभिप्राय दंड/punishment/कानूनी दंड से भी है और हाथ में पकड़े जाने वाले डंडे से भी)
जो बैठ कर के सड़कों पर
जो चीख-चीख गलियों में
स्वतंत्रता का दंभ भर
अभिव्यक्ति के नाम पर
चरा रहे हैं बुज्जियाँ
उड़ा रहे हैं धज्जियां
कानून की, समाज की
प्रधान की, विधान की
शासन के सम्मान की
राष्ट्र के गुमान की-
इन्हें न वाद न विवाद से
न तो विस्तृत संवाद से
न ही खुली फटकार से
न भारतमाँ के दुलार से
न दिमागी उपचार से
न जनता के तिरस्कार से
न चुनावों में हार से-
केवल डंडे की हुंकार से
शक्ति के उद्गार से
धर्मरक्षा की ललकार से
दंड के प्रतिकार से
बल के भरमार से
भयभीत करके मार से-
अनुशासित कर, उद्धार कर
समझाकर, सुधारकर
देशभक्ति का संचार कर
घर वापस लेकर आएंगे
एक हाथ में लेकर डंडा
दूसरे में ले हवन सामग्री
पूरा कर पाएँ पुरश्चरण
पूर्णाहुति के लिए हाथ बढ़ाएँगे
(2)
देश मे चल रही
जो रोज़ खींचतान है
कानून का कोई भय नहीं
सीना-जोरी सरेआम है
हर सवाल जिनका चीन-चीन
हर जवाब जिनका पाक-पाक
सिर्फ जाति- संप्रदायों की
जो करते हैं बस बात-बात
और पाँच के पचीस कर
जो बोझ बन कर बढ़ रहे
मजहब के नाम पर
हमें खोखला जो कर रहे
और वो,
जो नाम लेकर मार्क्स का
चूस रहे हमारा खून हैं
भारत की आलोचना का
चढ़ा रहता जिनपर जुनून है
बनते बहुत उदार हैं
ये सब छापामार हैं
खाते इस धरा का हैं
लेकिन सब स्याले गद्दार हैं
हल इन सबका बस एक है
यही कहता अब विवेक है-
क्यूंकी डंडा ही बुद्धिमान है
शास्त्रों में जिसका बखान है
सफलता ही जिसकी श्रेष्ठता का
अनुपम, अंतिम प्रमाण है
डंडा ही सर्वशक्तिमान है
हर संघर्ष का विराम है
डंडे की प्रभुसत्ता
पूर्ण और सर्वमान्य है
डंडे के पास ही इस
समाज की कमान है
ढीठ को मिलता रहे
ये वो ज़रूरी इनाम है
अराजकता के विरुद्ध
डंडा ही पुख्ता इंतज़ाम है
जो कर सके उसका कुशल प्रयोग
वही विश्व गुरु महान है

#डंडा #दंड #विधान #धर्म #मजहब #खींचतान #समाधान #जयश्रीराम